Essentialism by Greg McKeown | Book Summary in Hindi | कम चीज़ों में Excellence कैसे पाएँ | Anil Saharan
Hello friends! आपका स्वागत है, मैं हूँ आपका दोस्त Anil Saharan। आज हम बात करने वाले हैं Essentialism – Greg McKeown के बारे में...
सुबह के 8 बजे हैं... वो जल्दी-जल्दी लैपटॉप खोलता है, Zoom call शुरू होने वाली है। एक हाथ में ब्रेड का टुकड़ा है, दूसरे में फोन। बॉस का मैसेज आया है – 'Can you handle this presentation too?'
वो थका हुआ है... लेकिन फिर भी reply करता है – 'Sure, I got it.'
शाम तक उसे अपने बच्चे के साथ खेलना था, लेकिन अब उसे एक और report तैयार करनी है। उसके दोस्त की शादी है पर वो नहीं जा सकता, क्योंकि उसका manager ने urgent काम दे दिया है।_
उसे लगता है कि अगर उसने 'ना' कहा... तो लोग उसे irresponsible समझेंगे, वो पीछे छूट जाएगा, उसे guilt होगा...
और इसी guilt में, वो हर दिन खुद को खोता जा रहा है।
उसने कभी नहीं सीखा कि 'ना' कहना भी एक कला है।
और 'सब कुछ करना' – सबसे बड़ा illusion है।
आज हम बात कर रहे हैं उस किताब की…
जिसने लाखों लोगों को सिखाया कि कैसे कम काम करके भी ज़्यादा impact बनाया जा सकता है।
"Essentialism" by Greg McKeown – सिर्फ productivity नहीं, ये किताब आपको ज़िंदगी के सबसे ज़रूरी चुनाव करना सिखाती है।
क्या आप भी खुद को हर किसी की expectations के नीचे दबा हुआ महसूस करते हैं?
क्या आपको भी लगता है कि आप बहुत कुछ कर रहे हैं… लेकिन कुछ भी meaningful नहीं कर पा रहे?
तो ये वीडियो आपके लिए है।
"हमारी ज़िंदगी आजकल एक buffet जैसी बन गई है — हर चीज़ अच्छी लगती है, सब कुछ करना है, हर मौके को पकड़ना है।
लेकिन सोचिए... अगर आप buffet में हर चीज़ की एक-एक प्लेट भर लें, तो क्या आप वाकई किसी एक चीज़ का स्वाद ले पाएंगे?"_
यही non-essentialism है – जब हम हर उस चीज़ को हाँ बोलते हैं जो सामने आती है… और बदले में थकावट, फालतू stress और directionless life मिलती है।
What is Essentialist Mindset
Essentialist mindset क्या कहता है?
👉 "कौन सा एक काम है जो सबसे ज़्यादा मायने रखता है?"
👉 "जिसे करने से बाकियों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी?"
Greg McKeown कहते हैं —
“If you don’t prioritize your life, someone else will.”
मतलब?
अगर आपने खुद तय नहीं किया कि आपके लिए क्या ज़रूरी है… तो दुनिया आपको अपनी priorities थमा देगी – boss, society, relatives, social media… सब!
“क्या आपने कभी खुद से पूछा है – मैं इतना व्यस्त क्यों हूँ… लेकिन फिर भी असंतुष्ट क्यों महसूस करता हूँ?”
“मैं दिन भर काम करता हूँ… लेकिन फिर भी लगता है, जैसे कुछ अधूरा छूट रहा है?”
शायद क्योंकि आपने ज़रूरी और गैर-ज़रूरी के बीच का फर्क अब तक साफ़ नहीं किया।
Ramesh IT में काम करता है। हर कोई उसे call करता है – "भाई help कर दे", "bhai backup ले लेना", "client ko समझा देना"… और वो कभी ना नहीं कहता।
उसका logic simple है – “सभी को help करना चाहिए।”
लेकिन एक साल बाद — ना promotion मिला, ना peace। क्यों?
क्योंकि वो सबके लिए available था, पर अपने लिए नहीं।
Essentialist mindset कहता है –
“Everything is noise. Only a few things are truly essential.”
और उन्हीं पर energy लगाओ।
आज ही एक काम करो:
एक कागज लो, दो कॉलम बनाओ:
“Important for me”
“Just keeping me busy”
अब हर रोज़ के कामों को लिस्ट करो। You'll be shocked.
जरूरी कामों में निवेश करना, एक तरह से अपने भविष्य में निवेश करना है।
और याद रखो –
Success doesn't come from doing more. It comes from doing less, but better.
"तो आपने देखा कि कैसे Essentialist mindset हमें direction देता है।
अब बात करते हैं उस principle की... जो आपके हर दिन को clarity दे सकता है —
👉 Less But Better
Meet Shilpa.
