The Power of Habit by Charles Duhigg | Book Summary in Hindi
हेलो फ्रेंड्स! मैं हूं अनिल सहारण, और आज हम एक ऐसी किताब के बारे में बात करेंगे, जिसने मेरी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदल दिया। "The Power of Habit" by Charles Duhigg—यह किताब आदतों के विज्ञान को समझाती है और बताती है कि कैसे हम अपनी आदतों को बदलकर अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बना सकते हैं।
अगर आप भी अपनी आदतों को सुधारना चाहते हैं और अपनी ज़िन्दगी में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, तो इस वीडियो को पूरा देखें।
तो चलिए, बिना देर किए, हम शुरू करते हैं!
रवि ने जैसे ही अलार्म सुना, उसने आँखें मिचकते हुए घड़ी की ओर देखा।
6 बज चुके थे, लेकिन रवि का मन नहीं किया उठने का। अलार्म बंद करते हुए वह तकिए में अपना सिर फिर से छुपा लेता। "थोड़ी देर और," उसने खुद से कहा, और फिर से सो गया।
रवि की सुबह अक्सर इसी तरह होती थी। एक घंटा और सोने की आदत ने उसे हमेशा देरी से उठाया, जिससे दिन की शुरुआत ही आधी अधूरी होती। ऑफिस की हड़बड़ी, फिर घर लौटकर थक-हार कर फोन में घुस जाना, और फिर वही रूटीन।
रवि को लगता, "कुछ तो बदलना चाहिए, लेकिन कैसे?"
एक दिन ऑफिस से लौटते हुए, रवि मेट्रो में बैठा था।
वह जैसे ही अपने आसपास देखता है, तो पाता है कि सभी लोग अपने फोन में खोए हुए थे। लेकिन तभी उसकी नजर एक शख्स पर पड़ी, जो किसी किताब में गहरे से डूबा हुआ था।
रवि ने किताब का कवर देखा। लिखा था—"Atomic Habits"। वह किताब का नाम उसकी आँखों में जैसे कुछ गूंजने लगा।
"यार, मुझे भी तो कभी किताबें पढ़ने का शौक था। लेकिन अब... कहाँ टाइम मिलता है?"
किताबों से जुड़ी उसकी पुरानी यादें ताजा हो गईं। कॉलेज के दिनों में वह घंटों लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ता था। वो रोमांच, वो नई-नई बातें। लेकिन आजकल तो लगता है जैसे जिंदगी के रेस में वह सब कहीं पीछे छूट गया था।
घर पहुँचते ही रवि ने अपने फोन को उठाया और फिर कुछ किताबों के बारे में सर्च करना शुरू किया। "बेस्ट सेल्फ-हेल्प बुक्स," उसने गूगल पर लिखा। एक किताब का नाम उसे खास तौर पर दिखा—"The Power of Habit"। यह वही किताब थी, जिसे उसने मेट्रो में देखा था।
अचानक रवि का मन बदल गया। रविवार को उसने सोचा, "आज कुछ अलग करता हूँ। खुद के लिए समय निकालता हूँ।"
वह घर से बाहर निकला, गलियों में चलते हुए उसकी नजर एक पुरानी किताबों की दुकान पर पड़ी। दुकान के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—
"पुरानी किताबों का खजाना – कम कीमत, बड़ा ज्ञान!"
रवि की आँखों में चमक आ गई। वह अंदर गया। किताबों की पुरानी खुशबू ने उसे कॉलेज की याद दिला दी। वह अलमारियों के पास गया, और किताबों के कवर पलटते हुए अचानक उसकी नजर एक किताब पर पड़ी—"The Power of Habit"।
"यही तो मैंने इंटरनेट पर देखा था!" रवि ने किताब को उठाया और उसे पलटने लगा। कवर पर लिखा था—
"क्यों कुछ लोग सफल होते हैं और बाकी नहीं? जवाब आपकी आदतों में छुपा है।"
यह लाइन पढ़ते ही रवि का दिल धड़कने लगा। "क्या यही वह किताब है, जो मुझे अपनी आदतों को बदलने में मदद कर सकती है?"
रवि ने दुकानदार से पूछा, "यह किताब कैसे है?"
दुकानदार मुस्कुराते हुए बोला, "अगर आप कुछ बदलना चाहते हैं, तो यह किताब जरूर पढ़ें। यह सिर्फ किताब नहीं, एक गाइड है, जो आपकी आदतें बदल सकती है।"
रवि ने बिना किसी शक के किताब खरीद ली।
किताब का पहला पन्ना खोलते ही रवि को लगा जैसे उसकी जिंदगी का नया अध्याय शुरू होने जा रहा हो।
रवि ने शाम का खाना खाया और फिर अपनी मेज़ पर बैठने के लिए चुपचाप बढ़ा।
खाना हल्का सा था, लेकिन आज उसे एक अजीब सी शांति मिल रही थी। वह जैसे ही मेज़ पर बैठा, एक पल के लिए अपनी किताब को देखा। वह किताब—"The Power of Habit"—जो अब उसके हाथों में थी, वह किसी खजाने से कम नहीं लग रही थी।
रवि ने किताब का पहला पन्ना खोला। जैसे ही आँखों ने पहली लाइन पढ़ी, वह पूरी तरह से खामोश हो गया। किताब का पहला चैप्टर था—"The Habit Loop"।
रवि ने ध्यान से पढ़ा,
"हर आदत तीन हिस्सों में बंटी होती है:
Cue,
Routine,
Reward.
रवि ने आंखें झपकते हुए सोचा, "क्या यह सच में इतनी साधारण चीज़ें हैं, जो हमारी ज़िन्दगी को बदल सकती हैं?"
वह धीरे-धीरे उदाहरण पर आया।
"सोचिए, आपने ऑफिस के बीच में कॉफी पीने की आदत डाल रखी है।"
उसकी सोच और किताब की लाइन एक साथ जुड़ीं। "क्या यह सच में मेरी आदतों का हिस्सा है?"
