Eat That Frog by Brian Tracy | Book Summary in Hindi | आलस से हार रहे थे... एक मेंढक ने बचा लिया | Anil Saharan
Hello friends! आपका स्वागत है, मैं हूँ आपका दोस्त Anil Saharan। आज हम बात करने वाले हैं Eat That Frog – Brian Tracy के बारे में...
अर्जुन। उम्र 27 साल।
दिल्ली में एक IT कंपनी में काम करता है। दिमाग तेज़ है, लेकिन ध्यान नहीं टिकता। मोबाइल में नोट्स भरे पड़े हैं — "To-Do", "Goal List", "Daily Plan"… लेकिन दिन खत्म होते ही वो खुद को कोसता है – "आज फिर कुछ भी नहीं किया…"
हर दिन वही guilt, वही थकावट। ऐसा लगता जैसे वक्त रेत की तरह फिसल रहा है, और वो बस देख रहा है।
तभी एक दिन उसके पुराने कॉलेज दोस्त वरुण ने उसे एक किताब गिफ्ट की:
👉 Eat That Frog – Brian Tracy
उसने किताब ली, लेकिन महीनों तक अलमारी में पड़ी रही…
जब तक एक दिन उसकी नौकरी जाने की नौबत नहीं आ गई।
अर्जुन जानता था क्या करना है… पर करता कुछ और था।
हर सुबह मैं खुद से वादा करता था – 'आज पक्का शुरू करूंगा।'
लेकिन मोबाइल, सोशल मीडिया और छोटे-छोटे काम पूरे दिन खा जाते थे।
एक वेटर जैसा बन चुका था – जो सबको सर्व करता है, पर खुद भूखा रहता है।
अर्जुन ने किताब खोली।
पहली लाइन ने ही झटका दिया
किताब का पहला चैप्टर था – Set the Table
मतलब: साफ़-साफ़ तय करो कि तुम करना क्या चाहते हो।
अर्जुन उस लाइन को पढ़ता है… और उसकी आँखों के सामने एक पुरानी रात घूम जाती है।
सर्दी की वो रात… जब कॉलेज में सब दोस्त प्लेसमेंट की तैयारी में लगे थे।
किसी को MBA करना था, कोई अमेरिका जाना चाहता था।
और अर्जुन?
वो बालकनी में बैठा चुपचाप तारे देख रहा था…
क्योंकि उसे खुद नहीं पता था कि उसकी टेबल पर खाना क्या परोसना है।
Clear goals और objectives की लिस्ट बनाओ।
पहले से तय करो कि आप किस direction में काम करना चाहते हो।
Define करो कि success क्या होगी, ताकि हर कदम उस दिशा में हो।
अर्जुन ने किताब को बंद नहीं किया।
उसने पहली बार सच में लिखा – "मैं चाहता क्या हूं?"
"मैं सुबह guilt के बिना उठना चाहता हूं"
"मैं एक ऐसा काम करना चाहता हूं जिस पर मुझे गर्व हो"
"मैं टाइम का मालिक बनना चाहता हूं, गुलाम नहीं"
उस रात अर्जुन ने अपनी टेबल सेट की।
कोई शाही खाना नहीं था… पर अब प्लेट खाली भी नहीं थी।
आवाज़ अंदर से आई:
"कई सालों से मैं बस रेस में दौड़ रहा था…
लेकिन आज पहली बार सोचा है – मैं दौड़ क्यों रहा हूं, और किस दिशा में?
अर्जुन ने पहली बार अपने गोल्स लिखे थे — टेबल सेट कर दी थी।
उसे लगा था कि अब सब आसान हो जाएगा। लेकिन अगली सुबह… सब फिर से बिखरा हुआ था।
मोबाइल में नोटिफिकेशन की बौछार, WhatsApp कॉल्स, टीम की मीटिंग, और अचानक आई फैमिली टेंशन…
शाम को फिर वही पुराना डायलॉग —
"आज पूरा दिन गया, लेकिन किया क्या?"
