The One Thing by Gary Keller | Book Summary in Hindi | Focus की ताक़त समझो | Anil Saharan
Hello friends! आपका स्वागत है, मैं हूँ आपका दोस्त Anil Saharan। आज हम बात करने वाले हैं The One Thing – Gary Keller and Jay Papasan के बारे में...
विनय, एक युवा पेशेवर, अपनी करियर में लगातार कोशिश कर रहा था। वह दिन-रात कई चीज़ों को एक साथ करने में जुटा रहता था—ईमेल्स, मीटिंग्स, सोशल मीडिया अपडेट्स, और एक दूसरे कामों की लिस्ट। हालांकि, जितना वह ज्यादा काम करता, उतना ही उसे लगता कि कुछ भी पूरा नहीं हो रहा।
विनय को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कितना मेहनत कर रहा है, फिर भी वह अपनी ज़िंदगी में उस तरह का प्रगति क्यों नहीं देख पा रहा, जैसा उसे चाहिए था। उसका मन हमेशा यही सोचता था कि "अगर मैं और मेहनत करूँ, तो शायद चीज़ें ठीक हो जाएं।" लेकिन हर दिन की भाग-दौड़ में वह थककर टूट चुका था और परिणाम वही के वही थे।
फिर एक दिन, उसके पुराने दोस्त समीर ने उसे एक किताब दी – The One Thing। समीर ने कहा, "विनय, जब तक तुम ये नहीं समझोगे कि सबसे महत्वपूर्ण क्या है, तुम्हारा प्रयास कहीं नहीं जाएगा। यह किताब तुम्हारे लिए है।"
विनय ने किताब को खोला और पहला अध्याय पढ़ा।
जैसे ही उसने पहला पन्ना खोला, उस पर लिखा था: The Lies That Mislead and Derail Us — "वह झूठ जो हमें भटकाते हैं और रास्ते से हटा देते हैं।" विनय की आँखों में एक चमक सी आ गई। वह हमेशा यही सोचता था कि अगर वह एक साथ कई काम करेगा, तो ज्यादा सफल होगा। "मल्टीटास्किंग" उसका मंत्र था, और वह इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना चुका था।
जैसे ही उसने पहला अध्याय पढ़ना शुरू किया, उसके दिमाग में एक हलचल सी मच गई। "ज़्यादातर लोग मानते हैं कि सफलता के लिए मल्टीटास्किंग जरूरी है, लेकिन यह गलत है।"
विनय को यह पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि यही वह सोच था जिसे उसने अब तक सही माना था। किताब ने यह भी लिखा था, "हम अगर कई चीज़ों पर एक साथ ध्यान दें, तो कोई भी काम अच्छे से नहीं कर पाते।" विनय ने सोचा, "क्या यह सच है? क्या मैं सचमुच कई कामों में उलझकर अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा हूँ?"
क्या एक ही काम पर ध्यान देना सच में बेहतर है?
वह अगले पन्ने पर पहुंचा, और पढ़ा "एक समय में केवल एक चीज़ पर फोकस करें। यही सफलता का राज़ है।" यह वाक्य उसकी सोच को पूरी तरह से बदलने के लिए पर्याप्त था।
विनय को यह एहसास हुआ कि वह अपनी ज़िंदगी में पूरी तरह से गलत दिशा में जा रहा था। वह जो सोचता था कि उसे बहु-कार्य करने से सफलता मिलेगी, वही सोच उसे पीछे खींच रही थी। एक समय में एक ही चीज़ पर ध्यान केंद्रित करना, यही वह मार्ग था जिस पर उसे आगे बढ़ने की जरूरत थी।
विनय ने किताब को बंद किया और सोचने लगा: "अगर यह सच है, तो मुझे अपनी दिनचर्या बदलनी होगी।" वह जानता था कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन अगर उसे असली सफलता चाहिए, तो उसे अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय करना होगा।
यह पहला कदम था, और विनय ने ठान लिया था कि वह अब एक समय में केवल एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करेगा। उसने अपनी योजनाओं को और ज्यादा साफ और स्पष्ट बनाने का फैसला किया, ताकि उसे सही दिशा में काम करने में मदद मिल सके।
विनय ने किताब को बंद किया और गहरे सोच में डूब गया।
अभी भी उसे यह यकीन नहीं हो पा रहा था कि उसकी पुरानी सोच पूरी तरह गलत थी। एक समय में कई काम करने की आदत, जो उसने हमेशा सफलता के लिए जरूरी समझी थी, अब उसे उलझन में डाल रही थी। लेकिन अब किताब ने एक नया रास्ता दिखाया था।
दूसरे अध्याय में जो लिखा था, वह उसे समझ में आ रहा था।