Cue: ऑफिस में एक खास समय पर आप सुस्ती महसूस करते हैं।
रवि की आंखों में वह समय साफ नजर आने लगा। सुबह से लेकर दोपहर तक की भागदौड़, चाय के कप से लेकर लैपटॉप की स्क्रीन तक हर चीज़ में छिपी एक थकान। वह समय जब हर कोई अपने कामों में खोया हुआ होता और बस अपने अंदर की खामोशी से जूझ रहा होता।
Routine: और फिर आप कैफेटेरिया जाते हैं और कॉफी लेते हैं।
वह तुरंत कैफे की तस्वीर अपने दिमाग में लाया—कुल्हड़ में ठंडी कॉफी, ताजगी का अहसास, और एक सुकून, जो उस छोटे से ब्रेक में मिलता था।
Reward: आपकी थकान कम हो जाती है, और आप फ्रेश महसूस करते हैं।
रवि को याद आया कि कॉफी का पहला घूंट उसे कैसे जिंदा महसूस कराता था। वह हर बार महसूस करता था जैसे एक नया जीवन मिल गया हो। इस छोटे से पैटर्न ने उसकी दिनचर्या में खुद को बहुत बखूबी समा लिया था।
वह समझ गया था कि यह आदत बस उसी तरीके से काम करती है, जैसे एक चक्र—संकेत, रूटीन, और फिर इनाम।
उसने किताब के पन्नों को पलटा और एक गहरी सांस ली। इस आदत के चक्र ने उसे पूरी तरह से घेर लिया था। अब उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि वह केवल अपनी आदतों के कारण ही कहीं न कहीं अपनी जिंदगी के पैटर्न को जकड़े हुए था। यही वही आदतें थीं, जो उसे उसी थकान और रूटीन में फंसा रही थीं, जिसके बारे में वह हमेशा सोचता था, "कुछ बदलना चाहिए।"
रवि को अब एक अजीब सी ताजगी महसूस होने लगी थी। उसने सोचा, "क्या यह उसी चक्र को बदलने का समय नहीं है?" क्या यह मौका नहीं था, जब वह अपनी आदतों को फिर से संवार सकता था?
वह धीरे-धीरे सोचने लगा कि वह इस आदत के चक्र को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश करेगा। क्यों न उसे अपनी आदतें फिर से सजा कर अपनी ज़िंदगी को नया रंग दिया जाए? क्या वह उसी आदतों को चुन सकता था, जो उसे खुशी और संतुष्टि दे?
उसने किताब को फिर से खोला।
रवि को अब समझ में आ रहा था कि अगर आदतें इतनी ताकतवर हो सकती हैं तो उन्हें सही दिशा में मोड़कर अपनी ज़िंदगी को भी बदला जा सकता है।
रवि ने उस रात को अपनी आदतों पर ध्यान देना शुरू किया।
उसके दिमाग में सवाल गूंज रहा था: "मैं अपनी आदतें क्यों बदलना चाहता हूँ?" जवाब था: "क्योंकि मेरी आदतें ही मेरी ज़िन्दगी की दिशा तय करती हैं।" वह जानता था कि अगर वह चाहता था कि उसकी ज़िन्दगी में कोई बदलाव आये, तो उसे पहले अपनी आदतों में बदलाव करना होगा।
रवि ने सबसे पहले "Cue" (संकेत) को पहचानने का फैसला किया।
कॉफी पीने की आदत पर ध्यान देते हुए, रवि ने यह समझा कि वह उस समय कॉफी पीता था जब उसे थकान और सुस्ती महसूस होती थी। "क्या यह सच में वही समय है, जब मुझे इस आदत को छोड़ने की बजाय इसे और मजबूत बनाने की जरूरत है?" रवि ने सोचा।
Cue: थकान और सुस्ती।
उसने महसूस किया कि यह तो एक मानसिक स्थिति है—उसके दिमाग में बस यह विचार था कि "अब मुझे आराम चाहिए, मैं कॉफी लूंगा।" लेकिन रवि ने यह तय किया कि वह अब इसे बदलने की कोशिश करेगा। वह अपने दिमाग को इस "Cue" से टालने का तरीका ढूंढने लगा।
अब, "Routine" (रूटीन) पर काम करना था।
रवि ने अपने दिमाग से यह आदत निकालने की बजाय उसे एक नया मोड़ देने की योजना बनाई। उसने सोचा, "कॉफी की बजाय, क्यों न मैं थोड़ी देर चलने जाऊं? थोड़ी शारीरिक गतिविधि से शायद मेरी थकान कम हो जाए।"
तो, जब वह थकान महसूस करता, तो वह कैफेटेरिया की जगह, लंच ब्रेक में बाहर पार्क में चलने चला जाता। शुरू में यह असामान्य लगा, लेकिन धीरे-धीरे उसके शरीर ने इसे स्वीकार किया।
"कैफे की बजाय, यह नया रूटीन मुझे और ताजगी देता है," रवि ने महसूस किया।
अब, वह "Reward" (इनाम) की बात पर आया।
कॉफी पीने से जो ताजगी मिलती थी, उसकी जगह अब उसे पार्क में चलने के बाद ताजगी और ऊर्जा महसूस होती थी। जब वह कुछ देर चलने के बाद फिर से अपने काम पर लौटता, तो वह खुद को ज्यादा फ्रेश और ऊर्जावान महसूस करता था। यह उसका नया इनाम था।
रवि ने देखा कि जैसे-जैसे वह अपनी आदतें बदल रहा था, उसकी ऊर्जा और मानसिक स्थिति भी बदल रही थी। वह पहले से ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पाता था और खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय महसूस करता था।
वह धीरे-धीरे इस आदत को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना चुका था।
अब, जब भी वह थकान महसूस करता, उसे कॉफी का ख्याल नहीं आता था। उसका शरीर और दिमाग अब उसी समय पर चलने का रूटीन स्वीकार कर चुके थे। यही आदतों का जादू था—वह एक नई आदत बना चुका था, जो उसे पहले से बेहतर महसूस कराती थी।
रवि ने देखा कि उसकी यह छोटी सी आदत, जो एक बार उसकी दिनचर्या का हिस्सा थी, अब उसे एक नई दिशा में ले जा रही थी। अब उसने अपनी आदतों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था।
उसने किताब के पहले ही चैप्टर से अपनी ज़िन्दगी में बदलाव की शुरुआत कर दी थी। उसने महसूस किया कि छोटे-छोटे बदलावों से बड़े परिणाम मिल सकते हैं। अब रवि की सोच पूरी तरह बदल चुकी थी, और उसकी आदतों ने उसे नई दिशा दी थी। उसकी दिनचर्या में वह बदलाव था, जिसका वह हमेशा से इंतजार कर रहा था। लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी—वह जानता था कि इसके बाद और भी बहुत कुछ सीखना था।
अब, रवि ने किताब का दूसरा पाठ खोला—"Keystone Habits"।
उसने गहराई से पढ़ा—
कुछ आदतें बाकी आदतों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इन्हें Keystone Habits कहते हैं। ये आपकी जिंदगी में बदलाव की चेन रिएक्शन शुरू करती हैं।"
रवि को तुरंत समझ में आ गया कि यह एक और महत्वपूर्ण सीख थी।
उसे याद आया कि कैसे एक छोटी सी आदत ने उसकी पूरी दिनचर्या बदल दी थी। अगर वह एक आदत को सही दिशा में बदल सकता था, तो क्या बाकी आदतों को भी बदलने की ताकत उसमें नहीं होनी चाहिए?
