The Psychology of Money by Morgan Housel | Book Summary in Hindi | पैसा कमाने का असली खेल
क्या पैसा कमाना ही सबकुछ है? या फिर उसे सही से संभालना ज्यादा जरूरी है?
हम में से कई लोग पैसा कमाने की दौड़ में लगे रहते हैं, लेकिन क्या हम सच में जानते हैं कि धन की साइकॉलॉजी क्या होती है?
आज की कहानी गोविंद की है, जो एक आम आदमी की तरह पैसे के बारे में सोचता था… लेकिन एक किताब ने उसकी सोच बदल दी!
‘The Psychology of Money’ – Morgan Housel की ये किताब हमें सिखाती है कि पैसा सिर्फ गणित नहीं, बल्कि हमारी सोच और व्यवहार से जुड़ा होता है।
तो आइए, गोविंद के साथ इस सफर पर चलते हैं और सीखते हैं कि पैसा कमाने से ज्यादा जरूरी उसे समझदारी से संभालना क्यों है!
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और मैं हूँ आपका दोस्त अनिल सहारण, जो आपको किताबों की सबसे बेहतरीन सीख लाकर देता हूँ, ताकि आप अपने जीवन में बेहतर फैसले ले सकें।
अगर आप भी फाइनेंशियल फ्रीडम पाना चाहते हैं, तो इस वीडियो को अंत तक जरूर देखें!
चलिए, शुरू करते हैं…
गोविंद एक मिडिल-क्लास परिवार का लड़का था। उसके पापा एक छोटी सी दुकान चलाते थे, और घर में पैसे की हमेशा तंगी रहती थी। बचपन से ही उसने पैसों की कद्र करना सीखा था, लेकिन उसके मन में एक सवाल हमेशा घूमता रहता— "पैसा आखिर काम कैसे करता है?"
कॉलेज खत्म करने के बाद जब उसने पहली नौकरी शुरू की, तो उसे लगा कि अब उसकी फाइनेंशियल दिक्कतें खत्म हो जाएंगी। लेकिन कुछ महीनों बाद उसे एहसास हुआ कि जितना कमाता है, उतना ही खर्च हो जाता है। बचत के नाम पर कुछ भी नहीं बचता था। हर महीने सैलरी आते ही खर्च हो जाती, और आखिर में फिर वही स्ट्रगल।
एक दिन, ऑफिस में उसके सीनियर, अमित, उसे कॉफी पर बुलाते हैं। अमित बहुत सुलझे हुए इंसान लगते थे, उनकी लाइफ में एक ठहराव था। गोविंद को यह बात हैरान करती थी कि अमित कभी भी पैसों को लेकर परेशान नहीं दिखते थे।
"कैसे करते हो यार? हमेशा पैसे को लेकर इतना रिलैक्स कैसे रहते हो?" गोविंद ने पूछा।
अमित मुस्कराए और बोले, "क्योंकि मैं पैसे को सिर्फ कमाने नहीं, उसे समझने की कोशिश करता हूँ।"
फिर उन्होंने अपनी बैग से एक किताब निकाली और गोविंद को दी—
The Psychology of Money - Morgan Housel
अगर पैसा सच में समझना चाहते हो, तो यह किताब पढ़ो। यह तुम्हारी पूरी सोच बदल देगी।
गोविंद ने किताब हाथ में ली, उसकी चमकती हुई कवर को देखा और सिर हिलाते हुए बोला, "थैंक यू अमित, मैं इसे ज़रूर पढ़ूँगा।"
किताब को बैग में रखते हुए, वह ऑफिस से बाहर निकला और घर की ओर चल पड़ा।
घर पहुँचकर, गोविंद ने खाना खाया और सोने के लिए बिस्तर पर लेट गया। लेकिन उसका दिमाग किताब के बारे में सोच रहा था।
"क्या खास होगा इसमें?" उसने सोचा।
वह उठा, बैग से किताब निकाली और पहला पेज खोला। पहली ही लाइन ने उसे अंदर तक झकझोर दिया—
💡 "पैसा संभालना गणित नहीं, बल्कि मनोविज्ञान का खेल है।"
यह पढ़कर उसके मन में एक सवाल उठा— "मतलब? पैसा तो नंबर का खेल है, फिर इसे मनोविज्ञान से क्यों जोड़ा गया?"
उसने आगे पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि हम पैसे को अपनी सोच, डर, आदतों और भावनाओं से ज्यादा प्रभावित करते हैं, न कि सिर्फ अपने ज्ञान से।
अब गोविंद की जिज्ञासा बढ़ चुकी थी। वह किताब बंद करने की बजाय और गहराई से पढ़ने लगा।
गोविंद किताब के पहले अध्याय को ध्यान से पढ़ने लगा। No One’s Crazy
पहली लाइन ही बहुत दमदार थी—
💡 "हर इंसान अपने अनुभवों के आधार पर पैसे के बारे में सोचता है।"
उसने सोचा, "सही तो है। अमित शेयर बाजार में इन्वेस्ट करता है और हमेशा फायदे में रहता है। लेकिन जब मैंने पापा से स्टॉक्स में पैसा लगाने की बात की थी, तो उन्होंने मना कर दिया। क्यों?"
गोविंद के दिमाग में कुछ साल पुरानी यादें ताज़ा हो गईं...
जब गोविंद स्कूल में था, तब उसके चाचा ने शेयर बाजार में इन्वेस्ट किया था। कुछ महीनों तक उनका पैसा बढ़ा, लेकिन फिर अचानक एक दिन बाजार गिर गया और उनका बहुत नुकसान हो गया।
उस दिन घर में भारी तनाव था। चाचा परेशान थे, और पापा ने गुस्से में कहा था—
"शेयर बाजार सिर्फ अमीरों का खेल है। हमारे जैसे लोग इसमें पैसा लगाकर सिर्फ नुकसान उठाते हैं!"
यह सुनकर गोविंद के मन में बचपन से ही यह बैठ गया था कि शेयर बाजार एक खतरनाक जुआ है। लेकिन अब, जब वह किताब पढ़ रहा था, तो उसे समझ आया कि पापा का अनुभव अलग था, इसलिए उनकी सोच भी अलग थी।
गोविंद ने आगे पढ़ा—
"किसी के लिए शेयर बाजार पैसा कमाने का जरिया हो सकता है, तो किसी के लिए यह जुए की तरह लग सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि सभी के फैसले उनके अनुभवों पर आधारित होते हैं।"
अब उसे अमित की सोच समझ में आने लगी। अमित के परिवार में कई लोग इन्वेस्टिंग करते थे, इसलिए वह इसे समझता था। दूसरी तरफ, गोविंद के परिवार ने नुकसान देखा था, इसलिए वे इसे रिस्की मानते थे।
यही कारण है कि हर इंसान पैसों को अलग तरीके से देखता है।
कोई सेविंग को सबसे ज़रूरी मानता है, तो कोई इन्वेस्टिंग को।
कोई खर्च करने में यकीन रखता है, तो कोई हर चीज़ में कटौती करता है।
अब गोविंद को समझ आ रहा था कि उसके पापा या कोई और गलत नहीं थे। वे बस अपने अनुभवों के हिसाब से सोच रहे थे।
गोविंद ने किताब बंद की और एक गहरी सांस ली।
"अगर मुझे फाइनेंशियल ग्रोथ करनी है, तो मुझे दूसरों की सोच को जज करने के बजाय उनके नजरिए को समझना होगा। और सबसे ज़रूरी, मुझे खुद का नजरिया विकसित करना होगा!"