📘 अब किताब का अगला चैप्टर खुला:
“Plan Every Day in Advance”
“हर दिन की शुरुआत में अपने कामों की प्लानिंग करो।”
अर्जुन की नज़र उस लाइन पर अटक गई —
“To-do list बनाओ और सबसे महत्वपूर्ण काम को पहले करो।”
उसे याद आया वो दिन जब कॉलेज में एक टीचर ने कहा था –
“जो बच्चे टाइमटेबल बनाते हैं, उनके मार्क्स नहीं बढ़ते…
लेकिन जो उस टाइमटेबल को रोज अपडेट करते हैं – वही टॉपर बनते हैं।”
💡 उस रात अर्जुन ने सीखा:
सिर्फ लिस्ट बनाना काफी नहीं है।
👉 हर सुबह उठकर दोबारा उसे देखो।
👉 दिन भर में अपडेट करते रहो।
टाइम का इस्तेमाल तब सही होता है जब हम
👉 फैसले खुद लेते हैं, हालात नहीं।
अगर दिन की शुरुआत सोच के बिना होती है,
👉 तो पूरा दिन सिर्फ reaction में कटता है।
📝 उस दिन अर्जुन ने एक नया रूटीन बनाया:
सुबह उठते ही – 3 टास्क लिखो जो उस दिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं
उसके बाद – एक "Maybe" लिस्ट
और शाम को – चेक करना कि दिन कैसा गया
पहले दो दिन awkward लगा।
तीसरे दिन उस प्लानिंग में मजा आने लगा।
अब अर्जुन एक इंसान से मिल रहा था — जो हर दिन को अपनी शर्तों पर जीता था।
🌅 एक सुबह अर्जुन खुद से बोला:
"जब तक मैं अपने दिन की कमान खुद नहीं लूंगा,
तब तक हर दिन मुझे कहीं और खींच ले जाएगा।"
"हर दिन खुद से कहता था – 'मैं बहुत काम करता हूं'…
पर अंदर से आवाज़ आती थी – 'फिर भी कुछ बदल क्यों नहीं रहा?'"
अर्जुन अब हर दिन की प्लानिंग कर रहा था।
To-do लिस्ट बनाता, काम करता, टिक करता — दिन भर व्यस्त रहता।
लेकिन एक हफ्ते बाद उसने खुद को वही पुराने सवाल से घिरा पाया –
"मैं इतना कुछ कर रहा हूं… पर जो ज़रूरी था, वो फिर छूट गया।"
कभी presentation छूट गई, कभी family की बात, कभी health का ध्यान।
और फिर guilt की वापसी।
📖 और फिर आया अगला चैप्टर – “Apply the 80 and 20 Rule”
“Focus on the 20% of tasks that yield 80% of the results.”
कॉलेज के दिनों में अर्जुन एक बार cultural fest में वॉलंटियर बना था।
दिन-रात भाग-दौड़ करता, पोस्टर लगाता, लोगों को invite करता… लेकिन जब शो शुरू हुआ, तो उसका नाम किसी को याद नहीं था।
क्यों?
क्योंकि उसने सारे छोटे-छोटे काम किए, पर वो मंच पर कभी नहीं चढ़ा।
आज की ज़िंदगी भी वैसी ही लग रही थी —
busy होने का illusion… पर impact zero।
🔍 Book कहती है:
“Identify करो कि कौन से काम आपके लिए सबसे ज्यादा important हैं।
बाकी सब छोड़ दो, या बाद में करो।"
अर्जुन ने पहली बार अपने सारे कामों को एक लिस्ट में लिखा…
और सिर्फ 3 टास्क पर गोल घेरा लगाया —
जो उसकी ज़िंदगी में सच में फर्क ला सकते थे।
एक क्लाइंट प्रपोज़ल जो महीनों से पेंडिंग था
मॉर्निंग वर्कआउट जो हेल्थ सुधार सकता था
एक ऑनलाइन कोर्स जो उसकी स्किल्स बढ़ा सकता था
बाकी सब — WhatsApp ग्रुप, extra meetings, random calls — अब background noise थे।
📌 और फिर उसने सीखा:
हर ज़रूरी चीज़, ज़रूर की जाने वाली चीज़ नहीं होती।
जो काम सबसे बड़ा डर देता है, वही सबसे बड़ा reward देता है।
हर दिन बस 20% काम करो — लेकिन पूरे दम से।
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चलिए, अब वापस चलते हैं कहानी की उसी मोड़ पर... जहाँ से सब कुछ बदलने वाला था।"
🧘♂️ अर्जुन अब कैसा था?
अब वो कहता है –
"मैं हर काम नहीं करता…
पर जो करता हूं, वो ज़िंदगी बदल देता है।"
अब उसके दिन छोटे दिखते थे, पर असर बड़े होते थे।
🪞 और हकीकत हम सबकी भी कुछ ऐसी ही है:
हम दिनभर काम करते हैं —
लेकिन ज़रा सोचो:
आपका कौन-सा 20% काम ऐसा है जो आपकी पूरी लाइफ को ऊपर उठा सकता है?