"Keystone Habits"—यह शब्द उसके दिमाग में गूंजने लगा।
रवि ने सोचा, "अगर एक आदत इतनी ताकतवर हो सकती है, तो क्या कोई आदत मेरी ज़िन्दगी को और भी बेहतर बना सकती है?"
उसने तुरंत निर्णय लिया कि अब वह एक नई आदत शुरू करेगा—रोज सुबह व्यायाम करने की आदत।
"यह आदत मेरी बाकी आदतों पर गहरा प्रभाव डाल सकती है," उसने खुद से कहा।
रवि ने सबसे पहले सुबह जल्दी उठने की आदत को अपनाया। वह पहले से ही 6 बजे उठता था, लेकिन अब वह अपने दिन की शुरुआत एक नई ऊर्जा और उत्साह के साथ करना चाहता था। वह सुबह उठते ही पहले थोड़ी हल्की कसरत करने लगा। पहले दिन थोड़ी मुश्किल हुई, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसे इसका असर महसूस होने लगा।
रवि की सुबह में एक नई ताजगी आ गई थी।
वह पहले से ज्यादा सक्रिय और ऊर्जावान महसूस करता था। व्यायाम के बाद उसे अपने शरीर में जो ताजगी मिलती, वह उसे पहले कभी नहीं महसूस हुई थी। और इस आदत का असर उसकी बाकी आदतों पर भी पड़ने लगा।
व्यायाम ने उसके आत्मविश्वास को भी बढ़ाया। जब वह सुबह उठकर खुद से एक वादा करता और उसे पूरा करता, तो उसे खुद पर गर्व महसूस होता। हर दिन उसे लगता कि वह कुछ अच्छा कर रहा है, और यह उसके मानसिक स्थिति को मजबूत कर रहा था।
अब रवि को यह एहसास होने लगा कि अगर उसे अच्छा महसूस करना है, तो उसे सही खाना भी खाना होगा। व्यायाम से उसे यह प्रेरणा मिली कि उसे अपनी डाइट को भी सुधारना चाहिए। उसने जंक फूड को कम किया और अब अपनी डाइट में फल, सब्जियां और प्रोटीन को ज्यादा शामिल करने लगा।
सुबह जल्दी उठने और व्यायाम करने से उसकी रात की नींद भी बेहतर होने लगी। पहले रात में देर से सोना रवि की आदत बन चुकी थी, लेकिन अब वह समय पर बिस्तर पर जाता था। व्यायाम ने उसकी नींद को भी सुधार दिया, और वह सुबह उठने के लिए ज्यादा फ्रेश महसूस करता था।
और सबसे बड़ा बदलाव क्या था?