उसने मन ही मन तय कर लिया—
"अब मैं सिर्फ सुनी-सुनाई बातों पर यकीन नहीं करूँगा। खुद सीखूँगा, समझूँगा और फिर फैसला लूँगा।"
गोविंद अभी भी पहली सीख के बारे में सोच ही रहा था कि उसने किताब का अगला अध्याय खोला— "Luck & Risk"
पहली लाइन पढ़ते ही वह ठिठक गया—
किसी की सफलता या असफलता केवल उसकी मेहनत पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उसमें किस्मत और जोखिम का भी बड़ा हाथ होता है।"
"क्या मतलब?" उसने खुद से कहा। "तो क्या मेहनत से कुछ नहीं होता?"
लेकिन जैसे-जैसे वह आगे पढ़ने लगा, उसकी सोच बदलने लगी...
गोविंद को अपने बचपन का दोस्त राहुल याद आ गया। दोनों साथ में पले-बढ़े, एक ही स्कूल में पढ़े, लेकिन आज उनकी ज़िंदगी बिलकुल अलग थी।
राहुल एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी कर रहा था, और गोविंद अभी भी अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था।
"ऐसा क्यों हुआ?" उसने कई बार सोचा था।
राहुल स्कूल में बहुत होशियार था, लेकिन उसे एक और बड़ी चीज़ मिली थी— मौका।
उसके पिता के ऑफिस में एक सीनियर थे, जो आईटी फील्ड में बहुत एक्सपर्ट थे। राहुल ने स्कूल के दिनों से ही उनके साथ सीखना शुरू कर दिया था। कॉलेज के पहले साल में ही उसे एक अच्छी इंटर्नशिप मिल गई, जिससे उसका करियर तेजी से आगे बढ़ गया।
वहीं, गोविंद को कोई ऐसा गाइड नहीं मिला। उसने मेहनत की, लेकिन सही मौके नहीं मिलने की वजह से वह राहुल जितना तेज़ नहीं बढ़ पाया।
गोविंद ने आगे पढ़ा—
"बिल गेट्स ने जिस स्कूल में पढ़ाई की, वहां कंप्यूटर की सुविधा थी, जो उस समय दुर्लभ थी। अगर वह किसी और स्कूल में होते, तो शायद माइक्रोसॉफ्ट कभी नहीं बनता।"
अब उसे राहुल की सफलता का कारण समझ में आ रहा था।
"इसका मतलब ये नहीं कि राहुल मेहनती नहीं था। बल्कि उसे सही समय पर सही अवसर मिले। और मैं? मेरी मेहनत बेकार नहीं गई, बस मेरा रास्ता थोड़ा अलग रहा!"
जो लोग सफल होते हैं, वे मेहनत के साथ-साथ भाग्यशाली भी होते हैं।
और जो असफल होते हैं, वे हमेशा आलसी नहीं होते— कई बार परिस्थितियाँ उनके खिलाफ होती हैं।
अब गोविंद अपनी असफलता के लिए खुद को दोषी नहीं मान रहा था। उसने सीखा कि—
राहुल का सफल होना उसकी मेहनत और मौके का खेल था।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गोविंद की मेहनत बेकार थी।
अगर मौके नहीं मिले, तो खुद मौके बनाने होंगे।
उसने मन ही मन तय कर लिया—
अगर मुझे राहुल जैसा अवसर नहीं मिला, तो मैं खुद अपना अवसर बनाऊँगा। मेहनत करूंगा, सीखूंगा, और सही समय का इंतज़ार करूँगा!
लेकिन जब उसने अगला अध्याय खोला— "Never Enough"— तो वह थोड़ी देर तक रुका रहा।
पहली लाइन ही काफी चौंकाने वाली थी—
💡 "कई लोग कभी भी 'पर्याप्त' महसूस नहीं करते। वे हमेशा ज्यादा पैसा कमाने की दौड़ में रहते हैं, जिससे वे अनावश्यक जोखिम उठाते हैं और अंत में सब कुछ गंवा सकते हैं।" — Morgan Housel
गोविंद को अपने चाचा रमेश की याद आई। कुछ साल पहले उनकी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी। बिज़नेस में अच्छा मुनाफा हो रहा था, घर में सुख-सुविधाएँ थीं, लेकिन उन्हें कभी चैन नहीं आया।
"अगर मैं अभी ज्यादा पैसा लगाऊँ, तो मुनाफा और बढ़ सकता है!"— ऐसा सोचकर उन्होंने बिज़नेस को और बढ़ाने के लिए बड़ा लोन ले लिया।
कुछ समय तक सब कुछ अच्छा चला, लेकिन फिर बाजार में मंदी आ गई। एक गलत फैसले ने उन्हें भारी कर्ज़ में डुबो दिया।
अब जब गोविंद यह अध्याय पढ़ रहा था, तो उसे समझ आया कि चाचा का असली नुकसान सिर्फ बाजार की वजह से नहीं हुआ था, बल्कि उनकी "Never Enough" वाली सोच की वजह से हुआ था।
Morgan Housel इस अध्याय में एक बहुत गहरी बात कहते हैं—
"अगर आप हमेशा ज्यादा कमाने की सोच में लगे रहेंगे, तो आप कभी संतुष्ट नहीं होंगे। और जब इंसान संतुष्ट नहीं होता, तो वह गलत फैसले लेता है, जिससे सब कुछ खो सकता है।"
जो लोग 'पर्याप्त' को समझते हैं, वे ज़रूरी चीजों पर ध्यान देते हैं।
जो लोग कभी संतुष्ट नहीं होते, वे जरूरत से ज्यादा जोखिम उठाते हैं और कई बार बर्बाद हो जाते हैं।
अब गोविंद को यह एहसास हुआ कि—
पैसा कमाना ज़रूरी है, लेकिन किस हद तक? यह समझना उससे भी ज़रूरी है।
अगर कोई लालच में अंधा हो जाए, तो वह अपनी मेहनत से बनाई गई चीज़ें भी खो सकता है।
सफलता की असली कुंजी 'कब रुकना है' यह जानना है।
उसने अपने दोस्त अमित को मैसेज किया—
लालच कभी खत्म नहीं होता, और जो लोग "कभी पर्याप्त" महसूस नहीं करते, वे खुद को बर्बादी के रास्ते पर ले जाते हैं
लेकिन जब उसने अगला अध्याय खोला— "Confounding Compounding"— तो यह पढ़कर वह ठहर गया:
अमीर बनने के लिए जरूरी नहीं कि आप बहुत ज्यादा पैसा कमाएं, बल्कि यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप लंबे समय तक निवेश बनाए रखें। कंपाउंडिंग की असली ताकत समय के साथ दिखती है, इसलिए धैर्य रखना जरूरी है।
यह वाक्य सीधे गोविंद के दिल में उतर गया।
गोविंद को अपने पिता की एक पुरानी बात याद आ गई।
जब वह 16 साल का था, तब उसके पिता ने उससे कहा था—
"बेटा, पैसा कमाना बड़ी बात नहीं है, असली खेल इसे संभालकर रखना और सही तरीके से बढ़ाना है।"
तब उसे यह बात इतनी खास नहीं लगी थी, लेकिन आज यह किताब पढ़ते हुए वह सोचने लगा—
"शायद पापा सही कह रहे थे। पैसा कमाने से ज्यादा जरूरी इसे सही जगह लगाने और धैर्य रखने की ताकत है!"