“ज़्यादातर सफल लोग उस एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो उन्हें सबसे ज़्यादा फर्क डाले।” यह वाक्य उसके दिमाग में गूंजने लगा। उसकी आँखों में चमक आ गई। उसे अब यह समझ में आने लगा था कि सफल लोग अलग-अलग चीज़ों को नहीं, बल्कि अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता को पहचानते हैं और उस पर पूरी तरह से फोकस करते हैं।
विनय ने सोचा, “क्या ऐसा सचमुच है? क्या मुझे भी अपनी एक सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पहचाननी चाहिए?” वह जानता था कि अगर वह अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता पर ध्यान केंद्रित करता है, तो बाकी सभी काम अपने आप आसान हो सकते हैं।
अगले दिन, विनय ने अपनी सुबह की शुरुआत उसी तरह की थी जैसे वह हमेशा करता था—निरंतर कामों की लिस्ट में खुद को उलझाकर। लेकिन आज, उसने अपनी योजना को फिर से देखा। एक समय में एक ही चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। उसने अपने सभी छोटे-छोटे कामों को प्राथमिकता दी और तय किया कि जो सबसे ज़्यादा जरूरी है, उस पर ही वह ध्यान देगा।
किताब में जो लिखा था, वह अब विनय की समझ में आ रहा था। “अगर हम उस एक चीज़ को पहचान लें, तो बाकी सारी चीज़ें खुद ब खुद आसान हो जाती हैं।” यही विनय का नया तरीका बन चुका था।
विनय ने अपनी पुरानी आदतों को छोड़ दिया। अब वह दिनभर में सिर्फ एक ही चीज़ पर ध्यान केंद्रित करता था, जो उसे सबसे ज़्यादा फर्क डालती। जब उसने अपनी प्राथमिकता को पहचान लिया, तो बाकी सारी चीज़ें अपने आप सही दिशा में जाने लगीं। उसकी उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई, और मानसिक शांति भी मिली।
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चलिए, अब वापस चलते हैं कहानी की उसी मोड़ पर... जहाँ से सब कुछ बदलने वाला था।"
विनय ने किताब के दूसरे अध्याय को फिर से पढ़ा, और उसे एहसास हुआ कि असली सफलता वही है जब हम अपनी ज़िंदगी की सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण चीज़ को पहचानकर उस पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करते है
विनय ने किताब को बंद किया और विचारों में खो गया।
किताब ने उसे बहुत कुछ सिखाया था, लेकिन अब वह महसूस कर रहा था कि एक और चीज़ उसे समझनी बाकी है। क्या उसे सच में अपनी ज़िंदगी का उद्देश्य पता है?
वह एक पेशेवर था, लगातार कामों में डूबा रहता था, लेकिन क्या वह वही कर रहा था जो उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण था? क्या उसका काम, उसकी ज़िंदगी का उद्देश्य था? यही सवाल उसे परेशान करने लगा था।
विनय ने The One Thing की दूसरी किताब के अगले अध्याय को पढ़ा, जिसका नाम था: Live with Purpose। पढ़ते ही उसके मन में एक हलचल सी हुई। "अपने जीवन का उद्देश्य तय करें, ताकि आपकी ऊर्जा और समय सही दिशा में खर्च हो।"
विनय को यह विचार बिल्कुल नया लगा। वह अब तक अपने दिन को जैसे-तैसे जी रहा था, बिना किसी विशेष उद्देश्य के। "क्या मेरा उद्देश्य क्या है?" वह बार-बार यही सवाल खुद से पूछता। किताब में आगे लिखा था, "जब आप जानेंगे कि आपका मुख्य उद्देश्य क्या है, तो बाकी चीज़ों के लिए जगह कम पड़ जाएगी।"
विनय की जिंदगी में हमेशा एक खालीपन सा महसूस होता था, और वह इस खालीपन को अपनी भाग-दौड़ में भरने की कोशिश करता था। वह सोचता था कि सफलता का मतलब सिर्फ अच्छा पैसा कमाना है, लेकिन अब वह समझ रहा था कि असली सफलता कुछ और थी।
एक दिन विनय ने तय किया कि वह इस सवाल का जवाब खोजेगा। "मेरा उद्देश्य क्या है?" यह सवाल उसे रात-रात भर सोने नहीं दे रहा था। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी को जाँचने की कोशिश की और सोचा, "क्या मैं वही कर रहा हूँ, जो मुझे सच में खुशी देता है?"