उसकी पूरी जिंदगी बेहतर हो गई थी।
रवि के लिए यह समझना आसान हो गया था कि एक छोटी सी आदत—जैसे रोज सुबह व्यायाम करना—पूरी ज़िन्दगी में चेन रिएक्शन शुरू कर सकती है।
अब उसका दिन पहले से ज्यादा संरचित और उद्देश्यपूर्ण था। वह जानता था कि जब एक आदत सही दिशा में बदल सकती है, तो बाकी आदतें भी बदल सकती हैं।
रवि ने "Keystone Habit" को अपनी जिंदगी में पूरी तरह से उतार लिया था।
यह आदत उसे शारीरिक और मानसिक रूप से बेहतर बनाती जा रही थी। उसने महसूस किया कि जब एक आदत उसकी बाकी आदतों को प्रभावित करती है, तो वह न सिर्फ अपने कामों को बेहतर तरीके से कर सकता है, बल्कि अपनी ज़िन्दगी को भी पूरी तरह से नया दिशा दे सकता है।
अब रवि को यह समझ में आ चुका था कि बदलाव का पहला कदम सही आदत से शुरू होता है, और एक बार अगर आप इसे सही दिशा में डाल लें, तो बाकी सब चीजें खुद-ब-खुद सही हो जाती हैं। रवि की नई सुबह, नई आदतों और नई ज़िन्दगी ने उसे एक नया दृष्टिकोण दिया था।
रवि ने अब अपनी आदतों को बदलने का सफर पूरी तरह से अपनाया था, और अब वह "The Golden Rule of Habit Change" पर आधारित नए बदलावों की ओर बढ़ रहा था। किताब में यह नियम उसे पूरी तरह से समझ में आया:
"आदत को पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है, लेकिन उसे बदला जा सकता है।
पुराना Cue वही रखें।
नई Routine शामिल करें।
वही Reward दें।"
यह सुनकर रवि को लगा, "यह सही है।"
उसने महसूस किया कि आदतों को पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन अगर वह पुराने संकेत (Cue) को बरकरार रखते हुए, नया रूटीन (Routine) जोड़ सके और वही इनाम (Reward) पा सके, तो यह आदत बदल सकती है।
वह सोचने लगा कि उसकी आदतें, विशेषकर उसके खाने की आदतें, कैसे उसके काम और मानसिक स्थिति को प्रभावित करती हैं।
रवि को यह समझ में आ गया था कि कभी-कभी वह ऑफिस के काम से थका हुआ होता था, और इस स्थिति में उसे जंक फूड खाने की आदत होती थी। यह आदत अब उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को खराब कर रही थी, जिससे उसका काम पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो रहा था।
Cue: ऑफिस के बाद की थकान और भूख।
Routine: जंक फूड के बजाय हेल्दी स्नैक्स जैसे फल और नट्स खाने की आदत डालना।
Reward: पेट भरने का अहसास और खुश महसूस करना।
रवि ने अपने दिन में यह बदलाव करना शुरू किया। अब जब भी उसे ऑफिस के बाद की थकान और भूख महसूस होती, वह जंक फूड की बजाय ताजे फल या नट्स खाने लगता। यह उसे पहले जैसा ताजगी का अहसास दिलाता था, और उसे पेट भरने का संतोष भी मिलता था। वह खुश रहता, और उसकी कार्यक्षमता भी बरकरार रहती थी।
रवि की पेशेवर जिंदगी में यह बदलाव कैसे आया?
रवि ने महसूस किया कि जैसे-जैसे उसकी व्यक्तिगत आदतें बदल रही थीं, वैसे-वैसे उसका पेशेवर जीवन भी बेहतर होने लगा था। इस बदलाव ने उसकी कार्यक्षमता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया।
जब रवि ने जंक फूड की बजाय हेल्दी स्नैक्स खाना शुरू किया, तो उसकी ऊर्जा का स्तर बढ़ने लगा। अब वह पूरे दिन में थकान और सुस्ती से बचने लगा था। इसका असर उसकी मानसिक स्थिति पर भी पड़ा, जिससे वह अपने काम पर अधिक ध्यान दे पाता था।
रवि को यह एहसास हुआ कि पहले जब वह जंक फूड खाता था, तो वह ऑफिस के काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता था। अब जब उसने हेल्दी आदतें अपनाईं, तो उसका मानसिक फोकस और ध्यान बेहतर हुआ। वह अपने काम पर अधिक समय और ऊर्जा दे पाता था, और इस वजह से उसकी उत्पादकता बढ़ गई थी।
रवि का अब ऑफिस में भी मन पूरी तरह से लगा रहता था। उसे लगता था कि उसके सहकर्मी और बॉस अब उसे एक नए तरीके से देखते थे। पहले वह जो थका-थका सा नजर आता था, अब उसकी ऊर्जा और जोश की वजह से वह ज्यादा सकारात्मक और प्रभावशाली नजर आने लगा था।
स्वस्थ आदतों को अपनाने से रवि को यह भी समझ में आया कि उसे अपना समय बेहतर तरीके से प्रबंधित करना होगा। अब वह अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देता था, और इसी कारण उसकी पूरी दिनचर्या और समय की प्रबंधन क्षमता सुधर गई। वह समय पर ऑफिस पहुंचता था, बेहतर तरीके से ब्रेक लेता था, और सबसे जरूरी बात यह थी कि वह अपनी कामकाजी दिनचर्या में संतुलन बना पाता था।
इस बदलाव से रवि की पेशेवर जिंदगी पर जो असर पड़ा, वह एक लंबी अवधि में दिखने लगा।
वह अब अपनी आदतों से संतुष्ट था क्योंकि उसने खुद को बदलने के लिए पहला कदम उठाया था। यह आदतें उसकी जिंदगी में एक चेन रिएक्शन पैदा कर चुकी थीं, और अब उसका काम भी ज्यादा प्रभावी और संतोषजनक हो गया था। रवि ने महसूस किया कि जब वह अपनी आदतों पर नियंत्रण पा सकता है, तो वह अपने पेशेवर जीवन को भी बेहतर दिशा दे सकता है।
रवि ने जो "Golden Rule of Habit Change" अपनाया, वह उसकी पेशेवर और व्यक्तिगत जिंदगी में एक सकारात्मक बदलाव लेकर आया। अब वह जानता था कि आदतें सिर्फ हमारी मानसिकता और शारीरिक स्थिति को ही नहीं, बल्कि हमारे काम और रिश्तों को भी प्रभावित करती हैं। उसने अपनी आदतों को बदलकर एक नए रास्ते पर चलना शुरू किया था, और अब वह हर दिन अपनी सफलता की नई ऊंचाइयों को छू रहा था।
रवि अब अपनी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदलने की राह पर था, और जैसे-जैसे वह किताब के नए पाठ पढ़ता जा रहा था, उसकी समझ और आत्मविश्वास भी बढ़ रहा था। जब उसने "The Role of Willpower in Habits" (इच्छाशक्ति का आदतों में भूमिका) के बारे में पढ़ा, तो उसे लगा कि यह उसका अगला बड़ा कदम हो सकता है।
चार्ल्स डुहिग्ग ने किताब के चौथे अध्याय में यह लिखा था:
"इच्छाशक्ति आदतें बदलने की नींव है। लेकिन इच्छाशक्ति को बार-बार इस्तेमाल करना थकावट भरा हो सकता है। इसे मजबूत बनाने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाएं।"
रवि को यह बात पूरी तरह से समझ में आई। इच्छाशक्ति ही वह शक्ति थी, जो उसे अपनी आदतों को बदलने में मदद करती थी, लेकिन उसे यह भी समझ में आया कि इच्छाशक्ति का बार-बार इस्तेमाल करना आसान नहीं होता। यह कई बार थकावट का कारण बन सकता है, और बिना सही तरीके से इसे मजबूत किए, वह अपनी आदतें बदलने में सफल नहीं हो सकता।
रवि ने ध्यान से इस सिद्धांत को अपनाया और सोचा, "मैं इसे छोटे-छोटे कदमों से शुरू करूंगा।"
रवि ने अपनी सुबह की आदतों में बदलाव लाने के लिए इसे खुद पर लागू करना शुरू किया।
वह पहले से ही सुबह जल्दी उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कभी न कभी वह सो जाता था और देर से उठता था। अब, उसने तय किया कि वह छोटे-छोटे कदमों से अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत करेगा।
रवि ने पहले दिन खुद से वादा किया, "आज मैं 5 मिनट पहले उठूंगा।"
वह जानता था कि यह कोई बड़ा बदलाव नहीं है, लेकिन यह एक शुरुआत थी। वह 6 बजे की बजाय 5:55 बजे उठने लगा। और चूंकि यह ज्यादा बड़ा बदलाव नहीं था, इसलिए वह इसे आसानी से कर सका।
अगले दिन, रवि ने सोचा, "आज मैं 10 मिनट पहले उठूंगा।"
इस बार भी उसने अपनी इच्छाशक्ति को थोड़ा और चुनौती दी, लेकिन चूंकि यह लगातार छोटे कदम थे, उसे यह थकावट महसूस नहीं हुई।
अब रवि ने सुबह उठने का समय और भी थोड़ा बढ़ाया—वह 15 मिनट पहले उठने लगा।
इससे उसके दिन की शुरुआत और भी ताजगी के साथ होने लगी थी। और अब जब वह उठता, तो उसे महसूस होता कि उसकी इच्छाशक्ति में एक नया बल आ रहा है।
रवि को यह महसूस होने लगा कि इच्छाशक्ति सिर्फ शुरुआत में ही मुश्किल होती है। जैसे-जैसे वह छोटे कदमों से काम कर रहा था, उसकी इच्छाशक्ति मजबूत होती जा रही थी। वह ज्यादा ऊर्जावान और खुश महसूस करने लगा था।
अब रवि ने इसे अपनी पेशेवर जिंदगी में भी लागू किया।
ऑफिस में भी, रवि ने सोचा कि उसके पास जो भी काम होता, अगर वह छोटे-छोटे कदमों में उसे पूरा करने की आदत डाल ले, तो उसकी इच्छाशक्ति को लगातार मजबूत किया जा सकता है।
ऑफिस के काम में, रवि ने बड़े और भारी प्रोजेक्ट्स को छोटे हिस्सों में तोड़ लिया। पहले दिन उसने सोचा, "आज मैं इस काम को 10 मिनट के लिए शुरू करूंगा, और फिर बाकी काम कल करूंगा।" इस छोटे कदम से उसने काम की शुरुआत की और फिर धीरे-धीरे पूरा प्रोजेक्ट पूरा किया।
रवि ने अब अपने समय की योजना बेहतर बनानी शुरू की। वह छोटे-छोटे कार्यों के लिए खुद को समय दे रहा था, और इससे उसकी कार्यक्षमता बढ़ रही थी। जैसे-जैसे वह छोटे कार्यों को तेजी से करता, उसकी इच्छाशक्ति मजबूत होती जा रही थी।
जैसे-जैसे रवि अपनी इच्छाशक्ति को छोटे कदमों से मजबूत कर रहा था, वह अपनी बुरी आदतों से भी छुटकारा पाने में सफल हो रहा था। पहले वह बहुत ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बर्बाद करता था, लेकिन अब उसने यह आदत बदल दी थी। वह सिर्फ दिन के कुछ घंटे ही सोशल मीडिया पर बिताता था और बाकी समय अपने काम पर ध्यान केंद्रित करता था।
रवि की पेशेवर और व्यक्तिगत ज़िन्दगी में बदलाव आ रहा था।
जब उसने अपनी इच्छाशक्ति को छोटे-छोटे कदमों से मजबूत किया, तो उसकी मानसिक स्थिति में भी सुधार हुआ। अब वह अपनी आदतों को नियंत्रित करने में सक्षम था, और इसका असर उसकी पेशेवर ज़िन्दगी पर साफ-साफ दिखने लगा था।
रवि की उत्पादकता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी। अब वह ऑफिस में पूरे ध्यान से काम करता था, और जब कोई नया प्रोजेक्ट आता, तो वह उसे पहले छोटे हिस्सों में बांटकर उसे समय से पूरा करता था।
अब रवि को खुद पर भरोसा था। उसने खुद को यह साबित किया था कि इच्छाशक्ति को छोटे-छोटे कदमों से मजबूत किया जा सकता है, और इससे उसकी पूरी ज़िन्दगी में आत्मविश्वास और ताकत आ गई थी।
सुबह जल्दी उठने की आदत और छोटे कदमों से इच्छाशक्ति मजबूत करने की प्रक्रिया ने उसे मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में स्वस्थ बना दिया था। अब वह दिनभर ऊर्जावान और खुश रहता था, और यह उसका कामकाजी जीवन भी प्रभावित कर रहा था।
रवि अब अपनी आदतों को सुधारने और जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में पूरी तरह से प्रतिबद्ध हो चुका था। वह "The Power of Social Groups" (सोशल ग्रुप्स की ताकत) के बारे में पढ़ते हुए यह महसूस कर रहा था कि जैसे-जैसे वह अपनी आदतों पर काम कर रहा था, कुछ और महत्वपूर्ण बातें उसे समझ में आ रही थीं।
किताब में लिखा था:
"हम जिन लोगों के साथ समय बिताते हैं, उनकी आदतें हम पर असर डालती हैं। सही माहौल और प्रेरित लोगों के साथ रहकर हम अच्छी आदतें विकसित कर सकते हैं।"
रवि ने सोचा, "यह बिल्कुल सही है।" वह अब जान चुका था कि किसी भी बदलाव को लाने के लिए सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति ही नहीं, बल्कि उसे सही लोगों का साथ और सही माहौल भी चाहिए।
"अगर आप फिटनेस पर ध्यान देना चाहते हैं, तो आप जिम जाने वाले दोस्तों के साथ समय बिताएंगे, क्योंकि उनकी आदतें आपको भी प्रेरित करेंगी।" यह लाइन रवि के दिमाग में गूंज रही थी। वह अपने पुराने दोस्तों और सहकर्मियों के साथ समय बिता रहा था, जो अधिकतर समय फोन पर और सोशल मीडिया में ही लगे रहते थे। यह उसकी प्रेरणा को कहीं न कहीं प्रभावित कर रहा था।
रवि की ज़िन्दगी में सोशल ग्रुप्स की ताकत का असर कैसे दिखने लगा
रवि के दिमाग में हमेशा यह सवाल था, "क्या मैं अकेले यह बदलाव ला पाऊंगा?"