Morgan Housel इस अध्याय में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उदाहरण देते हैं—
Warren Buffett की कुल संपत्ति का 90% से ज्यादा हिस्सा तब बना, जब वह 50 साल के हो चुके थे। उन्होंने कोई जादू नहीं किया— बस उन्होंने निवेश को लंबे समय तक बनाए रखा और कंपाउंडिंग को अपना काम करने दिया।"
कंपाउंडिंग का जादू क्या है?
अगर आप ₹1,000 हर महीने किसी अच्छे फंड में लगाते हैं और 20-30 साल तक लगातार बनाए रखते हैं, तो यह छोटी-सी रकम करोड़ों में बदल सकती है।
पैसा बनाने का असली तरीका तेजी से नहीं, धीरे-धीरे और धैर्य के साथ काम करता है।
ज्यादातर लोग कंपाउंडिंग को नहीं समझते, क्योंकि वे जल्दबाजी में फैसले लेते हैं और निवेश को बीच में ही रोक देते हैं।
अब गोविंद को अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती समझ में आई—
वह हमेशा जल्दी अमीर बनने की सोचता था, लेकिन उसने कंपाउंडिंग के जादू को कभी नहीं अपनाया।
अगर वह कमाई का छोटा हिस्सा भी निवेश करता और धैर्य रखता, तो अब तक उसका पैसा अच्छा खासा बढ़ चुका होता।
असली अमीरी तेजी से पैसा कमाने में नहीं, बल्कि लंबे समय तक उसे बढ़ाने में है।
उसने अपने मोबाइल में एक SIP (Systematic Investment Plan) सेट किया और अमित को मैसेज किया—
"भाई, अब हर महीने थोड़ा-थोड़ा निवेश करूंगा। कंपाउंडिंग को अपना काम करने दूंगा!"
गोविन्द बुक के पाँचवाँ अध्याय में पहुंच गया था Getting Wealthy vs. Staying Wealthy
लेकिन अगला अध्याय पढ़ते ही वह ठहर गया—
पैसा कमाना आसान हो सकता है, लेकिन उसे बनाए रखना मुश्किल होता है। इसे बनाए रखने के लिए हमें ज्यादा जोखिम लेने से बचना चाहिए और बचत करने की आदत डालनी चाहिए।
गोविंद ने तुरंत खुद से सवाल किया—
"क्या मैंने सिर्फ पैसा कमाने पर ध्यान दिया है या इसे बचाने के बारे में भी सोचा है?"
गोविंद को अपने स्कूल के दोस्त, विकास की याद आई।
विकास बहुत जल्दी अमीर बन गया था। स्टार्टअप शुरू किया, कुछ ही सालों में करोड़ों का मुनाफा कमाया। लेकिन फिर वही पैसा खो भी दिया।
क्यों?
क्योंकि उसने पैसे को बचाने की कला नहीं सीखी थी।
पहले वह सोचता था कि पैसा जितनी तेजी से आएगा, उतनी ही तेजी से बढ़ेगा।
लेकिन उसने कभी नहीं सीखा कि ध्यान से निवेश और बचत किए बिना, पैसा रेत की तरह हाथ से फिसल सकता है।
Morgan Housel इस अध्याय में एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहते हैं—
अगर आप अमीर बनना चाहते हैं, तो आपको जोखिम लेना होगा। लेकिन अगर आप अमीर बने रहना चाहते हैं, तो आपको सतर्क रहना होगा।"
पैसा कमाने के लिए स्मार्ट तरीके से निवेश करना पड़ता है।
लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है इसे बचाने और लंबे समय तक टिकाए रखने की कला।
गलत फैसले और ज्यादा जोखिम पैसा उड़ाने का सबसे तेज़ तरीका होते हैं।
वह अब सिर्फ पैसा कमाने पर ध्यान नहीं देगा, बल्कि इसे बचाने और सुरक्षित निवेश करने पर भी फोकस करेगा।
बचत कोई कंजूसी नहीं, बल्कि फाइनेंशियल सिक्योरिटी का सबसे अच्छा तरीका है।
अब से अमीर बनने के साथ-साथ अमीर बने रहने का भी प्लान बनाएगा।
उसने तय किया कि वह अपनी कमाई का एक हिस्सा कम जोखिम वाले निवेशों में डालेगा और अपनी बचत की आदत मजबूत करेगा।
जब उसने अगला अध्याय खोला— "Tails, You Win"— तो उसे एक नई सच्चाई का एहसास हुआ।
हर बड़ा निवेश या खोज केवल कुछ सफल प्रयासों का परिणाम होता है। वॉरेन बफेट की संपत्ति का बड़ा हिस्सा उनके कुछ ही अच्छे निवेशों से आया है। इसलिए, असफलताओं से घबराने के बजाय लंबी अवधि में सफलता पर ध्यान देना चाहिए।
गोविंद ने किताब को कुछ देर के लिए बंद किया और सोचने लगा—
"क्या मैं असफलताओं से डरकर सही मौके गंवा रहा हूँ?"
गोविंद को याद आया कि जब उसने शेयर बाजार में पहली बार पैसा लगाया था, तो उसे नुकसान हुआ था।
वह डर गया और सोच लिया कि "स्टॉक मार्केट जुआ है, यह मेरे लिए नहीं है!"
लेकिन आज जब वह Morgan Housel की बात पढ़ रहा था, तो उसे एहसास हुआ कि शायद उसने बहुत जल्दी हार मान ली थी।
क्योंकि—
सभी निवेश सफल नहीं होते।
सिर्फ कुछ बड़े निवेश ही असली कमाई देते हैं।
गलतियाँ करना जरूरी है, क्योंकि वे सीखने का सबसे अच्छा तरीका हैं।
Morgan Housel इस अध्याय में वॉरेन बफेट का उदाहरण देते हैं—
बफेट ने हजारों निवेश किए, लेकिन उनकी असली संपत्ति सिर्फ 10-15 अच्छे निवेशों की वजह से बनी है।
Amazon, Google, और Apple जैसी कंपनियाँ हजारों प्रोजेक्ट्स पर काम करती हैं, लेकिन उनकी सफलता सिर्फ कुछ ही बड़ी खोजों से आती है।
असफलताओं को स्वीकार करें और हर गलती से सीखें।
यह मत सोचिए कि हर निवेश या प्रयास सफल होगा।
बड़ा सोचें और लंबे समय तक टिके रहें।
अब गोविंद समझ चुका था कि गलतियाँ और असफलताएँ सफलता की कीमत होती हैं।
अब वह छोटे नुकसान से डरना बंद करेगा।
वह समझ गया कि लॉन्ग टर्म में टिके रहना ही असली जीत है।
अब से वह असफलताओं से भागने की बजाय उनसे सीखने पर ध्यान देगा।
उसने फिर से निवेश शुरू करने का फैसला किया— लेकिन इस बार धैर्य और सीख के साथ।
अब वह जान चुका था कि "असफलता से डरने वाला ही असली हारता है!"
गोविंद ने एक और पेज पलटा। अब वह जिस अध्याय पर पहुँचा, उसका शीर्षक था— Freedom
असली संपत्ति यह है कि हम अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकें। पैसा हमें यह आजादी देता है कि हम अपने समय और फैसलों पर खुद नियंत्रण रख सकें।
गोविंद ठहर गया। उसने अपने आसपास देखा—
एक तरफ वे लोग थे जो दिन-रात काम कर रहे थे, लेकिन हमेशा तनाव में रहते थे।
दूसरी तरफ वे लोग थे जो अपनी शर्तों पर जी रहे थे, बिना किसी के दबाव के।
तभी उसके दिमाग में एक सवाल आया—
"क्या सच में पैसा सिर्फ चीजें खरीदने के लिए होता है, या यह हमें समय और आजादी भी देता है?"