बाकी सब… बस “ऑक्यूपेशनल थेरैपी” है —
जिससे हम खुद को व्यस्त महसूस कराते हैं… मगर आगे नहीं बढ़ते।
🎯 अर्जुन की डायरी की एक लाइन:
"अब मैं काम चुनता हूं… काम मुझे नहीं चुनता।
जिनसे फर्क नहीं पड़ता, उनसे दूरी बनाना भी खुद से प्यार करना है।"
उसने पहली बार ये सोचा – जो मैं आज कर रहा हूं…
अगर मैं इसे रोज करूं, तो मैं पांच साल बाद कहां पहुंचूंगा?"
अर्जुन अब 80/20 रूल समझ चुका था।
हर दिन सिर्फ उन्हीं कामों पर फोकस करता था जो सच में असर डालते थे।
लेकिन एक दिन उसकी बहन ने उसे टोक दिया —
“तू हमेशा वही करता है जो urgent है… कभी वो क्यों नहीं करता जो जरूरी है?”
ये बात सीधी जाकर लगी…
उसके पुराने choices की दीवारों से टकराकर।
🔙 याद आया वो decision…
जब कॉलेज के बाद उसने एक अच्छी जॉब छोड़ दी थी सिर्फ इसलिये कि
"startup cool लगता है…"
फिर दो साल उसी एक गलत फैसले को ठीक करने में निकल गए।
और अब जब "Consider the Consequences" चैप्टर सामने आया —
किताब की हर लाइन सीधी सीने में उतरने लगी।
📘 Book ने कहा:
“हर काम का परिणाम सोचो।
जो काम ज्यादा important है, उसे पहले करो, क्योंकि उसके असर ज्यादा होंगे।
अपनी ऊर्जा को ऐसे कामों पर लगाओ, जिनके परिणाम long-term में बड़े हों।”
🧠 उस दिन अर्जुन ने खुद से एक सवाल पूछा:
“अगर मैं आज वही करूं जो आसान है…
तो क्या मैं उस ज़िंदगी तक पहुंचूंगा जो मुझे चाहिए?”
और जवाब आया —
"नहीं…"
⚖️ उसने अब हर टास्क को एक नज़र से देखना शुरू किया:
क्या ये काम सिर्फ आज का दबाव है?
या ये मेरे कल को बेहतर बना सकता है?
अब वो इंस्टाग्राम स्क्रॉल करने से पहले खुद से पूछता —
"इसका पांच साल बाद क्या असर होगा?"
अब वो clients के सामने सिर्फ हां नहीं कहता,
पहले सोचता – "क्या मैं इसे महीने भर तक रोज करना चाहूंगा?"
🌱 अर्जुन की सोच अब बदल रही थी:
अब वो आज की खुशी को नहीं, कल की शांति को चुन रहा था।
अब वो short-term dopamine नहीं, long-term freedom को चुन रहा था।
💬 और उसने डायरी में लिखा:
"हर काम दो बार होता है –
पहले हमारे दिमाग में, फिर हमारी जिंदगी में।
अगर सोच ही नहीं रहे, तो बना क्या रहे हो?"
क्या आपने कभी सोचा कि जो आप आज कर रहे हैं…
अगर यही आदतें हर दिन चलीं —
तो पांच साल बाद आप कहाँ होंगे?
– वो जगह डराती है, या मुस्कुराती है?
पहले मैं हर टास्क को बिना सोचे हां कह देता था…
अब मैं पूछता हूं – 'क्या ये सच में जरूरी है?'"
अर्जुन अब हर टास्क का long-term असर सोचकर फैसला लेता था।
उसकी लिस्ट छोटी होती जा रही थी — लेकिन असर बड़ा।
लेकिन एक दिन फिर वही पुराना pattern लौट आया।
Company में नए client का बड़ा प्रोजेक्ट आया, और अर्जुन से कहा गया —
“तुम logo बना दो, reels भी edit कर लो, थोड़ा caption भी लिख दो।”
पहले जैसा अर्जुन होता तो सब काम तुरंत पकड़ लेता —
क्योंकि "ना" कहना उसे आता ही नहीं था।
📚 लेकिन अब उसे ये चैप्टर मिला – “Practice Creative Procrastination”
“कुछ tasks को जानबूझकर टाल दो, जिन्हें आप achieve नहीं करना चाहते।
Less important और irrelevant tasks को postpone करो।”
🧠 अर्जुन को याद आया वो पुराना दोस्त – मनोज
जो हर चीज़ में “yes man” बन गया था।
हर event में, हर party में, हर task में…
और आज वो थक चुका था — burnt out, lost, confused.
और अर्जुन ने अपने आप से कहा —
"मैं busy नहीं, purposeful बनना चाहता हूं।"
📝 उस दिन से अर्जुन ने अपनी to-do लिस्ट को उल्टा पढ़ना शुरू किया।
और हर टास्क से पहले खुद से एक सवाल पूछता —
“क्या इसे आज नहीं करने से कोई फर्क पड़ेगा?”