एक brilliant graphic designer है। दिन में logo बनाती है, रात को freelance लेती है, weekend में reels बनाती है...
हर कोई कहता है — “तू तो बहुत multi-talented है!”
पर Shilpa कहती है —
"मुझे पता नहीं चल रहा कि मैं किस चीज़ में अच्छी हूँ। मैं बस थकती जा रही हूँ।"
Greg McKeown यही बताते हैं:
“The way of the Essentialist is not about how to get more things done; it’s about how to get the right things done.”
मतलब?
काम ज़्यादा करना कोई achievement नहीं है।
सही काम करना ही असली success है।
सोचिए —
एक bulb और एक laser beam दोनों में रोशनी होती है।
Bulb हर तरफ फैला हुआ होता है — उजाला ज़रूर देता है, लेकिन कमजोर
Laser एकदम focused होता है — और उसी focus से metal तक काट देता है
आप bulb की तरह फैल रहे हो? या laser की तरह कटिंग edge बन रहे हो?
“क्या आपकी energy हर किसी की expectations में खर्च हो रही है?”
“क्या आपने अपने दिन की 100% ताकत सिर्फ 20% result देने वाले कामों में लगा दी है?”
Toh ab वक्त है पूछने का –
“Mujhe sab kuch kyun करना है?”
✅ Step 1: अपने goals की लिस्ट बनाओ – 10 काम जो इस महीने करने हैं
✅ Step 2: सिर्फ 1 चुनो – जो सबसे ज़्यादा फर्क ला सकता है
✅ Step 3: बाकी को side करो — temporarily eliminate
Eliminating the nonessential is not a one-time event. It is a constant discipline.
Shilpa ने एक दिन सब pause कर दिया।
सिर्फ branding design पर focus किया।
6 महीने बाद — niche clients, premium work, creative freedom.
कम किया… लेकिन बेहतर किया।
Multitasking is a trap. Excellence is a result of subtraction.
अपने दिन को इस तरह design करो, जैसे एक artist अपने canvas को design करता है – हर stroke meaningful हो।"
अब सवाल ये है – कम करने का मतलब क्या सब छोड़ देना है? या फिर चुनिंदा चीज़ों को master करना?"
अब वक्त है उस सबसे मुश्किल चीज़ से टकराने का जो हमें non-essential बनाती है —
👉 "नहीं" कहना।
और सच्चाई ये है कि हम में से ज़्यादातर लोग 'ना' कहने से डरते हैं।
इस हिस्से में हम guilt, people-pleasing, fear of missing out (FOMO) जैसी चीज़ों से टकराएंगे, और एक गहरी कहानी से ये lesson deliver करेंगे कि हर “हाँ” की कीमत एक “ना” होती है।
The Power of Saying No” | ‘ना’ कहने की कला | Emotional + Practical Script
"अब जब हमने समझा कि कम और बेहतर कैसे ज़िंदगी को सरल और शक्तिशाली बना सकता है…
तो अब बात करते हैं उस skill की जो इस पूरे Essentialism philosophy की रीढ़ है —
👉 'ना' कहने की शक्ति।"
Vivek, एक sales executive है।
हर दिन कोई ना कोई कहता है – “भाई मेरी file भी देख ले”,
“भाई client ko handle कर दे”,
“भाई एक PPT बना दे”… और Vivek हर बार मुस्कुराकर कहता है – “हाँ, कर दूंगा।”
क्यों?
क्योंकि उसे लगता है —
"अगर मैंने मना किया, तो लोग बुरा मानेंगे।
शायद मैं अवसर खो दूंगा।
या शायद… मैं अच्छा इंसान नहीं रहूंगा।"
पर असल में हो क्या रहा है?
वो burnout हो रहा है।
वो अपने ही goals भूल चुका है।
वो दूसरों की ज़िंदगी जी रहा है — अपनी नहीं।
Greg McKeown कहते हैं:
“When we say yes to one thing, we are saying no to something else. Always.”
हर ‘हाँ’ की एक छिपी हुई 'ना' होती है।
और जब आप सबको 'हाँ' कह रहे होते हो…
तो शायद खुद को 'ना' कह रहे होते हो।
“आपने कितनी बार ऐसा काम किया है… जो आपको नहीं करना था, लेकिन सिर्फ इस डर से किया कि कोई नाराज़ न हो जाए?”
“कितनी बार weekend पर आराम करना था… लेकिन आप एक और काम में उलझ गए?