गोविंद को अपने मोहल्ले के रमेश अंकल याद आए।
वे एक बड़ी कंपनी में अच्छे पद पर थे, लेकिन नौकरी छोड़ दी।
अब वे गाँव में रहते थे, खेती करते थे, सुबह जल्दी उठते, योग करते और शांति से जीवन जीते थे।
लोग कहते थे, "इतनी बड़ी नौकरी छोड़ दी? क्या बेवकूफी की!"
लेकिन रमेश अंकल मुस्कुराकर कहते—
"मैंने पैसा कमाया था, लेकिन असली कमाई तो अब कर रहा हूँ— आजादी की!"
गोविंद को अब समझ में आ रहा था कि असल में पैसे का असली उद्देश्य हमें ज्यादा चीजें खरीदने के लिए नहीं, बल्कि ज्यादा आजादी देने के लिए होना चाहिए।
Morgan Housel इस अध्याय में बताते हैं—
अगर आपको अपनी नौकरी, रिश्ते, या जिंदगी के किसी भी हिस्से में मजबूरी महसूस होती है, तो आपके पास असली आर्थिक आजादी नहीं है।
पैसा सिर्फ महंगी चीजें खरीदने के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए फैसले लेने की ताकत देने के लिए होना चाहिए।
ऐसा पैसा कमाना, जो आपको समय की आजादी दे।
ऐसा करियर चुनना, जो आपको मजबूरी में नहीं, बल्कि खुशी से करने को मिले।
ऐसा जीवन जीना, जहाँ आप खुद अपने फैसले ले सकें।
अब वह सिर्फ पैसा कमाने पर ध्यान नहीं देगा, बल्कि ऐसा पैसा कमाएगा जो उसे आजादी दे।
वह समझ गया कि "सफलता का मतलब सिर्फ बड़ी गाड़ी और बड़ा घर नहीं, बल्कि अपने समय और फैसलों पर खुद का नियंत्रण होना है।"
अब वह पैसा और समय की बैलेंस बनाने पर ध्यान देगा।
अब वह ऐसी चीजों में पैसा लगाएगा, जो उसे आजादी दें— स्टॉक, बिजनेस, स्किल्स और बचत।
गोविंद किताब के अगले पेज पर पहुँचा। इस अध्याय का नाम था— "Man in the Car Paradox"।
हम अक्सर महंगी चीजें इस उम्मीद में खरीदते हैं कि लोग हमें ज्यादा पसंद करेंगे, लेकिन सच यह है कि लोग हमें नहीं, बल्कि हमारी चीजों को देखते हैं। असली पहचान हमारे विचारों और व्यवहार से बनती है, न कि हमारी संपत्ति से।
गोविंद इस लाइन को दोबारा पढ़ता है। वह सोचने लगता है—
"क्या सच में लोग मुझे मेरी चीजों से आंकते हैं?"
तभी उसे मोहित भैया की याद आई।
मोहित भैया उसके मोहल्ले में सबसे अमीर माने जाते थे।
पिछले महीने उन्होंने एक महंगी BMW खरीदी थी। जब भी वे गाड़ी लेकर निकलते, लोग उनकी ओर देखते।
गोविंद को पहले लगता था कि लोग मोहित भैया से प्रभावित हैं, लेकिन अब उसे समझ में आ रहा था कि लोग असल में गाड़ी देख रहे थे, न कि मोहित भैया को।
कोई यह नहीं सोच रहा था कि उन्होंने कितनी मेहनत की, बस गाड़ी देखकर वाह-वाह कर रहे थे।
मतलब, हम चीजें इस उम्मीद में खरीदते हैं कि लोग हमें पसंद करेंगे, लेकिन वे हमें नहीं, हमारी चीजों को नोटिस कर रहे होते हैं!"
आप Ferrari में बैठे किसी आदमी को देखकर यह नहीं सोचते कि वह आदमी कितना अमीर है, बल्कि आप सोचते हैं कि अगर आपके पास Ferrari होती, तो लोग आपको अमीर समझते!"
लोग हमारी संपत्ति से प्रभावित नहीं होते, बल्कि वे सोचते हैं कि अगर उनके पास वही चीजें होतीं, तो वे कैसे दिखते!"
Morgan Housel इस अध्याय में बताते हैं कि
अगर हम सिर्फ दूसरों को दिखाने के लिए चीजें खरीद रहे हैं, तो हम गलत रास्ते पर हैं।
संपत्ति से ज्यादा जरूरी यह है कि हम कैसे सोचते हैं, कैसे जीते हैं और लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
लोग हमें नहीं, हमारी चीजों को नोटिस करते हैं, इसलिए दिखावे के पीछे भागने की जरूरत नहीं।
अब वह समझ गया कि महंगी चीजें लोगों को आकर्षित कर सकती हैं, लेकिन असली इज्जत हमारी सोच और व्यवहार से मिलती है।
अब वह सिर्फ इसीलिए कुछ नहीं खरीदेगा कि लोग उसे अमीर समझें।
वह अपने ज्ञान और सोच को बेहतर बनाएगा, क्योंकि असली पहचान विचारों से बनती है, न कि गाड़ियों और महंगे कपड़ों से।
अब वह दिखावे की चीजों पर खर्च नहीं करेगा, बल्कि खुद को और बेहतर बनाने में निवेश करेगा।
गोविंद किताब के अगले पेज पर पहुँचा। इस अध्याय का नाम था— "Wealth is What You Don’t See"।
वास्तविक धन वह होता है जो बचा रहता है, न कि वह जो खर्च कर दिया जाता है। कई लोग दिखावे के लिए पैसे खर्च करते हैं, जबकि असली अमीरी वह है जिसे हम नहीं दिखाते।"
गोविंद यह पढ़कर कुछ देर तक सोच में पड़ गया।
गोविंद को विशाल अंकल की याद आई, जो उसके मोहल्ले में रहते थे।
वे दिखने में एक साधारण इंसान थे— ना महंगे कपड़े, ना बड़ी गाड़ी, ना ही किसी तरह का दिखावा।
लेकिन एक दिन, जब उनके बेटे के एडमिशन की बात चली, तब पता चला कि विशाल अंकल के पास करोड़ों की संपत्ति है!
गोविंद को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ।
"कैसे?"
Morgan Housel बताते हैं कि:
असली अमीरी वह नहीं है जो लोग देख सकते हैं (महंगी गाड़ियाँ, बड़े घर, ब्रांडेड कपड़े), बल्कि वह है जो बचा हुआ है – आपके बैंक अकाउंट में, आपकी संपत्ति में।
जो लोग अपनी अमीरी दिखाने में ज्यादा व्यस्त रहते हैं, उनके पास बचाने के लिए बहुत कम पैसा होता है।
धन वह नहीं है जो आप खर्च करते हैं, बल्कि वह है जो आप बचाते हैं और निवेश करते हैं।"
अगर कोई Ferrari चला रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह अमीर है। हो सकता है कि उसने कर्ज लेकर वह कार खरीदी हो। असली अमीर वह है जिसने अपनी संपत्ति को संभालकर रखा है, चाहे वह दिखे या न दिखे।
अब गोविंद को समझ में आया कि धन को बचाना और सही जगह निवेश करना ही असली अमीरी है।
अब वह दिखावे पर खर्च करने के बजाय लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट पर ध्यान देगा।
अब वह लोगों की गाड़ियों, कपड़ों या लाइफस्टाइल को देखकर प्रभावित नहीं होगा, बल्कि यह सोचेगा कि उनकी असली फाइनेंशियल स्थिति क्या होगी।
अब वह फालतू चीजों पर खर्च नहीं करेगा और अपनी असली संपत्ति को बढ़ाने पर ध्यान देगा।
गोविंद किताब के अगले पेज पर पहुँचा। इस अध्याय का नाम था— "Save Money
बचत करना किसी खास उद्देश्य के लिए ही जरूरी नहीं है। यह हमें उन अनिश्चित परिस्थितियों से बचाता है, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
गोविंद को राहुल की याद आई, जो उसका पुराना दोस्त था।
राहुल एक अच्छी नौकरी करता था और हमेशा लेटेस्ट फोन, ब्रांडेड कपड़े, और महंगे गैजेट्स खरीदता था। वह सोचता था कि "पैसा कमाया ही इसीलिए जाता है कि उसे खर्च किया जाए!"