अगर जवाब “ना” होता —
वो उसे डायरी के आखिरी पन्ने में डाल देता — Procrastination List
और उस लिस्ट पर लिखा होता:
🕒 “अभी नहीं – शायद कभी नहीं।”
🎯 अर्जुन ने सीखा:
हर काम को करना, आपकी productivity नहीं दिखाता – आपकी direction दिखाता है।
Low value tasks टालना, time बचाने का सबसे सस्ता तरीका है।
Procrastination गलत नहीं है — जब तक वो चयनित हो।
अब अर्जुन सिर्फ “मल्टीटास्कर” नहीं, प्रायोरिटी मास्टर बन गया था।
वो logo नहीं बनाया, reels नहीं edit की —
उसने सिर्फ proposal बनाया — और deal जीत ली।
📌 अर्जुन की डायरी की अगली लाइन:
"अब मैं हर काम को नहीं करता…
मैं हर ‘ना’ के ज़रिए अपने 'हाँ' को और पावरफुल बनाता हूं।"
क्या तुम्हारी टास्क लिस्ट में भी ऐसे काम हैं
जिन्हें करना बस आदत बन गई है…
लेकिन वो तुम्हें goal से दूर ले जा रहे हैं?
अब से सिर्फ मेहनती मत बनो — स्मार्ट चुनो।
हर दिन मेरे सामने 15 काम होते थे…
लेकिन मैं ये नहीं समझ पाता था कि किससे शुरू करूं।
अब मैं समझता हूं – हर काम का एक value होता है, और हर वक्त की एक limit।"
अब अर्जुन creative procrastination सीख चुका था।
मतलब, वो अब बिना guilt के उन कामों को टालना सीख गया था
जो उसे goal से दूर ले जाते थे।
लेकिन अब अगला सवाल आया —
"जो काम करने लायक हैं, उनमें से पहले कौन सा करें?"
जब अर्जुन ने एक दिन में 8 टास्क पूरे किए थे —
लेकिन दिन खत्म होने पर लगा, "कुछ भी meaningful नहीं किया…"
तभी उसे मिला अगला चैप्टर —
“Use the ABCDE Method Continually”
📘 किताब ने कहा:
“हर टास्क को A, B, C, D, E categories में divide करो:
🅰️ – सबसे जरूरी काम (Do first)
🅱️ – जरूरी पर critical नहीं (Do after A)
🅲️ – अच्छा लगेगा, पर असर नहीं पड़ेगा (Do if time allows)
🅳️ – जिसे किसी और को दे सकते हो (Delegate)
🅴️ – जिसे खत्म कर देना चाहिए (Eliminate)”
🎯 अर्जुन ने एक शाम सब कुछ छोड़कर
अपनी पूरी टास्क लिस्ट को एक पेपर पर लिखा —
और एक-एक को देख कर ABCDE टाइप किया।
💥 और कमाल हो गया।
पहली बार उसने देखा कि
उसकी लिस्ट में 40% काम ऐसे थे जो D या E कैटेगरी के थे —
यानी या तो किसी और को देने लायक थे, या बिल्कुल भी करने लायक नहीं।
🧠 अब अर्जुन का mindset ऐसा बन गया था:
“मैं हर सुबह सबसे पहले A1 Task पूछता हूं खुद से।”
“मैं C और D काम को शाम तक आते-आते invisible कर देता हूं।”
“E टास्क… अब मेरी ज़िंदगी से Eject हो चुके हैं।”
हर सुबह अर्जुन खुद से 5 सवाल पूछता:
आज का मेरा A1 काम कौन सा है?
क्या कोई B task मुझे अस्थायी busy बना रहा है?
क्या मैं C काम में टाइम बर्बाद कर रहा हूं, जो बस अच्छा लगता है?
क्या D टास्क मैं खुद कर रहा हूं जबकि उसे कोई junior कर सकता है?
क्या E टास्क बस इसलिए कर रहा हूं क्योंकि “आदत है”?
📌 और उसने डायरी में लिखा:
"जब मैंने हर टास्क को ABCDE में बाँटना शुरू किया,
तब जाकर मैं अपने काम का CEO बन पाया।"
क्या आज की तुम्हारी लिस्ट भी बस कामों से भरी हुई है,
या वो सच में तुम्हारे goals की direction में जा रही है?