उसने देखा कि जब वह अपने सहकर्मियों के साथ बैठता, तो वे हमेशा कुछ न कुछ समय बर्बाद करने की बात करते रहते थे—चाय के ब्रेक्स, फालतू की बातें, और ऐसे ही समय को खो देना। यह रवि को भी प्रभावित करता था, और उसकी आदतें भी उन्हीं जैसा होने लगी थीं। लेकिन अब वह जान चुका था कि वह सिर्फ अपनी इच्छाशक्ति से ही बदलाव नहीं ला सकता था, उसे अच्छे माहौल और सही लोगों की ज़रूरत थी।
रवि ने तय किया कि वह उन लोगों के साथ अपना समय बिताएगा, जो उसे बेहतर बनने के लिए प्रेरित करें।
वह जिम जाने वाले अपने पुराने दोस्त, विजय से मिला और उसे अपनी फिटनेस पर काम करने के बारे में बताया। विजय ने कहा, "तुम्हारे लिए जिम आना शुरू करना कोई बड़ा काम नहीं है, यह सिर्फ एक आदत है। और यकीन मानो, अगर तुम सही माहौल में रहोगे, तो तुम्हारी आदतें खुद-ब-खुद बदलने लगेंगी।"
रवि ने विजय के साथ जिम जाने का मन बना लिया। जिम में हर रोज़ जाकर, रवि ने महसूस किया कि वहां का माहौल और बाकी लोग उसे प्रेरित करते थे। उसने देखा कि लोग कितने मेहनती हैं, वे क्या खाते हैं, और कैसे अपनी फिटनेस को लेकर पूरी तरह से समर्पित हैं।
रवि की पेशेवर और व्यक्तिगत ज़िन्दगी में बदलाव
रवि ने यह महसूस किया कि जैसे-जैसे वह जिम जाता, उसकी ऊर्जा और मानसिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आने लगा। जिम जाने के बाद, उसका आत्मविश्वास बढ़ गया, और ऑफिस में भी वह पहले से अधिक फोकस्ड और उत्पादक हो गया था। अब वह अपने काम को प्राथमिकता देता था, क्योंकि वह जानता था कि अगर वह अपनी फिटनेस पर ध्यान दे सकता है, तो वह किसी भी पेशेवर चुनौती से निपटने के लिए तैयार होगा।
रवि के जीवन में सोशल ग्रुप्स का असर सिर्फ उसकी फिटनेस तक ही सीमित नहीं था। अब वह उन दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिताने लगा था, जो जीवन में प्रेरित थे और अच्छे आदतों को अपनाए हुए थे। यह उसके व्यक्तिगत रिश्तों को भी बेहतर बना रहा था। उसकी बातें अब ज्यादा सकारात्मक होतीं, और वह दूसरों को भी उनके जीवन में सुधार लाने के लिए प्रेरित करता था।
जिम में हर रोज़ जाने से रवि ने यह देखा कि उसका मानसिक तनाव भी कम हो रहा था। शारीरिक रूप से फिट रहने से उसका दिमाग भी तरोताजा रहता था, जिससे वह किसी भी समस्या का सामना बेहतर तरीके से कर पा रहा था।
रवि ने किताब के इस अध्याय को अपनी ज़िन्दगी में पूरी तरह से लागू किया। वह जान चुका था कि हमारी आदतें हमारे आस-पास के लोगों से बहुत प्रभावित होती हैं, और इसलिए यदि वह अपनी आदतों को बदलना चाहता था, तो उसे अपने ग्रुप को भी बदलना पड़ेगा। वह अब उन लोगों के साथ समय बिता रहा था, जो उसकी तरह खुद को सुधारने और विकसित करने की कोशिश कर रहे थे।
रवि का जिम जाना और फिटनेस पर ध्यान देना सिर्फ उसके शरीर को ही नहीं, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति और आत्मविश्वास को भी मजबूत बना रहा था।
अब रवि ने महसूस किया कि अगर वह फिटनेस के साथ अपने पेशेवर जीवन में भी वही ऊर्जा और जोश लाता है, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है।
उसके आस-पास के लोग अब उसे और अधिक प्रेरित कर रहे थे। वह न सिर्फ खुद को, बल्कि दूसरों को भी सकारात्मक दिशा में प्रेरित करने लगा था।
रवि अब अपनी ज़िन्दगी में बदलाव की पूरी प्रक्रिया से गुजर चुका था और उसने "Small Wins Matter" (छोटी जीतों का महत्व) के बारे में भी पढ़ा। यह अध्याय उसके लिए एक और बड़ी सीख लेकर आया था, क्योंकि उसे अब एहसास हो रहा था कि बदलाव की शुरुआत छोटे-छोटे कदमों से ही होती है।
किताब में लिखा था:
"छोटी-छोटी जीतें बड़ी आदतों और बड़े बदलावों की शुरुआत होती हैं। ये आत्मविश्वास बढ़ाती हैं और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।"
रवि ने महसूस किया कि उसकी ज़िन्दगी में बदलाव लाने के लिए, वह जितना बड़ा लक्ष्य तय करता, उतना ही कठिन उसे लगने लगता। लेकिन छोटे-छोटे कदम, छोटी-छोटी जीतें, जो शुरुआत में आसान लगती थीं, वह उसे बड़े बदलाव की ओर ले जा सकती थीं।
"मान लीजिए, आप रोज 10,000 कदम चलने की आदत डालना चाहते हैं। शुरुआत में 2,000 कदम चलें। जब आप इसे रोजाना पूरा करेंगे, तो यह जीत आपको 10,000 कदम तक ले जाएगी।" यह रवि के लिए एक सच बन चुका था।