वह सोचने लगा, "अगर मैं सिर्फ पैसों के लिए काम करता रहा, तो क्या मेरी ज़िंदगी का कोई असली मतलब होगा?" अब उसे एहसास होने लगा था कि सिर्फ काम करना और उसे खत्म करना जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता।
एक दिन सुबह-सुबह, अपने चाय के कप के साथ विनय ने एक नोटबुक निकाली और अपने जीवन के उद्देश्य को परिभाषित करने की कोशिश की। उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि असली उद्देश्य सिर्फ बाहरी सफलता में नहीं, बल्कि अपने अंदर की शांति और संतोष में है। वह अब अपनी प्राथमिकता को एक नई दिशा में तय करना चाहता था, जहां उसे अपने काम, रिश्तों, और व्यक्तिगत जीवन के बीच सही संतुलन मिल सके।
विनय ने तय किया कि वह अब सिर्फ अपनी नौकरी पर ही ध्यान नहीं देगा, बल्कि अपने परिवार, अपने रिश्तों, और अपने मानसिक स्वास्थ्य को भी महत्व देगा। उसकी ज़िंदगी का उद्देश्य अब सिर्फ एक काम से नहीं, बल्कि हर उस चीज़ से जुड़ा था जो उसे अपनी ज़िंदगी में संतुलन और खुशी लाती थी।
विनय को यह समझ में आया कि अगर वह अपने जीवन का उद्देश्य जानता है, तो बाकी सारी चीज़ों के लिए जगह खुद-ब-खुद बन जाएगी। जब हम अपने उद्देश्य को पहचानते हैं, तो हमें समय और ऊर्जा सही दिशा में खर्च करने का अवसर मिलता है।
विनय ने किताब को फिर से खोला।
अब तक उसे यह समझ में आ चुका था कि मल्टीटास्किंग और हर चीज़ पर ध्यान देने का तरीका उसे सिर्फ भटका रहा था। किताब ने उसे एक समय में एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी थी। उसने अपने जीवन का उद्देश्य पहचानने की कोशिश की थी, और अब वह अगले कदम पर था। प्राथमिकताएँ तय करने की बारी थी।
विनय को याद आया, "अपने जीवन का उद्देश्य जानना सिर्फ पहला कदम था, असली काम शुरू होता है, जब आप जान जाते हो कि आपकी प्राथमिकता क्या है।" यही बात उसने अगले अध्याय में पढ़ी।
“अपनी प्राथमिकताएँ तय करें और उसी हिसाब से काम करें। एक बार जब आप जान लें कि आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या है, तो बाकी सभी काम इसके अनुसार पीछे रह जाएंगे।”
विनय की सोच में एक और मोड़ आ गया। अब तक वह इस भ्रम में था कि सबकुछ महत्वपूर्ण था, लेकिन किताब ने उसे यह समझाया कि सिर्फ एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित करना ही असली सफलता का राज़ है।
एक दिन जब विनय सुबह उठते ही अपना रोज़ का दिन शुरू करने वाला था, उसने एक गहरी साँस ली और अपने आप से पूछा: "मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या है?"