क्योंकि हर काम का वजन बराबर नहीं होता —
कुछ काम तुम्हें आगे ले जाते हैं,
कुछ बस तुम्हें थकाते हैं।
पूरे दिन काम करता था…
पर जब रिजल्ट मांगे गए —
तो मैं सिर्फ बहानों से भरी डायरी लेकर बैठा था।"
अब अर्जुन ABCDE method से अपनी priorities तय कर रहा था।
हर दिन clarity के साथ शुरू हो रहा था।
पर एक शाम उसकी team की मीटिंग में boss ने सवाल पूछा:
“तुम्हारे week का सबसे बड़ा result क्या है?”
और अर्जुन चुप हो गया…
क्योंकि उसने सैकड़ों काम किए थे,
पर key results?
शायद सिर्फ एक भी नहीं।
📘 और फिर उसे मिला अगला चैप्टर –
“Focus on Key Result Areas”
“Identify करो अपनी key result areas (KRAs)।
अपनी energy और resources वहीं लगाओ,
जहां से सबसे impactful results आते हैं।”
🎯 उस रात अर्जुन ने अपने कामों को पांच हिस्सों में बांटा:
🎯 Client Deal Final करना
✍️ Proposal लिखना
📞 Follow-ups करना
🎨 Design tasks करना
💬 Random WhatsApp replies करना
और फिर खुद से पूछा —
“इनमें से कौन सा काम मेरी growth का actual driver है?”
जवाब साफ था – Client Deal Final करना।
बाकी सब auxiliary थे — supporting actors, पर hero कोई और था।
🧠 तभी उसे याद आया — नीरज, उसका पुराना सहकर्मी।
जो हर दिन 14 घंटे काम करता था — पर promotion नहीं मिला।
क्योंकि वो "busy" था, productive नहीं।
अर्जुन ने फैसला लिया — अब से मैं नतीजों पर ध्यान दूंगा,
काम की गिनती पर नहीं।
📌 अर्जुन ने एक whiteboard खरीदा —
और उस पर लिखा:
“मेरे 3 Key Result Areas –
Deal Closure
Content Strategy
Client Communication”
हर दिन उस बोर्ड को देखकर वो खुद से कहता –
“बाकी सब शोर है। ये ही कोर है।”
🧪 और धीरे-धीरे क्या बदला?
उसके काम के घंटे कम हुए,
पर उसका impact बढ़ गया।
अब वो हर मीटिंग में दिखा सकता था —
“यह मेरा काम नहीं… यह मेरा परिणाम है।”
क्या तू हर दिन सिर्फ काम कर रहा है,
या तेरा कोई core area of impact भी है?
क्या तेरी energy तितर-बितर हो रही है,
या एक laser की तरह किसी KRAs पर फोकस कर रही है?
"काम करने वाले बहुत हैं…
पर असली खिलाड़ी वही है — जो अपने ज़रूरी काम पहचान कर वहीं दम लगाता है।
सारा दिन output दिया —
पर रात को लगा… ‘main bas घूमता ही रहा।’
शायद इसलिए क्योंकि मैं अपने असली तीन काम पहचान ही नहीं पाया था…"
अर्जुन अब जानता है कि उसके कुछ Key Result Areas हैं।
वो हर दिन अपनी priorities सेट कर रहा है,
और non-productive tasks से दूरी बना चुका है।
लेकिन असली उलझन तब शुरू हुई जब…
वो खुद को फिर से "busy" पाता है —
हालांकि "distracted" नहीं, लेकिन फिर भी थका हुआ।
जब अर्जुन ने सुबह 7 बजे से लेकर रात 10 बजे तक लगातार काम किया,
लेकिन रात को अपने दोस्त से बोला:
“यार… मुझे समझ नहीं आ रहा मैं थक क्यों रहा हूं,
जबकि सब सही कर रहा हूं!”
📘 और फिर उसे मिला अगला chapter —
“The Law of Three”
“हर इंसान की ज़िंदगी में 3 core tasks होते हैं,
जिनका 90% result उन्हीं से आता है।
बाकी सब… बस background noise है।”
🧠 अर्जुन ने खुद से पूछा:
“मेरे वो तीन काम कौन से हैं,
जिनसे अगर मैं पूरा फोकस दूं — तो सब कुछ बदल सकता है?”
🔎 उसने introspection किया —
पिछले 3 महीनों के emails, रिपोर्ट्स, मीटिंग्स, failures और wins देखे।
फिर उसे जवाब मिला:
Client Pitch तैयार करना (Strategic Thinking)
Team को Drive करना (Leadership)
Follow-up और Conversion (Execution)
🔥 अब अर्जुन की रूटीन बदल गई:
सुबह उठते ही वो पूछता:
“क्या मैं आज अपने 3 कामों को importance दे रहा हूं?”
अगर कोई नया टास्क आता, वो खुद से पूछता:
“क्या ये मेरे top 3 से जुड़ा है?”