रवि ने शुरुआत में तय किया था कि वह 10,000 कदम रोज़ चलने की आदत डालेगा। लेकिन उसे पता था कि यह शुरुआत में बहुत कठिन हो सकता है, इसलिए उसने 2,000 कदम से शुरुआत की।
रवि ने रोज़ सुबह जल्दी उठकर 2,000 कदम चलने की आदत डाली। पहले दिन उसे थोड़ा मुश्किल लगा, लेकिन फिर उसने सोचा, "यह शुरुआत है, और मुझे यह हर दिन बेहतर करना है।"
दूसरे दिन, रवि ने 2,000 कदम पूरे किए, और उसे ऐसा लगा जैसे उसने एक बड़ी जीत हासिल की हो। यह जीत उसकी आत्मविश्वास को और बढ़ाती जा रही थी। अब वह थोड़ा और आगे बढ़ने की सोचने लगा।
रवि ने महसूस किया कि जैसे-जैसे वह 2,000 कदम पूरे करता जा रहा था, वह 3,000, फिर 4,000, और धीरे-धीरे 10,000 कदम तक पहुंचने में सफल हो गया।
उसने समझ लिया कि छोटी-छोटी जीतें ही उसकी बड़ी सफलता का आधार बन रही थीं।
रवि की दोस्त अंशुया ने एक दिन ध्यान दिया, "यार, तू तो अब बहुत बदल गया है। पहले तू इतने आलसी था, और अब देख, कैसे हर दिन वो 10,000 कदम चलने का लक्ष्य पूरा करता है!"
अंशुया को यह देखकर हैरानी हुई कि रवि में कितनी सकारात्मक बदलाव आ गए थे। पहले वह अक्सर समय बिताने के लिए फोन पर ही व्यस्त रहता था, लेकिन अब वह अपनी दिनचर्या को लेकर पूरी तरह से समर्पित था।
रवि की सहकर्मी भी उसे देखकर प्रभावित हो रहे थे। वे महसूस कर रहे थे कि रवि अब अपने काम में भी ज्यादा फोकस्ड और उत्पादक हो गया है। पहले वह कुछ कामों में अक्सर आलस्य दिखाता था, लेकिन अब वह छोटे-छोटे कदमों से काम करता और समय पर उसे पूरा करता।
उनके सहकर्मी अब रवि से प्रेरित होकर अपनी आदतों को बदलने की कोशिश करने लगे थे। रवि की नई आदतें सिर्फ उसकी ज़िन्दगी को ही नहीं, बल्कि उसके आस-पास के लोगों की ज़िन्दगी को भी प्रभावित कर रही थीं।
रवि अब जान चुका था कि छोटी जीतें ही आत्मविश्वास का आधार बनती हैं। हर छोटा कदम, चाहे वह 2,000 कदम चलने की शुरुआत हो, या अपने काम को समय पर पूरा करने का छोटा लक्ष्य, उसकी ज़िन्दगी में बहुत बड़ा परिवर्तन ला रहा था।
रवि ने अब आत्मविश्वास के साथ खुद को हर दिन चुनौती दी थी। वह जानता था कि जो कुछ भी करना है, वह धीरे-धीरे और लगातार मेहनत से ही संभव है। हर छोटी जीत ने उसे अगले बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी।
अब रवि का ऑफिस में भी काम पहले से कहीं अधिक उत्पादक था। उसने काम को छोटे हिस्सों में बाँटकर उसे पूरा किया, और जब हर छोटा कार्य उसने सफलतापूर्वक पूरा किया, तो वह आत्म-संतुष्टि महसूस करता। यह संतुष्टि उसकी आत्मविश्वास को और बढ़ाती थी।
अब रवि को यह समझ में आ चुका था कि बड़े बदलाव छोटे कदमों से ही आते हैं। "Small Wins Matter" ने उसे यह सिखाया था कि सफलता के लिए बड़े लक्ष्य होना ज़रूरी नहीं है, बल्कि हर छोटे कदम पर काम करना और उसे पूरा करना ही उसे अपने बड़े लक्ष्यों की ओर ले जाता है।
रवि की दोस्त अंशुया और उसके सहकर्मी अब उसे देखकर समझ रहे थे कि छोटी जीतें कैसे जीवन में बड़े बदलाव ला सकती हैं। रवि ने अपनी ज़िन्दगी में छोटी-छोटी जीतों का महत्व समझा और उसने उन्हें अपने जीवन के हर पहलू में लागू किया। अब वह खुद को हर दिन बेहतर और मजबूत महसूस कर रहा था।
रवि अब "The Power of Habit" किताब के आखिरी अध्याय "The Science of Cravings" (लालसा का विज्ञान) में था, और यह अध्याय उसकी ज़िन्दगी में एक और महत्वपूर्ण मोड़ लाने वाला था। इस अध्याय में वह कुछ नया सीखने जा रहा था, जो उसकी आदतों को पूरी तरह से बदल सकता था।
किताब में लिखा था:
"आदतें लालसा (craving) से बनती और मजबूत होती हैं। अगर आप लालसा को समझें और सही तरीके से उसे पूरा करें, तो आप आदतों को नियंत्रित कर सकते हैं।"
रवि ने सोचा, "यह तो सच है।" वह समझने लगा कि आदतें सिर्फ हमारी रूटीन का हिस्सा नहीं होतीं, बल्कि उनका गहरा संबंध हमारी लालसाओं से होता है। लालसा—जो कुछ अच्छा पाने की इच्छा होती है—यह हमारे व्यवहार को नियंत्रित करती है और हमारी आदतें बनाती है।
"जैसे, अगर आप मीठा खाना पसंद करते हैं, तो इसके पीछे लालसा मीठा स्वाद और खुशी है। अगर आप इसे फलों के जरिए पूरा करें, तो आप जंक फूड से बच सकते हैं।" यह उदाहरण रवि के दिमाग में गूंज गया। अब उसे यह समझ में आया कि अगर वह अपनी लालसाओं को सही तरीके से संतुष्ट कर सकता है, तो वह अपनी बुरी आदतों को बदल सकता है।