इस बीच, अगर आपको ये कहानी पसंद आ रही है, तो like ज़रूर करें, comment में अपनी feelings शेयर करें, और वीडियो को अपने दोस्तों तक पहुँचाएं।
आप देख रहे हैं Anil Saharan — जहाँ हम आपकी पसंदीदा किताबों की कहानियाँ, आपकी अपनी भाषा में लाते हैं।
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चलिए, अब वापस चलते हैं कहानी की उसी मोड़ पर... जहाँ से सब कुछ बदलने वाला था।
तो सवाल ये नहीं है कि ‘ना’ कहना गलत है।
सवाल ये है कि “कब तक आप अपनी ज़िंदगी गिरवी रखते रहेंगे?”
Essentialism में सिर्फ 'ना' कहना नहीं सिखाया जाता,
बल्कि 'अदब के साथ मना करना' सिखाया जाता है।
✅ Soft No with Grace:
“मुझे खुशी है आपने सोचा, लेकिन मैं अभी इस पर commit नहीं कर सकता।”
✅ Buffer No:
“Let me check my priorities first and get back to you.”
✅ Redirect No:
“शायद इस काम के लिए XYZ और बेहतर होंगे।”
👉 याद रखो –
“मदद करने की भावना अच्छी है… लेकिन खुद को खो देने की कीमत पर नहीं।”
Plane में safety instruction हमेशा क्या कहते हैं?
“Oxygen mask पहले खुद पर लगाइए… फिर दूसरों की मदद कीजिए।”
आप तब तक किसी की मदद नहीं कर सकते जब तक आपकी खुद की energy, clarity और focus सही जगह ना हो।
“‘ना’ कहना ego नहीं है, ये self-respect है।”
“हर बार जब आप ‘ना’ कहते हैं… आप अपनी priorities को ‘हाँ’ कह रहे होते हैं।”
“अगर मैं हर चीज़ नहीं कर सकता, तो फिर किसे चुनूं?”
और हर बार चुनने के साथ जो दर्द आता है — वो क्या जायज़ है?
अब वक्त है एक कड़वी लेकिन ज़रूरी सच्चाई को सामने लाने का –
👉 Make Trade-Offs – हर चुनाव की एक कीमत होती है।
इस हिस्से को हम emotional conflict + real story + deep clarity के साथ पेश करेंगे, ताकि लोगों को सिर्फ lesson न मिले, बल्कि एक जीवंत एहसास मिले।
Make Trade-Offs | सही चीज़ के लिए कुछ छोड़ना ज़रूरी है
"हमने देखा कि 'ना' कहने से कैसे हम अपनी priorities बचा सकते हैं।
लेकिन क्या सिर्फ ‘ना’ कहना ही काफी है?
नहीं।
अब हमें ये भी समझना होगा कि जब हम किसी एक रास्ते को चुनते हैं, तो कई रास्ते खुद-ब-खुद छूट जाते हैं।
👉 यही हैं Trade-Offs —
हर 'हाँ' के पीछे छुपी एक कीमत।"
Neha एक talented architect है।
उसे दो रास्ते मिले:
एक बड़ी MNC – ज़बरदस्त salary, perks, विदेश यात्रा
एक startup – कम पैसे, लेकिन creativity और vision का मौका
हर कोई कह रहा था – MNC चुनो!
लेकिन Neha जानती थी —
अगर उसने पैसे चुने, तो शायद वो अपना passion खो दे।
और अगर उसने passion चुना, तो वो comfort खो देगी।
अब वो किसी गलत या सही में नहीं फंसी थी…
बल्कि दो अच्छे options में से एक को छोड़ने की पीड़ा में थी।
Greg लिखते हैं:
“We can do anything, but not everything.”
मतलब?
जिंदगी में हम सब कुछ नहीं कर सकते।
हमें trade-offs चुनने पड़ते हैं — और वो painful हो सकते हैं।
पर यही एक mature इंसान की पहचान है —
जो अपनी priorities को clearly जानता है, और बाकी को छोड़ने की हिम्मत रखता है।
“आप एक साथ 5 career नहीं बना सकते।
आप हर weekend हर दोस्त की शादी में नहीं जा सकते।
आप हर ट्रेंड में नहीं चल सकते — और फिर भी खुद को खोना नहीं चाहते।”
आपको तय करना पड़ेगा —
आपका सच क्या है?
और उसके लिए आप क्या छोड़ सकते हैं?
सोचिए — आप एक restaurant में जाते हैं।
menu बहुत लंबा है — Chinese, Mughlai, Italian, South Indian...
आप सब नहीं खा सकते।
आपका time limited है, stomach भी limited है…
तो आपको चुनना पड़ेगा।
Life भी ऐसा ही है।
👉 जो आप चुनते हैं…
वो ही आपकी ज़िंदगी का स्वाद बनता है।
बाकी सब missed calls होते हैं — जिनकी ringtone आपको distract करती है, पर connect नहीं करती।
📌 Step 1: अपनी top 3 priorities लिखो – इस साल की
📌 Step 2: हर नए opportunity को पूछो – “क्या ये मेरी top priorities से जुड़ा है?”