अगर नहीं — तो या तो delegate कर देता था या eliminate।
🧩 एक दिन उसके junior ने पूछा:
“भाई, आप इतने कम काम कैसे करते हो — और फिर भी इतने impactful हो?”
अर्जुन ने मुस्कराते हुए कहा:
“क्योंकि मैंने पूरी दुनिया को नहीं,
बस अपने तीन असली कामों को जीत लिया है।”
कभी हम सब अर्जुन ही होते हैं —
हर चीज़ खुद करना चाहते हैं,
हर टास्क में घुस जाते हैं…
पर सच्चाई ये है कि
"हर दिन की लड़ाई जीतने के लिए,
तुझे पूरे मैदान में नहीं लड़ना —
सिर्फ तीन जगह जीतना है।"
क्या तू जानता है तेरे top 3 tasks कौन से हैं?
क्या तू अपने दिन को इन्हीं तीन कामों के आसपास organize करता है?
या तू भी हर सुबह inbox खोलता है… और दुनिया तय करती है
कि आज तेरा दिन कैसा होगा?
🖊️ अर्जुन की डायरी में आज लिखा था:
"मैंने सोचा था multitasking मुझे unbeatable बनाएगा,
पर जब मैंने सिर्फ तीन चीज़ों में master बनना चुना —
तब जाकर मैं unstoppable बना।"
काम शुरू होते ही फंस गया,
क्योंकि तैयारी करने में ही जल्दी दिखा दी थी।
और फिर वही हुआ — आधे में अटक गया, मन भी टूटा और भरोसा भी।"
अब अर्जुन को clarity मिल चुकी थी कि उसके 3 core tasks कौन से हैं।
वो distractions से लड़ना सीख गया था,
और दिन की शुरुआत purpose से करता था।
पर अभी भी एक दिक्कत बाकी थी…
जब वो किसी task पर काम शुरू करता —
तो बीच में अटक जाता।
कभी client को भेजने वाली रिपोर्ट incomplete होती,
कभी जरूरी डेटा missing,
तो कभी tools ready नहीं होते।
और सबसे बड़ी बात — उसका दिमाग अक्सर clear नहीं होता था।
🧠 उस दिन उसने खुद से पूछा:
“क्या मैं काम करने के लिए तैयार था…
या बस काम शुरू कर दिया था?”
📘 और फिर खुला अगला chapter —
“Prepare Thoroughly Before You Begin”
“हर काम शुरू करने से पहले —
अपने सारे tools, data, references, और mindset clear कर लो।
ताकि जब तुम काम में लगो —
तो बस action हो, confusion नहीं।”
⚙️ अर्जुन ने कुछ छोटे लेकिन powerful बदलाव किए:
हर सुबह 30 मिनट सिर्फ तैयारी के लिए रखे।
Not execution — just setup.
एक नया ritual बनाया:
➤ Laptop चालू करने से पहले — वो अपना workspace सेट करता,
➤ Notes सामने रखता,
➤ Browser tabs open करता,
➤ Client की past emails पढ़ता,
➤ और एक बार खुद से पूछता —
"क्या मैं mentally ready हूं?"
और सबसे जरूरी —
अब वो हर task के पहले एक short checklist बनाता।
अब अर्जुन जब काम पर बैठता —
तो वो machine बन जाता।
कोई रुकावट नहीं, कोई बीच में stop नहीं, कोई frustration नहीं।
क्योंकि अब execution से पहले ही वो खुद को जीत चुका था।
एक बार उसका senior manager उससे बोला:
“तू वो बंदा बन गया है जो काम करता नहीं —
काम को stream कर देता है। Everything just flows.”
और अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा:
“मैं अब हर काम से पहले खुद को तैयार करता हूं,
ताकि बीच में हारने का कोई मौका ही न बचे।”
क्या तू काम शुरू करने से पहले 5 मिनट तैयारी में लगाता है —
या सीधे कूद जाता है confusion के समंदर में?
क्या तेरे पास checklist है —
या तेरा mind हर बार emergency में ही operate करता है?
✍️ अर्जुन की डायरी में आज की लाइन:
"पहले मैं सोचता था — ‘काम शुरू कर दिया, मतलब productive हूं’।
अब मुझे समझ आया — ‘शुरू करने से पहले तैयार होना ही असली productivity है।
कई बार हम मंज़िल इसलिए नहीं पाते क्योंकि
हम रास्ता नहीं, सीधा अंत देखना चाहते हैं।
पर मंज़िल… बस एक-एक कदम की जुड़ी हुई कड़ियाँ होती है।"
अब अर्जुन खुद को काम से पहले तैयार करता है,
उसके पास clarity है, priorities हैं, discipline है…
लेकिन एक दिन जब client की बड़ी presentation आई —
जिसमें 60 स्लाइड्स बनाने थे, strategy, data, graphs…
तो अर्जुन को panic होने लगा।
“इतना बड़ा काम… कहां से शुरू करूं?