किताब की सलाह से प्रेरित होकर उसने एक कागज़ पर अपनी प्राथमिकताएँ लिखनी शुरू की। उसने अपने करियर, परिवार, स्वास्थ्य, और मानसिक शांति के बारे में सोचा।
विनय को अब यह साफ़-साफ़ समझ में आने लगा कि उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता उसका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य था। उसके बाद, उसे अपने परिवार और रिश्तों को भी प्राथमिकता देनी थी। वह अब जान चुका था कि जब उसकी प्राथमिकताएँ सही होंगी, तो बाकी सारी चीज़ें अपने आप ठीक हो जाएंगी।
विनय ने तय किया कि वह अब अपनी दिनचर्या में सबसे पहले अपने स्वास्थ्य और परिवार को ध्यान में रखेगा। उसने खुद को समय देना शुरू किया—दो घंटे वर्कआउट के लिए और अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए। पहले जहाँ वह अपने काम में डूबा रहता था, अब उसने वह समय सही प्राथमिकताओं के अनुसार बदल लिया।
किताब में लिखा था: “जब आप जान लें कि आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या है, तो बाकी सभी काम इसके अनुसार पीछे रह जाएंगे।”
विनय अब अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से काम कर रहा था।
अब विनय अपने सभी कामों को इस तरह से करता था कि वह सबसे महत्वपूर्ण काम पहले करता था। जैसे ही उसने अपनी प्राथमिकताओं का सही निर्धारण किया, बाकी सारी चीज़ें धीरे-धीरे एक व्यवस्थित रूप में आ गईं। उसका मन शांत था और उसे अब हर दिन का उद्देश्य स्पष्ट नजर आने लगा था।
विनय ने किताब को खोला और पढ़ना शुरू किया।
अब तक वह यह समझ चुका था कि सफलता का रास्ता सिर्फ मल्टीटास्किंग और बहुत सारे काम करने से नहीं, बल्कि अपनी प्राथमिकताओं पर फोकस करने से गुजरता है। किताब के पिछले अध्याय ने उसे अपना उद्देश्य पहचानने की प्रेरणा दी थी। अब वह यह समझ चुका था कि अपने जीवन की सही प्राथमिकताओं को तय करने से बाकी सारी चीज़ें अपने आप बेहतर हो सकती हैं।
लेकिन अब एक नया सवाल था: कैसे उन प्राथमिकताओं को सही तरीके से पूरा किया जाए?
विनय ने अगले अध्याय में जो लिखा था, वह पूरी तरह से उसके दिमाग को खोलने वाला था: "सही चीज़ों पर फोकस करके ही आप उत्पादक हो सकते हैं।"
विनय को यह एहसास हुआ कि अब तक वह अपने समय का सही प्रबंधन नहीं कर पा रहा था। हमेशा भाग-दौड़ में रहता था, लेकिन वह सोचता था कि काम की सूची लंबी होती जा रही है, और परिणाम कुछ भी नहीं मिल रहा। लेकिन किताब ने उसे बताया कि सिर्फ वही काम करें जो आपकी प्राथमिकताओं से जुड़े हों और जो वास्तव में आपके उद्देश्य को आगे बढ़ाते हों।
विनय को यह समझ में आया कि अगर वह अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से समय का सही तरीके से प्रबंधन करता है, तो वह वह सब कुछ कर सकता है जो उसके लिए महत्वपूर्ण है।
विनय ने तय किया कि वह अब अपने दिन को इस तरह से व्यवस्थित करेगा कि सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं को पूरा करे। उसने अपने सारे कामों को महत्वपूर्ण और कम महत्व के आधार पर विभाजित किया। उसके लिए अब सबसे पहले अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना था, फिर अपने परिवार के साथ समय बिताना और अंत में काम के बाकी छोटे-छोटे टास्क को निपटाना।
विनय ने अपने समय को इस तरह से विभाजित किया कि सबसे ज़्यादा जरूरी काम पहले होते थे। सुबह की शुरुआत वर्कआउट और मेडिटेशन से होती, फिर ऑफिस के महत्वपूर्ण कामों के लिए निर्धारित समय आता। वह अब अपने दिन को इस तरह से पहले से ज्यादा प्रोडक्टिव महसूस कर रहा था।
“समय की सही प्रबंधन से ही आप वह सब कर सकते हैं, जो आपके लिए महत्वपूर्ण है।”
विनय ने इस वाक्य को अपनी ज़िंदगी का मंत्र बना लिया। वह अब अपने समय को पूरी तरह से अपने उद्देश्यों और प्राथमिकताओं के हिसाब से प्रबंधित कर रहा था।
अब उसे अपने दिन का हर पल एक उद्देश्य और दिशा के साथ बिताने का एहसास हो रहा था। उसके काम भी तेज़ी से निपटने लगे थे, और हर दिन उसका आत्मविश्वास बढ़ रहा था।
विनय के लिए अब उत्पादकता का मतलब था—अपने समय और ऊर्जा को सिर्फ उन चीज़ों पर लगाना जो उसे अपने जीवन के उद्देश्य की ओर ले जातीं।
विनय ने किताब को फिर से खोला।
अब तक उसकी यात्रा में बहुत बदलाव आ चुका था। उसने अपने जीवन का उद्देश्य पहचान लिया था और अपनी प्राथमिकताओं पर फोकस करना शुरू कर दिया था। उसे यह भी समझ में आ चुका था कि अपने समय का सही तरीके से प्रबंधन करना ही उत्पादकता का असली राज़ है।
लेकिन अब वह एक और चुनौती का सामना कर रहा था: क्या वह अपने समय को सही तरीके से विभाजित कर पा रहा है?