📌 Step 3: अगर नहीं… तो gracefully reject करो।
"If it’s not a clear yes, it’s a clear no."
Neha ने startup चुना।
3 साल बाद –
वो एक creative director है, अपने vision पर काम कर रही है।
पैसे शायद कम थे, लेकिन शांति बहुत ज़्यादा थी।
👉 क्योंकि उसने अपने लिए चुना। और बाकी सब को छोड़ने की हिम्मत दिखाई।
“Greatness comes not from doing more, but from choosing better.”
“हर 'हाँ' एक कुर्बानी है। और हर कुर्बानी एक दिशा तय करती है।
लेकिन अब असली लड़ाई शुरू होती है — अंदर की लड़ाई।
👉 क्योंकि हर दिन इतनी noise है, इतने options, इतनी urgency… कि इंसान सोचने का वक्त ही नहीं निकाल पाता।
और जब सोचने का वक्त नहीं होता — तो ज़िंदगी किसी और के plan पर चलने लगती है।
अब बारी है अगले पड़ाव की:
“Create Space to Reflect” – सोचने का समय बनाना, ताकि ज़िंदगी हमारे control में रहे।”
Create Space to Reflect | सोचने के लिए रुकना भी एक सफ़र है
"जब हमने सीखा कि ज़िंदगी में हर चुनाव एक कीमत लाता है,
तो अब सवाल ये है कि वो चुनाव कैसे करें?
हर चीज़ urgent लगती है।
हर दिन भागदौड़ में कटता है।
और इसी में… हम खुद को खोने लगते हैं।
इसलिए अब अगला कदम है —
👉 रुकना। सोचना। और खुद से जुड़ना।"
Ramesh, एक successful manager है।
हर दिन meetings, calls, deadlines, performance reviews…
वो हर साल promotion पा रहा था — लेकिन एक दिन अचानक
burnout।
डॉक्टर ने कहा – सब ठीक है medically।
लेकिन खुद Ramesh ने कहा –
“मैं ठीक नहीं हूँ… मुझे नहीं पता कि मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ।”
क्योंकि वो कभी रुका ही नहीं।
कभी सोचा ही नहीं।
कभी खुद से पूछा ही नहीं — कि आख़िर मैं जा कहाँ रहा हूँ?”
Greg कहते हैं:
“In order to discern the essential, we need space to think. We need room to breathe.”
👉 अगर हम खाली जगह नहीं बनाएंगे, तो हमारी priorities घुट जाएंगी।
हम machines बन जाएंगे — इंसान नहीं।
आज के time में हम क्या करते हैं?
खाली समय मिला = मोबाइल
lift में खड़े हैं = reels
metro में सफर कर रहे हैं = YouTube shorts
खाना खाते वक़्त = Netflix
हम सोचने से बच रहे हैं।
क्योंकि सोचने का मतलब है — खुद से टकराना।
और वो uncomfortable होता है।
रुको एक पल… और खुद से पूछो:
“मैं जो कर रहा हूँ, क्या वो सच में मेरी choice है?”
“मैं जिस direction में भाग रहा हूँ, क्या वो मुझे शांति देगा या सिर्फ और दौड़?”
“मैं किसके लिए जी रहा हूँ — अपने लिए या दूसरों की expectations के लिए?”
Weekly Reflection Time
हर हफ़्ते 1 घंटा – अकेले में बैठो।
Notepad या journal लेकर बस 3 सवालों के जवाब दो:
इस हफ़्ते मैंने क्या सीखा?
मुझे क्या अच्छा लगा / क्या नहीं?
मैं क्या बदलना चाहूँगा?
Morning Silence (5 mins rule)
दिन की शुरुआत social media से नहीं,
बल्कि 5 मिनट शांत बैठकर करो – breathe. observe. listen to yourself.