लेकिन फिर एक दिन उसकी नौकरी चली गई।
उसे लगा कि "जल्दी ही दूसरी नौकरी मिल जाएगी," लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कुछ महीनों में उसकी सारी सेविंग्स खत्म हो गईं।
अब वह कर्ज में डूब गया था, और उसे दोस्तों-रिश्तेदारों से उधार मांगना पड़ रहा था।
Morgan Housel कहते हैं कि:
बचत करना सिर्फ किसी बड़े खर्च या निवेश के लिए नहीं होता, यह हमारी सुरक्षा कवच (financial cushion) भी होता है।
हमेशा सब कुछ प्लान के हिसाब से नहीं चलता।
आप सोचते हैं कि "मुझे हमेशा सैलरी मिलेगी," लेकिन क्या होगा अगर एक दिन नौकरी चली जाए?
आप सोचते हैं कि "मेरी हेल्थ अच्छी है," लेकिन क्या होगा अगर अचानक मेडिकल इमरजेंसी आ जाए?
सेविंग्स हमें उन अनिश्चित परिस्थितियों से बचाती हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
अमीर बनने का सबसे सीधा तरीका ज्यादा कमाना नहीं, बल्कि ज्यादा बचाना है।
पैसा कमाने के लिए टैलेंट और मेहनत चाहिए, लेकिन उसे बचाने के लिए अनुशासन (discipline) चाहिए।
अब गोविंद को एहसास हुआ कि राहुल की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने कोई बचत नहीं की थी।
अब वह यह सोचकर खर्च नहीं करेगा कि "अभी तो बहुत पैसा आ रहा है," बल्कि वह इमरजेंसी फंड बनाएगा।
वह समझ गया कि ज्यादा पैसा कमाना जरूरी नहीं, बल्कि जो भी पैसा आए, उसे समझदारी से बचाना और इन्वेस्ट करना जरूरी है।
वह अपनी आय का कम से कम 30% बचाएगा।
वह अपनी बचत को सिर्फ बैंक में रखने के बजाय निवेश भी करेगा।
अब वह उन चीजों पर खर्च नहीं करेगा, जो केवल दिखावे के लिए होती हैं।
गोविंद किताब के अगले पेज पर पहुँचा। इस अध्याय का नाम था— Reasonable > Rational
हर वित्तीय निर्णय पूरी तरह से तर्कसंगत नहीं हो सकता। कभी-कभी हमें अपनी भावनाओं और मानसिक शांति के अनुसार फैसले लेने पड़ते हैं।
गोविंद को अपने पिता की एक पुरानी बात याद आई।
जब वह कॉलेज में था, तब उसके पिता ने उसे "शेयर मार्केट में पैसा लगाने" की सलाह दी थी।
लेकिन गोविंद ने सोचा, "यह बहुत रिस्की है। मैं अपने पैसे को सेविंग अकाउंट में ही रखूँगा, जहाँ यह सुरक्षित रहेगा!"
सालों बाद, उसने देखा कि उसके दोस्त अमित ने वही पैसा SIP में इन्वेस्ट किया था और अब उसकी वैल्यू तीन गुना हो चुकी थी!
गोविंद को लगा कि उसने गलत फैसला किया।
लेकिन फिर उसे Morgan Housel की यह लाइन याद आई—
हर फैसला सिर्फ तर्कसंगत (rational) नहीं हो सकता, कभी-कभी हमें जो उचित (reasonable) लगे, वही करना चाहिए।"
Morgan Housel का सबक
हमेशा सबसे तर्कसंगत (rational) वित्तीय निर्णय लेना जरूरी नहीं होता, बल्कि जो हमें मानसिक रूप से सहज लगे, वही सबसे अच्छा होता है।
कई लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने से डरते हैं, इसलिए वे फिक्स्ड डिपॉजिट या गोल्ड में पैसा लगाते हैं।
क्या यह बेस्ट फाइनेंशियल डिसीजन है? नहीं।
लेकिन क्या यह उन्हें मानसिक शांति देता है? हाँ!
कुछ लोग घर खरीदना पसंद करते हैं, जबकि कुछ किराए पर रहना बेहतर समझते हैं।
दोनों के अपने फायदे-नुकसान हैं।
लेकिन सही फैसला वही है जो आपकी ज़रूरतों और भावनाओं के हिसाब से सही लगे।
अगर कोई पैसा बचाने के लिए बहुत ज्यादा कटौती करने लगे और अपनी लाइफस्टाइल से दुखी हो जाए, तो यह सही फाइनेंशियल डिसीजन नहीं कहा जा सकता।
पैसे का असली मकसद हमारी जिंदगी को आसान बनाना है, न कि हमें लगातार चिंता में डालना।
अब गोविंद समझ गया कि "सबसे सही" फैसला वही नहीं होता, जो सबसे ज्यादा तर्कसंगत हो, बल्कि वही होता है, जो उसकी जिंदगी के हिसाब से सबसे अच्छा हो।
अब वह अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग में सिर्फ एक्सपर्ट्स की सलाह पर नहीं, बल्कि अपनी भावनात्मक ज़रूरतों को भी ध्यान में रखेगा।
अब वह शेयर मार्केट में पैसा लगाएगा, लेकिन उतना ही, जितना उसके लिए मानसिक रूप से सहज हो।
अब वह पैसा सेव भी करेगा, लेकिन अपनी लाइफस्टाइल से समझौता किए बिना।
वह अपना पैसा बैलेंस तरीके से निवेश करेगा – थोड़ी सेविंग्स, थोड़ा इन्वेस्टमेंट।
वह अपने हर फाइनेंशियल डिसीजन में "मानसिक शांति" को प्राथमिकता देगा।
वह अब सिर्फ "सबसे ज्यादा रिटर्न" नहीं, बल्कि "सबसे ज्यादा संतोष" पाने की कोशिश करेगा।
गोविंद ने किताब का अगला पन्ना पलटा। इस अध्याय का नाम था— Surprise
भविष्य की भविष्यवाणी करना लगभग असंभव है। हमें अपनी योजना को इस तरह बनाना चाहिए कि वह बदलावों के लिए तैयार रहे।"
गोविंद को कोरोना महामारी के समय की याद आई।
उसने सोचा भी नहीं था कि पूरा देश लॉकडाउन में चला जाएगा।
कई लोग अपनी नौकरियाँ खो देंगे, बिज़नेस बंद हो जाएँगे।
जिन्होंने इमरजेंसी फंड नहीं बनाया था, वे बहुत परेशान हो गए थे।
गोविंद के एक कलीग, रवि, के पास अच्छी सैलरी थी, लेकिन उसने कभी सेविंग्स पर ध्यान नहीं दिया।
जब उसकी नौकरी चली गई, तो उसके पास बिल भरने तक के पैसे नहीं थे।
वहीं, गोविंद ने लॉकडाउन के 2 महीने बिना किसी चिंता के बिताए, क्योंकि उसने पहले से सेविंग्स रखी थी।
उस दिन गोविंद ने समझा कि जिंदगी में सबसे बड़ा सबक यही है – हमें अनिश्चितताओं के लिए तैयार रहना चाहिए!