विनय ने किताब के अगले अध्याय में जो पढ़ा, वह उसे एक और महत्वपूर्ण दिशा दिखा रहा था: “अपने समय को बंटवारे में रखें। वह समय सिर्फ अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता के लिए रखें और उस समय को किसी और काम के लिए नहीं बदलें।”
विनय को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वह सच में अपने समय का सही उपयोग कर रहा था। वह समझ गया कि मल्टीटास्किंग को छोड़कर उसे अपने समय को ब्लॉक करके सिर्फ एक ही चीज़ पर फोकस करना चाहिए।
विनय ने किताब से सीखा कि उसे अपने दिन को ब्लॉक करके अपने सबसे महत्वपूर्ण कामों के लिए निर्धारित समय तय करना चाहिए। अब उसे यह समझ में आ रहा था कि अगर वह अपने समय को ठीक से विभाजित नहीं करता, तो वह कभी भी अपनी प्राथमिकताओं को पूरा नहीं कर पाएगा।
विनय ने तय किया कि वह सुबह का समय केवल अपने स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए रखेगा, फिर दोपहर का समय अपने काम के लिए और शाम का समय अपने परिवार के साथ बिताने के लिए तय करेगा। अब उसने एक गहरी साँस ली और अपने कैलेंडर में समय ब्लॉकिंग का तरीका अपनाया।
विनय ने अपने दिन की शुरुआत सुबह 6 बजे से 8 बजे तक वर्कआउट और मेडिटेशन से करने का तय किया, फिर 9 बजे से 12 बजे तक अपने सबसे महत्वपूर्ण कामों को निपटाने का समय रखा। फिर 2 बजे से 5 बजे तक ऑफिस के बाकी छोटे-मोटे कामों के लिए और 6 बजे से 8 बजे तक अपने परिवार के साथ समय बिताने का वक्त निर्धारित किया।
विनय ने यह निर्णय लिया कि किसी भी हालत में वह इन समय ब्लॉक्स में से एक भी समय को बदलने की कोशिश नहीं करेगा। वह अपने कैलेंडर पर इन समयों को पवित्र मानने लगा। किसी भी बाहरी काम को इस समय में नहीं घुसने देगा।
विनय ने यह सीखा कि अगर वह अपने समय को इस तरह से ब्लॉक करके रखता है, तो वह न सिर्फ अपनी प्राथमिकताओं पर फोकस कर पाएगा, बल्कि उसकी उत्पादकता भी बढ़ जाएगी। किताब में लिखा था, “वह समय सिर्फ अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता के लिए रखें और उस समय को किसी और काम के लिए नहीं बदलें।”
अब विनय का समय ब्लॉकिंग का तरीका उसे अपने दिन में एक नई ऊर्जा और स्पष्टता दे रहा था।
विनय अब पहले से कहीं ज़्यादा शांत और केंद्रित था।
सुबह तय वक्त पर उठना, सबसे ज़रूरी कामों के लिए समय ब्लॉक करना और distractions से दूर रहना—इन सब ने उसकी ज़िंदगी को एक नया रूटीन दे दिया था।
लेकिन कुछ दिन बीते… और फिर वही हुआ जो अक्सर होता है।
एक दिन सुबह-सुबह उसका एक पुराना दोस्त आया, बोला, "भाई, आज तो चल थोड़ा घूमने चलते हैं, काम तो रोज़ ही रहेगा…"
विनय के दिमाग में कुछ देर के लिए ख्याल आया—“सच में, काम तो रोज़ का है…”
लेकिन तभी उसे याद आया किताब का वो हिस्सा जिसमें लिखा था कि “वह समय सिर्फ अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता के लिए रखें और उस समय को किसी और काम के लिए नहीं बदलें।”
उसने ना सिर्फ मना किया, बल्कि अपने कमरे में जाकर किताब का अगला अध्याय भी पढ़ डाला। और वहीं से कहानी ने एक नया मोड़ लिया।
📘 The Three Commitments
विनय ने किताब के अगले अध्याय में पढ़ा:
“सफलता के लिए तीन बातें जरूरी हैं: स्पष्ट रूप से एक लक्ष्य चुनना, उस लक्ष्य के लिए पूरी तरह से समर्पित होना, और लगातार कोशिश करते रहना।”
विनय को समझ आया कि टाइम ब्लॉकिंग और प्रोडक्टिविटी तब तक अधूरी हैं, जब तक इंसान खुद को पूरी तरह से कमिट न करे।
1. एक लक्ष्य चुनना – Clarity of Goal
विनय ने अपने डायरी में लिखा: “मुझे क्या चाहिए?”