Walk Without Phone
रोज़ 15 मिनट की walk – बिना किसी distraction
सिर्फ अपने अंदर झाँकने के लिए।
Ramesh ने एक फैसला लिया –
हर रविवार सुबह वो खुद से मिलना शुरू किया।
walks, journaling, unplugged mornings…
3 महीने बाद — उसके अंदर clarity थी।
उसने job नहीं छोड़ी… लेकिन अब वो उस job को consciously कर रहा था,
उसके पीछे एक मकसद था।
“अगर आप सोचने के लिए समय नहीं निकालते…
तो जल्द ही आपको पछतावे के लिए समय निकालना पड़ेगा।”
“Reflection कोई luxury नहीं है – ये ज़रूरत है।”
“ज़िंदगी की direction तभी सही होती है,
जब हम कभी-कभी रुककर ‘कहाँ जा रहे हैं’ देख लें।
जब हम सोचते हैं, तो ज़रूरी और गैरज़रूरी चीज़ों की भीड़ सामने आती है।
हर चीज़ important लगती है। हर टास्क जरूरी लगता है।
अब वक्त है clarity का — brutal clarity।
Focus on the Vital Few | जो वाकई मायने रखता है, बस उसी को पकड़ो
"जब हमने खुद को रुकने, सोचने और समझने का वक्त दिया…
तो अब हमें दिखने लगा कि हमारी ज़िंदगी में कितनी चीज़ें बस 'भीड़' हैं।
बहुत कुछ कर रहे हैं —
पर असली सवाल है…
क्या हम वही कर रहे हैं जो सच में ज़रूरी है?_
👉 अब वक्त है ‘Vital Few’ को पहचानने का —
वो चंद चीज़ें जो आपकी ज़िंदगी का रुख बदल सकती हैं।"
Anjali एक young entrepreneur है।
उसका schedule हमेशा full रहता है – emails, meetings, content planning, social media, client calls…
वो दिनभर कुछ न कुछ करती रहती है, लेकिन फिर भी result नहीं मिलते।
एक दिन थक हारकर उसने बैठकर सोचा –
"मैं सब कुछ कर रही हूं… पर कुछ भी आगे नहीं बढ़ रहा। क्यूं?"
उसने एक पेपर लिया, सारे टास्क लिखे…
और देखा —
90% time वो उन चीजों में बर्बाद कर रही थी जो impactful नहीं थीं।
बस तभी उसे समझ आया —
👉 “Success is not about doing more, it's about doing less, but better.”
Greg लिखते हैं:
“The wisdom of life consists in the elimination of non-essentials.”
मतलब?
ज़िंदगी की असली समझ तब आती है,
जब हम गैर-ज़रूरी चीजों को हटाना सीख जाते हैं।
सोचो — तुम्हारे पास एक दिन में सिर्फ 24 घंटे हैं।
तुम इन 24 घंटों में:
10 WhatsApp chats,
20 email replies,
3 social media scrolls,
5 छोटे मोटे काम…
और सिर्फ 1 घंटा वो काम
जो तुम्हारे सपने को ज़िंदा रखता है — तो असल में तुम क्या बना रहे हो?
👉 भीड़।
👉 Burnout।
👉 और धीरे-धीरे — खुद से disconnect।
🌟 [The 80/20 Rule – Pareto Principle]
Greg इसी concept को और साफ़ करते हैं:
“80% results come from 20% efforts.”
यानि —
आपकी ज़िंदगी में सिर्फ कुछ ही चीजें हैं जो आपको सफलता और शांति देंगी।
बाकी सब distractions हैं — बस sophisticated तरीके से।
Clarity List बनाओ
एक कागज़ लो।
वो 3 काम लिखो – जो अगर आज पूरे हो जाएं,
तो तुम्हें लगेगा — “आज का दिन सफल था।”
Eliminate Ruthlessly
हर task से पूछो — “क्या ये मेरे लिए essential है?”
अगर जवाब नहीं… तो delete कर दो। guilt के बिना।
Block Time for Vital Work
जो सबसे ज़रूरी 2 काम हैं — उनके लिए दिन में prime time reserve करो।
बिना notification, बिना कोई और काम।
“Do fewer things. But do them insanely well.”
Anjali ने अगले 30 दिन सिर्फ 3 कामों पर ध्यान दिया:
Product Development
Direct client interaction
Daily reflection
उसने बाकी सब चीजें या तो टाल दीं, या किसी और को delegate कर दीं।
Result?
Same 24 घंटे… लेकिन अब वो दिन खत्म होने पर थकी नहीं होती थी —
वो complete महसूस करती थी।
“सब कुछ करना बंद करो।
बस वही करो — जो वाकई में तुम्हारी ज़िंदगी बदल सकता है।”
“Don’t confuse movement with progress.”
“Focusing on the vital few isn’t laziness — it’s intelligence.”
_"अब जब हमने समझा कि कुछ ही चीज़ें मायने रखती हैं,
तो अगला कदम है – उन कामों को execute करने की कला।
क्योंकि जानना काफी नहीं होता —
करना ज़रूरी होता है।
जब हमने चुना कि हमें अब सिर्फ उन कामों पर ध्यान देना है जो वाकई मायने रखते हैं…
तो हम काम में लग गए। हम दिन-रात मेहनत करने लगे।
पर एक हफ्ते, दो हफ्ते, एक महीना,
फिर भी कोई बड़ा result नहीं आया।
यहीं सबसे बड़ा धोखा होता है —
लोग सोचते हैं clarity और मेहनत = फटाफट result।
पर सच्चाई?