भविष्य कोई भी सटीक रूप से प्रेडिक्ट नहीं कर सकता।
हमें हमेशा प्लान-B रखना चाहिए, क्योंकि परिस्थितियाँ कभी भी बदल सकती हैं।
इमरजेंसी फंड बनाना बहुत ज़रूरी है।
किसी भी निवेश में हमेशा एक सुरक्षा जाल (Safety Net) होना चाहिए।
किसी को 90 के दशक में लगा था कि Kodak कंपनी हमेशा टॉप पर रहेगी, लेकिन डिजिटल कैमरों ने उसे खत्म कर दिया।
Nokia दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी थी, लेकिन स्मार्टफोन के दौर में पीछे रह गई।
2008 की फाइनेंशियल क्राइसिस और 2020 का कोरोना—दोनों ने दिखाया कि भविष्य में कुछ भी हो सकता है।
अब गोविंद समझ गया कि "Predict करने के बजाय Prepare करना ज्यादा जरूरी है!"
अब वह अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग में इमरजेंसी फंड को सबसे ऊपर रखेगा।
वह नौकरी और इनकम के नए सोर्सेस पर भी ध्यान देगा।
अब वह हर संभावित जोखिम को ध्यान में रखकर अपने पैसे का मैनेजमेंट करेगा।
वह 6 महीने का इमरजेंसी फंड बनाएगा।
वह अपनी इनकम के कई सोर्स बनाएगा, ताकि अगर एक इनकम बंद भी हो जाए, तो दूसरा सहारा हो।
वह अब ज्यादा सतर्क होकर इन्वेस्ट करेगा, ताकि उसके पोर्टफोलियो में बैलेंस बना रहे।
गोविंद अब पूरी तरह से किताब में डूब चुका था। उसने अगले पन्ने को पलटा और पढ़ना शुरू किया।
हमेशा एक सुरक्षा जाल (Margin of Safety) रखना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि अगर चीजें गलत भी हो जाएं, तो हम पूरी तरह से बर्बाद न हों।
गोविंद को अपने दोस्त अमित की याद आई।
अमित ने पिछले साल स्टॉक मार्केट में अपना पूरा पैसा लगा दिया था—बिना किसी सुरक्षा जाल के।
वह पूरी तरह से कॉन्फिडेंट था कि उसे डबल रिटर्न मिलेगा। लेकिन कुछ महीनों बाद, मार्केट क्रैश हो गया!
अमित का 50% पैसा डूब गया।
अब अमित के पास कोई बैकअप प्लान नहीं था।
वह टेंशन में रहने लगा, क्योंकि उसके पास रेंट भरने और EMI देने के पैसे भी नहीं थे।
उस दिन गोविंद ने समझा कि जोखिम लेना जरूरी है, लेकिन हमेशा एक बैकअप प्लान होना चाहिए!
गलतियाँ इंसानी फितरत का हिस्सा हैं। कोई भी व्यक्ति 100% सही निर्णय नहीं ले सकता।
अगर आपकी कोई योजना गलत साबित हो जाए, तो आपको पूरी तरह से खत्म नहीं होना चाहिए।
इसलिए, हमें हमेशा "Margin of Safety" यानी सुरक्षा का एक लेयर रखना चाहिए।
एक अच्छा ड्राइवर हमेशा अपनी कार को थोड़ी दूरी पर रोकता है, ताकि अगर अचानक ब्रेक लगानी पड़े तो एक्सीडेंट न हो।
बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ्ट के शुरुआती दिनों में इतनी ज्यादा कैश सेविंग रखी थी कि कंपनी बिना किसी इनकम के एक साल तक चल सकती थी।
स्टॉक मार्केट के बड़े निवेशक वॉरेन बफेट कभी भी अपना पूरा पैसा एक ही जगह नहीं लगाते, वे हमेशा सुरक्षा मार्जिन रखते हैं।
अब गोविंद को एहसास हुआ कि वह भी कई बार बिना किसी "सुरक्षा जाल" के फैसले ले चुका था।
वह सोचने लगा कि अगर उसकी नौकरी अचानक चली जाए, तो उसके पास क्या प्लान है?
अपने खर्चों में एक बैकअप अमाउंट रखेगा, ताकि अचानक जरूरत पड़ने पर परेशान न हो।
कभी भी अपनी पूरी इनकम को जोखिम में नहीं डालेगा, हमेशा एक सुरक्षित हिस्सा रखेगा।
Emergency Fund को Priority देगा।
वह अब अपने खर्चों का 6 महीने का बैकअप रखेगा।
वह अपने सभी निवेशों में एक सुरक्षा मार्जिन रखेगा, ताकि एक खराब फैसला उसे पूरी तरह बर्बाद न कर सके।
वह जल्दबाजी में निवेश करने के बजाय लॉन्ग-टर्म प्लानिंग पर ध्यान देगा।
गोविंद ने पन्ना पलटा और अगला अध्याय पढ़ना शुरू किया।
हमारी पसंद और प्राथमिकताएँ समय के साथ बदलती हैं। इसलिए, हमें अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को लचीला रखना चाहिए ताकि हम भविष्य में जरूरत के हिसाब से बदलाव कर सकें।
गोविंद को अपना पांच साल पुराना सपना याद आया।
उस वक्त वह सोचता था कि उसे एक महंगी बाइक खरीदनी है।
उसने इसके लिए पैसे भी जोड़ने शुरू कर दिए थे।
लेकिन अब?
अब उसका सपना पूरी तरह बदल चुका था!
अब उसे फाइनेंशियल फ्रीडम चाहिए थी, ना कि कोई महंगी बाइक।
अगर उसने 5 साल पहले ही अपने सारे पैसे बाइक पर खर्च कर दिए होते, तो आज वह अफसोस कर रहा होता।
लेकिन सौभाग्य से उसने अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को लचीला रखा, जिससे आज वह अपने नए लक्ष्य के लिए पैसा बचा पा रहा था।
हमारी पसंद और प्राथमिकताएँ समय के साथ बदलती हैं।
जो चीज़ आज हमें जरूरी लगती है, हो सकता है कि 5-10 साल बाद उसकी कोई अहमियत न रहे।
इसलिए हमें अपने निवेश और खर्चों की प्लानिंग इस तरह करनी चाहिए कि हम भविष्य में बदलाव के लिए तैयार रहें।
बहुत से लोग 20 की उम्र में सोचते हैं कि उन्हें लग्जरी कार चाहिए, लेकिन 30 की उम्र में वे फाइनेंशियल सिक्योरिटी को ज्यादा महत्व देने लगते हैं।
कई लोग अपने करियर में बदलाव करते हैं, लेकिन अगर उन्होंने खुद को सिर्फ एक ही चीज़ तक सीमित रखा होता, तो वे कभी ग्रो नहीं कर पाते।
निवेश की दुनिया में, जो लोग फ्लेक्सिबल होते हैं, वे मार्केट के उतार-चढ़ाव को बेहतर तरीके से हैंडल कर पाते हैं।
अब गोविंद समझ चुका था कि उसे अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को पूरी तरह से रigid नहीं रखना चाहिए।
वह भविष्य में अपने लक्ष्यों के बदलने के लिए तैयार रहेगा।
अपने खर्चों और निवेश को समय-समय पर रिव्यू करेगा।
फाइनेंशियल डिसीजन लेते समय लचीलापन रखेगा, ताकि अगर भविष्य में उसकी प्राथमिकताएँ बदलें तो वह आसानी से एडजस्ट कर सके।
कोई भी बड़ा खर्च करने से पहले खुद से पूछेगा – क्या मैं इसे अगले 5 साल बाद भी जरूरी मानूंगा?