पहले बार उसने बिना घबराए, बिना इधर-उधर की सोच के, एक ही लाइन लिखी:
👉 “मुझे खुद को साबित करना है — अपने काम, अपनी मेहनत और अपनी कहानी से।”
वह अब इधर-उधर भटकने वाला नहीं था। कोई नया कोर्स, कोई shiny opportunity, कोई नया distraction—अब उसका मन नहीं डगमगाएगा। लक्ष्य साफ़ था।
2. पूरी तरह से समर्पित होना – Full Commitment
किताब ने एक बात कही थी जिसने विनय को हिला दिया:
“Commitment का मतलब है — पीछे कोई रास्ता नहीं छोड़ना।”
अब वो दिन आ गए थे जब विनय अपने काम को आधा करके नहीं छोड़ेगा। चाहे किसी दिन मन करे या न करे, चाहे थकान हो या कोई बहाना—अब वो खुद से हार नहीं मानेगा।
हर दिन उसने तय किया कि कम से कम एक चीज़ ऐसी करेगा जो उसे उसके लक्ष्य के करीब ले जाए।
3. लगातार कोशिश – Mastery through Repetition
विनय ने किताब में पढ़ा:
“सच्चे मास्टर कभी ये नहीं कहते कि उन्हें सब आता है, वो कहते हैं कि वो हर दिन सीखते हैं।”
अब विनय ने एक नया नियम बनाया:
हर रात सोने से पहले, वह खुद से पूछता —
“आज मैंने अपने लक्ष्य के लिए क्या किया?”
कभी जवाब छोटा होता, कभी लंबा। लेकिन हर दिन जवाब ज़रूर होता।
विनय को अब समझ आ चुका था कि सफलता कोई इत्तेफाक नहीं होती, वो लगातार की गई मेहनत और गहरी नीयत का नतीजा होती है।
उसने अब खुद से वादा कर लिया था:
✅ लक्ष्य साफ़ रहेगा
✅ समर्पण पूरा होगा
✅ और कोशिश कभी रुकेगी नहीं
अब जब विनय अपने लक्ष्य को लेकर पूरी तरह स्पष्ट और प्रतिबद्ध हो गया था, तब भी हर दिन कोई न कोई उसे उसके रास्ते से भटकाने की कोशिश करता।
कभी कोई दोस्त फ़ोन करता —
"भाई आज एक छोटा सा मीटअप है, तू भी आजा।"
तो कभी कोई रिश्तेदार बोलता —
"तू तो घर के कामों से बच ही जाता है, थोड़ा टाइम दे दिया कर।"
और सबसे मुश्किल होता था वो अंदर की आवाज़, जो कहती थी —
"इतना भी क्या सख्ती से टाइम टेबल फॉलो करना? थोड़ा लचीलापन रख।"
लेकिन फिर विनय ने किताब का अगला चैप्टर पढ़ा — और वहीं से कहानी में एक नया मोड़ आ गया।
📘 किताब कहती है:
“दूसरों की मांगों को स्वीकार करने से पहले अपने लक्ष्य को प्राथमिकता दें।”
“‘नहीं’ कहना जरूरी है ताकि आपका समय और ऊर्जा केवल उस एक चीज़ पर केंद्रित हो सके।”
ये लाइनें विनय को अंदर तक हिला गईं।
उसने महसूस किया कि अब तक उसका बहुत सारा समय दूसरों को ‘हां’ कहने में बर्बाद हो चुका था — ऐसे कामों में जो न उसके लक्ष्य से जुड़े थे, न उसके जीवन के उद्देश्य से।
विनय ने अब तय कर लिया —
वह अपनी हर हां से पहले खुद से पूछेगा:
“क्या यह मेरी उस एक चीज़ को आगे बढ़ाता है?”