👉 ज़िंदगी का असली transformation धीमे होता है।
और इसके लिए चाहिए — धैर्य।"
Deepak, एक passionate writer था।
उसने अपने दिल से एक blog शुरू किया।
हर दिन एक post लिखता, लोगों की मदद करता।
1 महीना – views नहीं
2 महीने – कोई comment नहीं
3 महीने – खुद से सवाल करने लगा:
“क्या ये सब बेकार जा रहा है? मैं ही गलत हूँ शायद…”
फिर उसने लिखना छोड़ दिया।
6 महीने बाद… एक बड़ी influencer ने उसकी पुरानी post पढ़ी और शेयर की —
वो viral हो गई।
लेकिन Deepak तब तक हार चुका था।
उसने खुद को मौका ही नहीं दिया फल का।
Greg कहते हैं:
“Essentialism is not about quick wins.
It’s about long-term clarity with short-term patience.”
मतलब?
सही रास्ता अक्सर धीमा होता है — लेकिन ठोस होता है।
जो फल जल्दी मिल जाए, वो ज्यादा देर नहीं टिकता।
🧠 [Relatable Truth – Youth की सबसे बड़ी गलती]
आज का youth सब कुछ जल्दी चाहता है:
30 दिन में body
3 महीने में YouTube growth
7 दिन में habit change
5 घंटे में course complete
पर सच्चाई ये है कि growth एक बीज की तरह होती है —
आप पानी देते रहो, धूप मिलती रहे, और दिन आएगा जब वो फूटेगा।
पर पहले वो जड़ें बनाता है — और वो दिखती नहीं।
क्या आपने कभी Chinese Bamboo Tree की कहानी सुनी है?
पहले 5 साल तक, जब आप उसे सींचते हो,
तो ज़मीन से ऊपर कुछ भी नहीं उगता।
5 साल तक कुछ भी नहीं।
फिर 5वें साल में वो 6 हफ्तों में 90 फीट ऊँचा उगता है।
सवाल ये नहीं कि वो 6 हफ्तों में बढ़ा —
सवाल ये है कि क्या आप 5 साल तक खुद को धोखा दिए बिना धैर्य रख पाए?
Long-Term Lens रखो
हर काम से ये मत पूछो – "कितना चला?"
पूछो – "क्या मैं इसे अगले 2 साल तक करने के लिए तैयार हूँ?"
Micro Wins Celebrate करो
हर दिन की consistency को reward करो – भले result न आएं
खुद को याद दिलाओ – “मैं process से जुड़ा हूँ, ना कि सिर्फ outcome से।”
Journal This Line Every Week:
“I’m building roots. I can’t see it, but growth is happening.”
Deepak की कहानी हमें बताती है कि —
सिर्फ clarity और मेहनत काफी नहीं —
अगर उसमें patience नहीं है, तो हम दरवाज़ा खुलने से पहले ही लौट जाएंगे।
“जो लोग धैर्य रखते हैं, वही असली result देखते हैं।
बाकी लोग तो बीच रास्ते से वापस लौट जाते हैं।”
“Fast results की चाहत आपको confusion में डाल देती है।
Slow success, permanent होती है।”
Patience is not waiting.
Patience is what you do while you wait.
हमने ये समझा कि धैर्य से बड़ी-बड़ी चीजें हासिल की जा सकती हैं।
पर अब एक सवाल और उठता है…
क्या हमारा वातावरण हमें उस patience और focus को बनाए रखने दे रहा है?
हर दिन जब हम उठते हैं —
क्या हमारे आस-पास की चीजें हमें हमारे मकसद की याद दिलाती हैं या distract करती हैं?
अपने environment को success के लिए design करना।"
Rohit ने decide किया कि वो रोज़ सुबह workout करेगा।
उसने gym membership ली, workout clothes खरीदे, YouTube पर workout playlist बनाई।
पर हुआ क्या?
पहले 3 दिन – gym गया।
फिर एक दिन रात को late सो गया।
सुबह उठा – बिस्तर से निकला नहीं।
फिर social media scroll किया, फिर 1 notification से काम में लग गया।
फिर वही पुराना loop शुरू हो गया।
Rohit की problem motivation की नहीं थी —
उसका environment उसे silently पीछे खींच रहा था।
Greg कहते हैं:
“If you don’t design your environment, someone else will.”
और ज्यादातर cases में —
वो "someone else" होता है – social media, ads, society, और आपकी पुरानी आदतें।
कितनी बार आपने ये notice किया है:
आप work करने बैठे, पर phone vibrate किया – ध्यान चला गया
Study करना था, लेकिन table पर snacks थे – आप खाने लगे
Meditation शुरू किया, लेकिन roommate loud music चला रहा है – mood खराब
Result?