रवि ने अपनी लालसा को कैसे समझा और उसे नियंत्रित किया
रवि को मीठा खाने की आदत थी। वह अक्सर ऑफिस में चाय के साथ बिस्कुट या मिठाई खाता था। लेकिन अब उसे यह समझ में आ गया था कि यह आदत उसके शरीर और उसकी सेहत के लिए नुकसानदेह थी। उसे मीठे खाने की लालसा थी, और इस लालसा को संतुष्ट करने के लिए वह हमेशा जंक फूड की ओर बढ़ जाता था।
रवि ने पहले अपनी लालसा को पहचानने की कोशिश की। वह यह महसूस करने लगा कि जब भी उसे थकान या मानसिक तनाव होता, उसे मीठा खाने की इच्छा होती। यह लालसा उसकी मानसिक स्थिति से जुड़ी हुई थी—जब वह थका होता, उसे मिठाई खाने से खुशी और राहत मिलती थी।
रवि ने सोचा, "अगर यह लालसा है, तो मैं इसे फलों या हेल्दी स्नैक्स के जरिए क्यों पूरा नहीं कर सकता?" उसने एक योजना बनाई और अब जब भी उसे मीठा खाने का मन करता, वह फलों का सेवन करने लगा। वह जानता था कि फल भी मीठे होते हैं, लेकिन वे अधिक स्वास्थ्यवर्धक होते हैं और उसके शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते।
रवि ने धीरे-धीरे अपनी आदत बदलनी शुरू की। वह अब चाय के साथ बिस्कुट या मिठाई की जगह आम और केला खाता था। उसे यह महसूस हुआ कि वह पहले जितना मीठा खाने की लालसा नहीं करता था, क्योंकि अब उसकी लालसा को फल पूरी तरह से संतुष्ट कर रहे थे।
रवि अपनी ज़िन्दगी में हो रहे बदलावों को लेकर अब पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वासी और संतुष्ट महसूस कर रहा था। वह अपनी आदतों को बदलने में सफल हो चुका था और अब उसे यह एहसास हो रहा था कि वह सिर्फ खुद को ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित कर सकता है।
एक दिन अंशुया ने रवि से कहा, "तू सच में बहुत बदल गया है। पहले तुझे कभी स्वास्थ्य के बारे में चिंता नहीं थी, लेकिन अब देख, तुझे सब कुछ एक अलग नजरिए से समझ आ रहा है। तेरी आदतों में भी बदलाव आया है, और यह बहुत प्रेरणादायक है!"
रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, मैं अब खुद को और अपनी आदतों को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा हूँ। किताब ने मुझे यह समझने में मदद की कि आदतें और लालसाएँ हमारे जीवन का हिस्सा हैं, और अगर हम उन्हें सही दिशा में ले जाएं, तो वे हमारी ताकत बन सकती हैं।"
अंशुया ने फिर कहा, "यह देखकर अच्छा लगता है कि तू अपनी आदतों में इतने बड़े बदलाव ला रहा है। तेरे जैसे लोग हमें प्रेरणा देते हैं कि अगर हम चाहें तो अपनी आदतों और जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं।"
रवि के सहकर्मी भी अब उसे एक अलग नजरिए से देख रहे थे। पहले जो रवि समय बर्बाद करने वाली आदतों में फंसा रहता था, अब वह अपने काम को बेहतर तरीके से करने के साथ-साथ अपनी सेहत और आदतों पर भी ध्यान दे रहा था। उसके सहकर्मी अक्सर उससे पूछते कि वह कैसे अपनी आदतों को बदल पा रहा है और क्या वे भी इस बदलाव को अपनी जिंदगी में लागू कर सकते हैं।
रवि अब एक उदाहरण बन चुका था कि कैसे आदतें, खासकर लालसा, को समझकर हम अपने जीवन में सुधार ला सकते हैं। उसने यह साबित कर दिया कि आदतें सिर्फ खराब नहीं होतीं, बल्कि हम उन्हें अपनी जिंदगी के लिए सकारात्मक बना सकते हैं।
रवि ने अपनी लालसाओं को समझा और उन्हें सही तरीके से संतुष्ट किया। अब वह अपनी मीठी लालसा को फलों के जरिए पूरा करता था, जिससे उसे न सिर्फ मिठास मिलती, बल्कि उसकी सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ता था।
अब रवि का ध्यान सिर्फ अपने शरीर और सेहत पर नहीं, बल्कि मानसिक स्थिति पर भी था। वह जानता था कि आदतों में बदलाव लाकर वह अपनी पूरी जिंदगी को बेहतर बना सकता है।
रवि का जीवन अब दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुका था। उसकी आदतों में हुए बदलावों ने न केवल उसकी ज़िन्दगी को, बल्कि उसके आसपास के लोगों की ज़िन्दगी को भी प्रभावित किया था।
रवि ने "The Power of Habit" की हर सीख को अपने जीवन में लागू किया और अपने साथ-साथ दूसरों को भी बदलने और बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया।
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