अगर जवाब ‘ना’ हुआ, तो विनय बिना किसी अपराधबोध के सीधा “ना” कह देगा।
पहली बार जब उसने मना किया, तो थोड़ा अजीब लगा…
एक दोस्त ने नाराज़गी दिखाई।
माँ ने ताना मारा — “अब तो बस अपने में ही मस्त है तू…”
लेकिन विनय अंदर से जान चुका था कि
👉 "हर हां, एक ‘ना’ होती है उस चीज़ के लिए जो सच में जरूरी है।”
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने विनय को अंदर से तोड़ दिया…
उसे एक पुराने दोस्त की शादी में जाना था। लेकिन उसी दिन उसका टाइम-ब्लॉक किया गया सबसे जरूरी काम था — एक प्रेजेंटेशन जिसे वह हफ़्तों से टाल रहा था।
दोनों चीज़ें जरूरी थीं — दोस्ती भी, सपना भी।
उस रात उसने खुद से पूछा —
“क्या मैं यहां जाने से खुद को आगे बढ़ता हुआ देख रहा हूं?”
जवाब आया — "नहीं।”
उसने शादी में ना जाने का फ़ैसला किया। दोस्त नाराज़ हो गया। कुछ लोग बोले, “बहुत बदला है तू।”
लेकिन उस रात विनय ने पहली बार वो प्रेजेंटेशन पूरा किया — और वो उसकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट बन गया।
अब विनय को समझ आ चुका था कि
Extraordinary बनने के लिए Ordinary लोगों को नाराज़ करना पड़ेगा।
हर बार “हां” कहने से इंसान भीड़ में खो जाता है।
लेकिन “ना” कहना — ये वही करते हैं जिनके अंदर एक जुनून होता है कुछ बड़ा करने का।
उस दिन विनय सुबह उठकर किताब के उस पन्ने पर रुका जहाँ लिखा था:
“जब आप अपने फोकस को एक चीज़ पर केंद्रित करते हैं, तो आप उस पर जबरदस्त परिणाम प्राप्त करते हैं।”
उसके मन में एक पुरानी याद चमक गई…
कॉलेज के दिनों में उसका एक दोस्त था — राहुल।
राहुल का एक ही सपना था — Indian Army में जाना।
जब बाकी लोग 10 अलग-अलग ऑप्शन्स के पीछे भाग रहे थे — MBA, job, foreign — राहुल बस एक ही चीज़ पर फोकस कर रहा था:
रोज़ सुबह 5 बजे दौड़, दिन भर तैयारी, और रात को discipline से नींद।
लोग उसे ‘boring’ कहते थे।
कभी-कभी विनय भी सोचता था — “यार ये बंदा कुछ ज़्यादा ही सीरियस है…”
लेकिन आज जब विनय खुद एक फोकस्ड लाइफ जीने की कोशिश कर रहा था —
उसे राहुल की clarity और dedication समझ आने लगी थी।
अब विनय को अपने अंदर की एक और लड़ाई समझ आने लगी थी —
Distractions अब बस बाहर नहीं थे, वो अंदर भी थे।
सोशल मीडिया से तो दूरी बना ली थी,
लेकिन अब भी वह दिन में कई बार नए आइडिया खोजने, अलग-अलग प्लान बनाने, और shiny चीज़ों की ओर भागता रहता।
हर बार एक नई शुरुआत, फिर अधूरी छोड़ देना — यही उसकी आदत बन चुकी थी।
किताब ने उसे रोक दिया — एक झटका दिया।
“यह एक साधारण सिद्धांत है, लेकिन ज़्यादातर लोग इसे अनदेखा करते हैं।”
🔥 विनय ने अब एक फैसला लिया —
अब वह सिर्फ एक ही चीज़ पर फोकस करेगा —
💡 अपने एक कंटेंट प्रोजेक्ट पर पूरी जान लगाना।
न कोई नया आइडिया,
न कोई side project,
न कोई shiny shortcut।
अब सिर्फ एक दिशा, एक कदम — रोज़ाना।