फिर आप सोचते हो – “मेरे अंदर discipline नहीं है।”
जबकि असल में – problem बाहर की setup में है, अंदर की नहीं।
✅ Physical Space – चीज़ों को सेट करो, सोचने की ज़रूरत ना पड़े
Workout clothes रात में ही निकाल कर रखो
Phone को दूसरे कमरे में रखो जब deep work करना हो
Study table पर सिर्फ वो चीज़ें हों जो काम से जुड़ी हों
✅ Digital Space – स्क्रीन को भी success-friendly बनाओ
Instagram, YouTube को home screen से हटाओ
Background wallpaper पर अपना goal quote लगाओ
Notifications बंद कर दो उन apps की जो ज़रूरी नहीं हैं
✅ Social Space – लोगों को भी समझदारी से चुनो
जो लोग हर वक़्त complain करते हैं, उनसे थोड़ा दूर रहो
ऐसे लोगों के साथ connect करो जो growth में believe करते हैं
Family को softly बताओ कि तुम किन बातों में focus करना चाहते हो
Rohit ने बस 3 चीजें बदलीं:
फोन अलार्म दूर रख दिया, ताकि उठना पड़े
जिम के कपड़े और जूते रात में बाहर रखे
फ्रिज से सारे unhealthy snacks निकाल दिए
अब वो रोज़ gym जाता है, और उसे push नहीं करना पड़ता।
क्योंकि उसके environment ने उसके लिए काम करना शुरू कर दिया।
“You don’t rise to the level of your goals.
You fall to the level of your systems – and environment is your biggest system.
“Discipline is overrated. Design is underrated.
“अगर आपका वातावरण आपको याद नहीं दिलाता कि आप कौन बनना चाहते हो,
तो वो धीरे-धीरे आपको वो बना देगा – जो आप कभी नहीं बनना चाहते थे।
हमने अपने environment को design किया…
हमने distractions हटाए, सही चीज़ों पर focus करना सीखा,
लेकिन अब असली गेम है –
Execution का।
क्योंकि plan तो बहुत लोग बनाते हैं,
लेकिन वो असली फर्क तभी दिखता है जब आप रोज़ अपने उस plan के पीछे डटकर खड़े रहते हो।_
Aditi हर महीने एक नया planner खरीदती थी।
नए goals सेट करती
time block करती
motivation quotes लिखती
vision board सजाती
लेकिन महीने के अंत में — सब अधूरा।
क्यों?
क्योंकि वो सिर्फ सोचती रही, लिखती रही…
लेकिन action नहीं लिया।
“Perfect plan की भूख में, imperfect execution कभी शुरू ही नहीं हुआ।”
Greg McKeown सीधे कहते हैं:
“Ideas are worthless without execution.
Discipline is the bridge between intention and result.”
मतलब?
"सोचने से कुछ नहीं होगा।
हर दिन जब आप खुद को पीछे खींचते हुए भी action लेते हो — वही है discipline."
हम सोचते हैं – “पहले perfect समय आए फिर करूंगा”
हम डरते हैं – “अगर मैंने किया और fail हो गया तो?”
हम टालते हैं – “कल से शुरू करूंगा, आज तो mood नहीं है”
हम उम्मीद करते हैं – “कोई बाहर से आकर मुझे push करे”
But bro, कोई नहीं आएगा।
आपको खुद को खींचना पड़ेगा।
और बार-बार करना पड़ेगा।
खासकर जब मन ना करे।
✅ Minimum Action Rule – “हर दिन कम से कम इतना ज़रूर करूंगा”
बड़े targets नहीं — एक छोटा सा action रोज
Example: सिर्फ 1 paragraph लिखूंगा, 5 pushups कर लूंगा, 1 page पढ़ लूंगा
क्योंकि consistency > intensity
✅Time Block Non-Negotiables – Slot बना लो, बस वही करो उस time में
Morning 7-8 = सिर्फ work
Evening 6-7 = सिर्फ learning
ये sacred time है — बाकी सब बाद में
✅ Accountability Partner – किसी को बताओ, जो पूछेगा “किया या नहीं?”
दोस्त, भाई, माँ, कोई भी — सिर्फ उन्हें कहो कि वो रोज़ check करें
जब कोई देख रहा हो, तो commitment दुगनी होती है
✅ No Excuse List – खुद से पूछो “क्या वाकई में कारण है, या सिर्फ बहाना?”