क्या ये मुझसे हो पाएगा?”
💬 और फिर उसे याद आया —
उस किताब का अगला चैप्टर:
“Take It One Oil Barrel at a Time”
अर्जुन को अपने बचपन का एक scene याद आया —
जब वो अपने पापा के साथ गाँव में खेत जा रहा था।
सड़क टूटी हुई थी…
और बहुत लंबी लग रही थी।
उसने पूछा:
“पापा, ये खेत इतनी दूर क्यों है?”
पापा बोले:
“हर थोड़ी दूरी पर हमने तेल के ड्रम रख दिए हैं…
तू बस अगला ड्रम देख — और चलते जा।
धीरे-धीरे खेत खुद ही आ जाएगा।”
वहीं concept… आज की लाइफ में भी लागू हुआ।
🔧 अर्जुन ने क्या किया?
उस बड़े task को 5 हिस्सों में divide किया:
Data Collection
Strategy Draft
Visual Structure
Final Presentation
Rehearsal
हर हिस्से को daily calendar में schedule किया।
और हर पूरा step होने पर — खुद को 15 मिनट की walk,
या favorite coffee से reward करता।
अब अर्जुन बड़े कामों से डरता नहीं…
वो उन्हें सिर्फ टुकड़ों में काटता है — और धीरे-धीरे जीतता है।
“काम का डर, उसके size में नहीं —
हमारे नजरिए में छुपा होता है।”
क्या तू अपने goals को छोटा बनाता है?
या फिर हर बार mountain देखकर खुद को छोटा महसूस करता है?
क्या तेरा system है,
जो तुझे अगले oil barrel तक पहुंचा सके?
📝 अर्जुन की डायरी में आज लिखा था:
"मैंने presentation नहीं बनाई थी…
मैंने बस आज 3 स्लाइड्स बनाई थी।
और कल 4 बनाईं…
और एक दिन presentation तैयार हो गई —
बिना डर, बिना भागदौड़।
आज अगर तुम technology को ignore कर रहे हो,
तो तुम दिन में घंटों अपनी जिंदगी पीछे धकेल रहे हो —
बिना ये जाने कि तुम्हें कितना नुकसान हो रहा है।"
अब अर्जुन हर काम को छोटे हिस्सों में divide करके tackle करता है।
उसका हर task time-blocked है, priorities sorted हैं…
लेकिन एक दिन…
वो खुद को दिन भर के कामों में डूबा हुआ पाता है —
email check करना, reminder लगाना, call करना, notes ढूंढना…
काम हो रहे थे — लेकिन धीरे।
😤 Frustrated अर्जुन ने खुद से पूछा:
“मैं तो मेहनत कर रहा हूँ…
फिर भी वक्त क्यों नहीं बचता?”
“क्या मैं बेवजह की चीजों में time बर्बाद कर रहा हूँ?”
📘 और फिर खुलता है अगला चैप्टर:
“Use Technology to Your Advantage”
💡 वहाँ लिखा था:
“जो काम machine कर सकती है,
उसे इंसान क्यों करे?”
“Technology को servant बनाओ — master नहीं।”
🔧 अर्जुन ने क्या बदला?
🛠 Tools जो उसकी life बदल गए:
Google Calendar: अब उसका हर दिन time-slotted होता है।
To do list App: अब सारी priorities एक जगह दिखती हैं।
Notion: उसके सारे notes, ideas, projects एक single dashboard में होते हैं।
Zapier/IFTTT: कुछ repetitive tasks automate कर दिए गए —
जैसे meeting reminders, follow-ups, email templates.
अब अर्जुन को याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी —
क्योंकि reminders खुद alert कर देते थे।
हर काम streamlined था, distractions almost ख़त्म।
उसे हर रोज़ 2 extra घंटे मिलने लगे —
जिन्हें वो खुद की learning, fitness और side-hustle में लगाने लगा।
क्या तू technology का use अपने comfort के लिए कर रहा है,
या अपने career के लिए?
क्या तेरे पास एक ऐसा digital system है
जो तुझे सोचने, याद रखने और plan करने से free कर सके?
या फिर तू अभी भी paper diary और याददाश्त के भरोसे चल रहा है?