उस रात विनय अपनी डायरी में लिख रहा था:
"अब समझ में आया कि असली फोकस बाहर की noise से नहीं, अंदर की clarity से आता है।
जब तक मैं अपने अंदर के कन्फ्यूजन को नहीं रोकूंगा, तब तक बाहर का शोर कभी शांत नहीं होगा।"
एक हफ़्ते तक उसने पूरी तरह से सिर्फ एक प्रोजेक्ट पर काम किया।
ना कोई social scroll, ना कोई नया टास्क, ना ही multitasking।
और पहली बार —
वह प्रोजेक्ट पूरा हुआ… deadline से पहले।
और वो भी उस क्वालिटी के साथ जो पहले कभी नहीं आई थी।
लोगों ने notice किया, तारीफ़ की — लेकिन उससे भी बड़ी बात:
विनय ने खुद को notice किया।
विनय अब पहले जैसा नहीं था।
सुबह उठते ही अब मोबाइल नहीं देखता था,
बल्कि डायरी खोलकर खुद से एक सवाल पूछता था:
“अगर मैं आज सिर्फ एक चीज़ को सही तरीके से करूँ,
तो क्या बाकी सारी चीज़ें आसान हो जाएँगी?”
पुराने दिन याद आए
उसने देखा — पहले वो दिन भर बिज़ी रहता था,
लेकिन कुछ भी बड़ा और ठोस बन नहीं पाता था।
कभी वीडियो बनाना शुरू करता,
फिर बीच में स्क्रिप्ट बदल देता।
कभी ब्लॉग की शुरुआत करता,
फिर किसी नए टूल या ऐप में उलझ जाता।
हर जगह थोड़ा-थोड़ा करना — और कहीं भी नहीं पहुँचना।
लेकिन अब वह सिर्फ एक चीज़ पर ध्यान देता था —
“आज का सबसे असरदार काम क्या है?”
🧠 किताब ने बताया —
“The Focusing Question” एक ऐसा कम्पास है,
जो आपको हर समय सही दिशा में रखता है।”
अब चाहे वह सुबह उठे, या किसी चुनौती के सामने हो,
या कुछ बड़ा शुरू करना हो —
विनय यही एक सवाल खुद से पूछता।
और इस सवाल का जवाब ही उसे clarity देता —
उस दिन का ONE THING।
अब विनय की ज़िंदगी में शांति थी —
क्योंकि उसे अब पता था कि उसे हर दिन क्या करना है।
उसका कंटेंट, उसका सोचने का तरीका,
उसका जीवन अब “The Focusing Question” के इर्द-गिर्द घूमता था।
उसने सीखा कि clarity कोई एक बार मिलने वाली चीज़ नहीं होती,
बल्कि हर दिन खुद से पूछने वाली प्रक्रिया होती है।
एक दिन वही पुराना दोस्त — जो कभी उसे किताब गिफ्ट करके भूल गया था —
उससे मिलने आया।
विनय अब एक नया इंसान बन चुका था —
संवेदनशील, गहरा, लेकिन बिल्कुल clear।
उस दोस्त ने पूछा:
“यार, इतना सब कैसे बदल दिया तूने?”
विनय मुस्कराया… और सिर्फ एक लाइन बोली:
"मैं रोज़ खुद से बस एक सवाल पूछता हूँ — और जवाब मेरा रास्ता दिखा देता है।"
“हर कोई बिज़ी है, लेकिन कम ही लोग फोकस्ड हैं।
और जो रोज़ खुद से सही सवाल पूछते हैं —
वही लोग वो ज़िंदगी जीते हैं, जिसे देखकर बाक़ी लोग बस सोचते रह जाते हैं…”
"अगर आप यहाँ तक सुन चुके हैं, तो मुझे यकीन है कि ये कहानी आपके दिल को ज़रूर छू गई होगी। अगर आपको ये वीडियो पसंद आया हो, तो इसे लाइक ज़रूर करें।
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मैं हूँ आपका दोस्त — अनिल सहारण।"
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