हर excuse को लिखो — फिर उसके नीचे उसका opposite action भी
Example: “Mood नहीं है” → “2 मिनट बस शुरू करता हूँ”
एक दिन Aditi ने सिर्फ एक चीज़ की —
सुबह उठकर बिना scroll किए, बस 15 मिनट walk पर गई।
वो perfect नहीं थी, पर उस दिन वो execution में थी।
और बस वहीं से कहानी पलट गई।
“Winners don’t do different things every day.
They do the same right thing — every damn day.”
“Discipline means doing it —
especially when you don’t feel like it.”
“हर दिन खुद को हराना पड़ता है —
ताकि एक दिन दुनिया को जीत सको।”
जब हम रोज़ action लेने लगते हैं
Discipline को अपना लेते हैं
तब एक नई समस्या खड़ी होती है।
अब हम और करना चाहते हैं।
हर दिन कुछ और भी जोड़ना चाहते हैं।_
लेकिन यहीं सबसे बड़ा धोखा छिपा होता है —
जो हमें फिर उसी loop में धकेल सकता है, जिससे हम निकले थे।
अब वक्त है उस Final Truth को अपनाने का —
जिसे Greg McKeown कहते हैं:
👉 The Paradox of Less.
Neeraj ने पिछले 6 महीने में:
Gym join किया
Meditation शुरू किया
Business का नया idea launch किया
Online course भी कर रहा था
और हर हफ्ते एक नई किताब भी पढ़ता था
फिर क्या हुआ?
एक दिन थक कर बिस्तर पर लेटा और बोला:
“I’m doing so much, फिर भी कुछ हो नहीं रहा…
मैं तो बस थक रहा हूँ।”
Reality?
वो सब कुछ कर रहा था —
पर किसी भी एक चीज़ में नहीं गहराई तक गया।
Greg लिखते हैं:
“When we try to do it all, we achieve nothing of significance.”
और फिर वो बताते हैं कि
कम करना = पीछे हटना नहीं होता।
बल्कि कम करना = laser focus से बड़ा impact बनाना होता है।
ये वो paradox है जिसे बहुत कम लोग समझ पाते हैं।
हमें लगता है:
“अगर मैंने ये नहीं किया तो मैं पीछे रह जाऊंगा”
“सब कर रहे हैं, मुझे भी सब करना चाहिए”
“मैं सब manage कर सकता हूँ”
“अगर मैं कम करूंगा तो लोग क्या सोचेंगे?”
पर असल में —
हर चीज़ को करने की कोशिश में हम अपनी असली genius खो बैठते हैं।
“Jack of all trades बनकर, master of none मत बनो।”
✅ एक “Stop Doing” List बनाओ
जैसे To-Do List होती है, वैसे ही
उन चीजों की लिस्ट बनाओ जो आप नहीं करोगे —
Social media scroll, Random projects, Unnecessary meetings
✅ Rule of 3 – साल के सिर्फ 3 बड़े फोकस
अगर कोई चीज़ इन तीनों में नहीं आती —
Ignore it, Delay it, या Delegate कर दो
✅ Ask Yourself Every Week – “क्या मैं ज्यादा कर रहा हूँ या सही कर रहा हूँ?”
ये सवाल आपके दिमाग की clarity बढ़ाएगा
और guilt कम करेगा
Neeraj ने सब कुछ बंद कर दिया —
सिर्फ एक चीज़ पर फोकस किया: उसका YouTube channel।
6 महीने में उसके 0 से 100k subscribers हुए।
अब वो बोलता है:
“मैंने सबकुछ छोड़कर सिर्फ एक चीज़ पकड़ी —
और वही मेरी दुनिया बदल गई।”
“कम करने का मतलब आलसी होना नहीं है।
बल्कि समझदार होना है।”
“जो इंसान हर जगह थोड़ा-थोड़ा करता है,
वो कहीं भी बड़ा नहीं बन पाता।”
“कम चीज़ों पर पूरा ध्यान दो —
ताकि तुम खुद में पूरी तरह रह सको।”
"Essentialism कोई एक बार की technique नहीं है —
ये एक ज़िंदगी जीने का तरीका है।
जहाँ हम समझते हैं कि:
हर shiny चीज़ जरूरी नहीं होती
हर opportunity को “हाँ” नहीं बोलना चाहिए
और जो चीज़ें सबसे ज्यादा matter करती हैं —
वो बहुत कम होती हैं_
पर जब आप उन्हीं कम चीज़ों को पकड़ लेते हो —
तो जिंदगी भी अपने सबसे बड़े रूप में खिलने लगती है।_
Zyada करने में जिंदगी खो जाती है…
Aur kam करने में वो असली जिंदगी मिल जाती है
जिसे तुम हर रात सोते वक़्त ढूंढते हो।
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मैं हूँ आपका दोस्त — अनिल सहारण।
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