अब वह कोई भी बड़ा निवेश करने से पहले अपने भविष्य के "बदलते" वर्जन को ध्यान में रखेगा।
वह हर साल अपने फाइनेंशियल गोल्स का एनालिसिस करेगा, ताकि समय के साथ जरूरी बदलाव कर सके।
वह अब सिर्फ आज की जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि भविष्य को ध्यान में रखते हुए प्लानिंग करेगा।
गोविंद ने अगला पन्ना पलटा।
उसकी आँखों के सामने लिखा था: Nothing’s Free
हर अच्छी चीज की एक कीमत होती है। शेयर बाजार में निवेश करना आसान लगता है, लेकिन इसमें मानसिक तनाव और अस्थिरता झेलने की कीमत चुकानी पड़ती है।
गोविंद को याद आया, जब उसने पहली बार स्टॉक मार्केट में निवेश किया था।
उसने सुना था कि इसमें बहुत पैसा कमाया जा सकता है – बस शेयर खरीदो और दोगुना मुनाफा कमाओ!
लेकिन जब बाजार गिरा, तो वह घबरा गया।
उसे लगा कि उसका पूरा पैसा डूब जाएगा।
उसने डरकर अपने सारे शेयर बेच दिए और घाटा उठा लिया।
लेकिन बाद में वही शेयर और भी ज्यादा कीमत पर चढ़ गए।
अगर वह थोड़ा धैर्य रखता, तो वह नुकसान नहीं उठाता।
Morgan Housel का सबक – "हर अच्छी चीज़ की एक कीमत होती है!"
अगर आप फाइनेंशियल फ्रीडम चाहते हैं, तो धैर्य और अनुशासन की कीमत चुकानी होगी।
अगर आप शेयर बाजार में पैसा कमाना चाहते हैं, तो मानसिक उतार-चढ़ाव को सहने की हिम्मत रखनी होगी।
हर सफल इन्वेस्टर को अस्थिरता (Volatility) और धैर्य की कीमत चुकानी पड़ती है – यह फ्री में नहीं आता!
स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करना फ्री नहीं है – आपको मार्केट के उतार-चढ़ाव सहने की कीमत चुकानी पड़ती है।
बिजनेस शुरू करना फ्री नहीं है – आपको असफलताओं और संघर्ष की कीमत चुकानी पड़ती है।
अच्छी हेल्थ फ्री नहीं है – आपको जंक फूड छोड़ने और एक्सरसाइज की कीमत चुकानी पड़ती है।
अब गोविंद समझ चुका था कि कोई भी बड़ा फायदा बिना किसी कीमत के नहीं मिलता।
अगर वह वास्तव में अमीर बनना चाहता है, तो उसे धैर्य, अनुशासन और मानसिक शांति की कीमत चुकानी होगी।
स्टॉक मार्केट में लॉन्ग-टर्म इन्वेस्ट करेगा, छोटे उतार-चढ़ाव से घबराएगा नहीं।
फाइनेंशियल प्लानिंग के दौरान धैर्य बनाए रखेगा।
संघर्ष और मानसिक तनाव को "कीमत" की तरह देखेगा, जिससे उसे बड़ा फायदा मिलेगा।
अब वह कोई भी फाइनेंशियल डिसीजन लेने से पहले ये सोचेगा – "इसका असली खर्च क्या है?"
वह मानसिक तनाव, धैर्य और अनुशासन को इन्वेस्टमेंट का हिस्सा मानेगा।
वह त्वरित लाभ (Quick Money) की बजाय लॉन्ग-टर्म ग्रोथ पर ध्यान देगा।
गोविंद अगले पन्ने पर पहुँचा।
जैसे ही उसने पढ़ा अध्याय का टाईटल You & Me
वह चौंक गया –
हर व्यक्ति की निवेश रणनीति अलग होती है। किसी के लिए स्टॉक्स में निवेश करना सही हो सकता है, तो किसी के लिए रियल एस्टेट। हमें अपनी जरूरतों और मानसिकता के अनुसार फैसला लेना चाहिए।
गोविंद को याद आया कि जब उसने पहली बार इन्वेस्टमेंट के बारे में सोचना शुरू किया था, तो उसने कई यूट्यूब वीडियो और ब्लॉग्स पढ़े थे।
कुछ लोग कह रहे थे कि "शेयर मार्केट ही बेस्ट इन्वेस्टमेंट है!"
कुछ लोग रियल एस्टेट की तरफ भागने को कह रहे थे।
और कुछ लोग गोल्ड और FD को ही सेफ ऑप्शन मानते थे।
उसका दिमाग कंफ्यूज हो गया था।
वह सोचने लगा था कि आखिर सही ऑप्शन कौन-सा है?
लेकिन आज Morgan Housel की ये बात उसके दिमाग में बैठ गई –
हर किसी की इन्वेस्टमेंट रणनीति अलग होती है। जो एक के लिए सही है, वह दूसरे के लिए गलत हो सकता है!"
हर व्यक्ति का बैकग्राउंड, रिस्क लेने की क्षमता और भविष्य की प्लानिंग अलग होती है।
कोई 5 साल में पैसा कमाना चाहता है, तो कोई 20 साल के लिए इन्वेस्ट करता है।
इसलिए हमें दूसरों की नहीं, बल्कि अपनी जरूरतों के अनुसार इन्वेस्टमेंट प्लान बनानी चाहिए।
अब गोविंद को समझ में आ गया था कि दूसरों के कहने पर निवेश करना सही नहीं है।
मुझे कब पैसे की जरूरत होगी? (Short Term vs. Long Term)
मुझे कितना रिस्क लेना चाहिए? (High Risk vs. Safe Investment)
मुझे क्या समझ आता है? (Stock, Gold, Real Estate, FD?)
वह शेयर मार्केट में निवेश करेगा, लेकिन सिर्फ उतना ही पैसा लगाएगा, जितना वह 10-20 साल के लिए छोड़ सकता है।
वह गोल्ड में भी निवेश करेगा, ताकि उसके पास सुरक्षित संपत्ति रहे।
वह दूसरों की बातों में आकर निवेश नहीं करेगा, बल्कि खुद रिसर्च करके फैसला लेगा।
अब वह अपनी इन्वेस्टमेंट को दूसरों के हिसाब से नहीं, बल्कि अपने हिसाब से तय करेगा।
वह धैर्य और लॉन्ग-टर्म प्लानिंग पर ध्यान देगा।
वह अपनी फाइनेंशियल स्ट्रेटजी को समय-समय पर रिव्यू करेगा, ताकि वह सही दिशा में आगे बढ़ सके।
गोविंद ने किताब का अगला पन्ना पलटा।
जैसे ही उसने पढ़ना शुरू किया The Seduction of Pessimism
एक लाइन ने उसे अंदर तक झकझोर दिया –
नकारात्मक खबरें जल्दी ध्यान आकर्षित करती हैं, जबकि सकारात्मक बदलाव धीरे-धीरे होते हैं। इसलिए हमें फाइनेंशियल निर्णय लेते समय डर के बजाय लॉन्ग-टर्म ग्रोथ पर ध्यान देना चाहिए।
गोविंद को याद आया कि जब उसने पहली बार शेयर मार्केट में पैसे लगाने का सोचा था, तब हर जगह डराने वाली खबरें थीं –
शेयर मार्केट गिर रहा है!"