✍️ अर्जुन की डायरी में आज की लाइन:
"मैंने technology को gadget की तरह नहीं देखा…
मैंने उसे एक warrior का हथियार बना दिया —
और अब मैं उसी की मदद से लड़ाई जीतता हूँ।
Success अचानक नहीं आती…
उसके लिए इंसान को पहले खुद को उस level पर तैयार करना पड़ता है,
जिस पर वो मंज़िल उसे पहचान ले।
अब अर्जुन के पास सब कुछ है:
✅ Clear goals
✅ Priorities sorted
✅ Systematic routine
✅ Technology का सहारा
✅ Smart execution
लेकिन एक चीज़ थी जो फिर भी उसे अंदर से हिला रही थी —
कभी-कभी low energy, कभी doubt, कभी inspiration की कमी।
🌑 एक रात अर्जुन अपने desk पर बैठा था…
सब कुछ planned था, पर फिर भी उसका मन काम में नहीं लग रहा था।
उसने खुद से पूछा:
“क्या मैं थक गया हूँ?”
“या फिर मैं खुद को इतना strong नहीं बना पाया हूँ कि success को handle कर सकूं?”
📘 और तब उसने पढ़ा, इस किताब का आखिरी अध्याय —
“Prepare Yourself for Success”
💡 उस पेज पर लिखा था:
“तुम्हारा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कोई business plan नहीं…
तुम्हारा असली प्रोजेक्ट ‘तुम खुद’ हो।”
“जब तक तुम खुद को जीतने के लिए तैयार नहीं करते —
जीत कभी तुम्हें अपनाती नहीं।”
हर दिन सुबह 10 मिनट visualization करता —
खुद को अपने goal के version में imagine करता।
Affirmations से खुद को रोज़ remind करता:
"मैं discipline हूँ। मैं finisher हूँ। मैं unstoppable हूँ।"
रात को जल्दी सोना शुरू किया
5 बजे उठकर light workout और 15 मिनट की reading
Junk हटाकर healthy food अपनाया
🔁 Habits & Rituals बनाए:
दिन की शुरुआत gratitude से
हर हफ्ते खुद को 1 बार review करना
Sunday को family + rest का दिन, ताकि burnout ना हो
अब अर्जुन सिर्फ काम करने वाला नहीं,
एक Performer बन चुका था।
अब उसे task complete करने के लिए push नहीं चाहिए था —
उसके अंदर आग खुद जल रही थी।
क्या तू success के लिए तैयार है?
या बस उसके बारे में सोच रहा है?
क्या तेरे habits, तेरी energy और तेरी self-talk
उस इंसान के जैसी है जिसे तू बनना चाहता है?
या फिर तेरा lifestyle आज भी पुराने pattern पर चल रहा है?
✍️ अर्जुन की डायरी में आखिरी लाइन थी:
"अब मुझे अपने goals तक जाने का रास्ता साफ दिखता है —
क्योंकि मैंने खुद को उस रास्ते पर चलने लायक बना लिया है।
अर्जुन अब वही लड़का नहीं रहा
जो कभी सुबह उठते ही घबराता था…
जिसका inbox भरा होता था, और mind खाली।
वो अब काम को टालता नहीं —
वो अब काम को चुनता है, संभालता है… और खत्म करता है।
📅 अब उसका हर दिन ऐसे शुरू होता है:
एक mission के साथ,
एक plan के साथ,
और उस सोच के साथ कि "आज मैं खुद को थोड़ा और बेहतर बना दूंगा।"
🎯 अर्जुन ने सीखा…
“Life आसान नहीं होती —
लेकिन clarity, discipline और consistency
हर मुश्किल को manageable बना देती है।”
उसने ये भी समझा कि
Motivation आनी नहीं चाहिए — पैदा करनी पड़ती है।
और सबसे बड़ी बात —
"Success उन लोगों को मिलती है जो रोज़ उस मेढ़क को खा जाते हैं
जिसे बाकी लोग देखकर डर जाते हैं।”
"आज मैं खुद को देखता हूँ तो वो लड़का याद आता है
जिसे काम से डर लगता था...
अब मैं हर दिन अपने डर को खा जाता हूँ।
क्योंकि अब मैं जानता हूँ —
सपने पूरे करने हैं तो
पहले वो सबसे बड़ा मेढ़क निगलना होगा।"
अगर इस कहानी में कहीं भी तुम्हें खुद की झलक दिखी,
तो इस वीडियो को यहीं बंद मत करना…
उठो, कल का plan बनाओ,
और खुद से एक वादा करो —
"अब मैं time को नहीं, खुद को manage करूँगा।
"अगर आप यहाँ तक सुन चुके हैं, तो मुझे यकीन है कि ये कहानी आपके दिल को ज़रूर छू गई होगी। अगर आपको ये वीडियो पसंद आया हो, तो इसे लाइक ज़रूर करें।
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मैं हूँ आपका दोस्त — अनिल सहारण।
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