XYZ कंपनी के स्टॉक्स डूब गए!"
रिसेशन आ रहा है, संभलकर इन्वेस्ट करो!"
यह सब देखकर वह डर गया था।
उसे लगा था कि शेयर मार्केट बहुत रिस्की है और उसे इसमें इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए।
लेकिन Morgan Housel की ये बात उसके दिमाग में बैठ गई –
लोगों को डराने वाली बातें ज्यादा जल्दी समझ में आती हैं, जबकि असली ग्रोथ धीरे-धीरे होती है!"
शेयर मार्केट या कोई भी इन्वेस्टमेंट हर दिन ऊपर-नीचे होता रहेगा।
छोटे उतार-चढ़ाव से घबराने की जरूरत नहीं, बल्कि लॉन्ग-टर्म में फोकस करना जरूरी है।
अगर आप धैर्य रखेंगे और सही जगह निवेश करेंगे, तो धीरे-धीरे ग्रोथ होगी।
अमीर लोग इसीलिए सफल होते हैं क्योंकि वे धैर्य रखते हैं और छोटे नुकसान से डरते नहीं हैं।
गोविंद की गलती – वह डर के कारण इन्वेस्टमेंट नहीं कर पाया!
गोविंद को अब अपनी गलती समझ में आ रही थी।
पहले, वह न्यूज और लोगों की बातें सुनकर डर जाता था।
वह शेयर मार्केट में पैसे लगाने से हिचकिचाता था, क्योंकि उसे हर दिन की उतार-चढ़ाव की चिंता होती थी।
लेकिन अब उसे समझ में आ गया कि असली ग्रोथ धीरे-धीरे होती है!
अब वह छोटे उतार-चढ़ाव से नहीं घबराएगा।
वह लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट को प्राथमिकता देगा।
वह डर फैलाने वाली न्यूज और अफवाहों से दूर रहेगा और खुद रिसर्च करेगा।
वह समझ चुका है कि सफलता धीरे-धीरे मिलती है, बस धैर्य रखना जरूरी है।
अब वह जानता है कि डरने से पैसा नहीं बनता।
पैसा बनाने के लिए धैर्य, समझदारी और लॉन्ग-टर्म सोच जरूरी है!
गोविंद ने किताब के अगले अध्याय का शीर्षक पढ़ा –
When You’ll Believe Anything
(जब हम किसी भी चीज़ पर विश्वास कर लेते हैं)
इस टाइटल को देखकर गोविंद और भी उत्सुक हो गया।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि लोग बिना सोचे-समझे कुछ भी मान लेते हैं?
जैसे ही उसने पढ़ना शुरू किया, एक लाइन ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया –
हम अक्सर उन चीजों पर भरोसा कर लेते हैं, जो हमारे विश्वासों को मजबूत करती हैं। इसलिए हमें किसी भी फाइनेंशियल सलाह को अपनाने से पहले तर्कसंगत सोच रखनी चाहिए।
यानी लोग वही बातें सच मानते हैं, जो उनके पुराने विश्वासों से मेल खाती हैं!
गोविंद को एक पुरानी बात याद आ गई।
कुछ साल पहले, जब उसने पहली बार शेयर मार्केट में दिलचस्पी ली थी, तब उसके एक दोस्त ने कहा था –
शेयर मार्केट सिर्फ अमीरों का खेल है, आम लोग इसमें सिर्फ पैसा गंवाते हैं!"
गोविंद ने इसे सच मान लिया, बिना यह जाने कि क्या यह वास्तव में सही है।
वह खुद रिसर्च करने के बजाय दूसरों की बातों पर भरोसा करता रहा।
उसने कभी यह नहीं समझा कि लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट और सही स्ट्रेटजी से पैसा बनाया जा सकता है।
अब Morgan Housel की यह बात सुनकर उसे अपनी गलती समझ आई –
हमें किसी भी फाइनेंशियल सलाह को अपनाने से पहले तर्कसंगत सोच रखनी चाहिए!"
हर जानकारी को सही मानने से पहले उसे परखो।
अपने पुराने विश्वासों को चैलेंज करो और नए नजरिए से सोचो।
फाइनेंशियल डिसीजन लेने से पहले खुद रिसर्च करो, सिर्फ लोगों की बातों पर भरोसा मत करो।
जो बातें आपको अच्छी लग रही हैं, हो सकता है वे सिर्फ आपकी सोच को मजबूत कर रही हों, लेकिन सच न हों!
अब गोविंद ने ठान लिया कि –
वह बिना सोचे-समझे किसी भी फाइनेंशियल सलाह को नहीं मानेगा।
वह खुद रिसर्च करेगा और सही निर्णय लेगा।
वह अपनी पुरानी मान्यताओं को चैलेंज करेगा और नए नजरिए से सोचेगा।
अब वह जान चुका है कि बिना जांचे-परखे किसी भी बात को मान लेना सबसे बड़ी गलती हो सकती है।
सफलता पाने के लिए अपनी सोच को विकसित करना और सही निर्णय लेना जरूरी है!
गोविंद ने किताब का आखिरी अध्याय पढ़ा –
All Together Now
(सब कुछ एक साथ जुड़ता है)
यह अध्याय सबसे महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने सभी सीखों को एक जगह जोड़ दिया।
(सफलता सिर्फ एक चीज से नहीं आती, यह सब कुछ मिलाकर बनती है)
Morgan Housel लिखते हैं –
सफल वित्तीय निर्णय एक-दो चीजों से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी सही आदतों से बनते हैं। धैर्य, बचत, समझदारी और सही निवेश का संयोजन ही असली अमीरी की ओर ले जाता है।"
यानी पैसा कमाने, बचाने और बढ़ाने की कोई एक जादुई ट्रिक नहीं होती।
हमें कई अच्छी आदतों को जोड़कर सही निर्णय लेने होते हैं।
और अब – "All Together Now" ने उसे यह सिखाया कि –
अकेले कोई भी फाइनेंशियल टिप्स काम नहीं करती, सबका मिलाजुला असर होता है।
असली सफलता धैर्य, बचत, समझदारी और सही निवेश से आती है।
छोटी-छोटी अच्छी आदतें जोड़कर ही बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
अब गोविंद ने तय कर लिया –
वह जल्दबाजी में कोई फाइनेंशियल फैसला नहीं लेगा।
वह सिर्फ पैसा कमाने पर नहीं, बल्कि उसे बचाने और बढ़ाने पर ध्यान देगा।
वह बिना रिसर्च किए किसी की भी बात पर भरोसा नहीं करेगा।
वह अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को लंबी अवधि के लिए बनाएगा।
अब वह असली अमीरी की ओर पहला कदम बढ़ा चुका था।
अगर आपको भी पैसे को सही तरीके से समझना है, निवेश करना सीखना है, और अपने फ्यूचर को सिक्योर करना है, तो ऐसी और भी दमदार किताबों की समरी के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें!
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