गलतियाँ भी हमें सही रास्ते पर ले आती हैं | The Subtle Art of Not Giving a F*ck | Book Summary in Hindi
hello friends
मैं हूँ आपका दोस्त अनिल सहारण, और आज हम बात करेंगे एक ऐसी किताब के बारे में जो हमारी सोच और जीवन जीने के तरीके को बदल सकती है। The Subtle Art of Not Giving a Fck by Mark Manson
क्या आप भी अपनी जिंदगी की छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान रहते हैं? क्या आप भी अपनी हर छोटी बात पर सोचते हैं कि क्या सही है और क्या गलत? तो इस वीडियो को देखने के बाद, आपको अपने जीवन में नए तरीके से सोचना और जीना आएगा।
तो चलिए, बिना समय गंवाए, शुरू करते हैं और जानते हैं कि ये किताब हमारे जीवन को कैसे बदल सकती है।
सचिन एक 30 साल का युवा था, जिसने अपनी मेहनत से एक अच्छी नौकरी और लग्जरी लाइफस्टाइल हासिल कर ली थी। ऊँची सैलरी, शानदार कार, और सोशल मीडिया पर लोगों की वाहवाही – ये सब उसके पास था। लेकिन इन सबके बावजूद, अंदर से वह परेशान रहता था।
हर दिन, वह सोशल मीडिया पर दूसरों की ज़िंदगी देखकर खुद को कमतर महसूस करता। अगर उसके दोस्त विदेश घूमने जाते, तो उसे लगता कि उसकी लाइफ बोरिंग है। अगर कोई नया फोन खरीदता, तो उसे लगता कि उसे भी खरीदना चाहिए। वह हर किसी को खुश करने में लगा रहता, लेकिन खुद की खुशी कहीं खो गई थी।
ऑफिस में, वह हर किसी को इम्प्रेस करने की कोशिश करता था। बॉस की हर बात मानता, टीम के काम का बोझ खुद उठा लेता, और हर किसी से अच्छे रिलेशन रखने की कोशिश करता। लेकिन इस चक्कर में वह खुद को भूल गया था।
शाम को जब वह घर लौटता, तो मन में एक अजीब सी बेचैनी होती। सोशल मीडिया पर दूसरों की लाइफ देखकर वह और ज्यादा परेशान हो जाता। उसे लगता कि उसकी ज़िंदगी उतनी मज़ेदार नहीं है। कभी-कभी उसे लगता कि शायद वह गलत राह पर चल रहा है, लेकिन उसे समझ नहीं आता कि असली दिक्कत क्या है।
एक दिन, वह अपनी अलमारी साफ कर रहा था, तभी उसे एक पुरानी किताब मिली – "The Subtle Art of Not Giving a Fck"। यह किताब उसके दोस्त आदित्य ने उसे एक साल पहले दी थी, लेकिन तब उसने इसे पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं ली थी।
आज जब सचिन ने किताब को हाथ में लिया, तो उसका ध्यान टाइटल पर गया – "The Subtle Art of Not Giving a Fck"। उसे लगा कि यह किताब शायद उसकी उलझनों का जवाब दे सकती है।
उसने पहला पन्ना खोला...
किताब की शुरुआत एक दिलचस्प कहानी से होती है। लेखक Mark Manson एक अमेरिकी व्यक्ति, चार्ली का ज़िक्र करते हैं, जिसे दुनिया का सबसे असफल व्यक्ति कहा जाता था।
चार्ली एक लेखक बनना चाहता था, लेकिन उसकी हर किताब फ्लॉप हो गई। वह सेना में भर्ती हुआ, लेकिन वहाँ भी उसे निकाल दिया गया। उसने राजनीति में कदम रखा, लेकिन वहाँ भी बुरी तरह हार गया। उसने शादी की, लेकिन वह भी ज्यादा समय तक नहीं चली।
अगर कोई और इंसान होता, तो शायद इस नाकामी से टूट जाता। लेकिन चार्ली ने ऐसा नहीं किया। उसने दुनिया की परवाह करना छोड़ दिया और अपने तरीके से जीने का फैसला किया। उसने कॉमेडी में हाथ आजमाया और "चार्ली चैपलिन" बन गया—दुनिया के सबसे महान कॉमेडियन्स में से एक!
यह कहानी पढ़कर सचिन एक पल के लिए सोच में पड़ गया।
"क्या मैं भी अपनी ज़िंदगी में हर चीज़ को लेकर ज़रूरत से ज्यादा परेशान हो रहा हूँ?"
Mark Manson इस कहानी के जरिए यही समझाना चाहते थे कि हमें हर चीज़ की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें यह तय करना चाहिए कि किन चीजों को लेकर सच में परवाह करना चाहते हैं और किन चीजों को छोड़ देना चाहिए। यही किताब का मुख्य संदेश भी था।
सचिन ने किताब को बंद किया और गहरी सांस ली। शायद यह किताब उसके सोचने का तरीका बदल सकती थी। उसने तय किया कि वह इसे पूरी तरह पढ़ेगा और अपने जीवन में लागू करने की कोशिश करेगा।
अब कहानी को आगे बढ़ाते हुए हम Lesson एक Don't Try से शुरू कर सकते हैं, जहाँ सचिन इस किताब के पहले अध्याय को पढ़ता है
सचिन अब इस किताब में पूरी तरह डूब चुका था। जब उसने "Don't Try" चैप्टर पढ़ा, तो वह सोच में पड़ गया।
"क्या मैं भी अपनी लाइफ में हर चीज़ को कंट्रोल करने और परफेक्ट बनाने की कोशिश कर रहा हूँ?"
Mark Manson की यह बात सचिन की हकीकत से मिलती-जुलती थी। वह हर चीज़ में सबसे बेहतर बनने की कोशिश कर रहा था – ऑफिस में, सोशल मीडिया पर, दोस्तों के बीच, हर जगह। लेकिन क्या वाकई इससे उसे खुशी मिल रही थी?
अगले दिन, ऑफिस में एक प्रेजेंटेशन की तैयारी थी। पहले सचिन हर बार प्रेजेंटेशन को परफेक्ट बनाने की कोशिश करता था, जिससे उसे बहुत स्ट्रेस हो जाता था। लेकिन इस बार, उसने खुद से कहा –
"हर चीज़ परफेक्ट करने की जरूरत नहीं है, मुझे सिर्फ सही चीज़ों पर फोकस करना है।"
उसने सिर्फ जरूरी पॉइंट्स पर ध्यान दिया, बेकार की डिटेल्स में उलझने के बजाय अपनी बात साफ और सीधी रखी। नतीजा? प्रेजेंटेशन पहले से ज्यादा प्रभावी था और उसे ज्यादा स्ट्रेस भी नहीं हुआ।
"कम मेहनत, ज्यादा असर – सही चीजों पर फोकस करने का पहला फायदा!"
सचिन ने महसूस किया कि वह सोशल मीडिया पर हर किसी को खुश करने और दिखाने में बहुत ज्यादा एनर्जी लगा रहा था। वह अक्सर इंस्टाग्राम पर पोस्ट डालता था कि लोग उसे कूल समझें, लेकिन इससे वह खुद ही बेचैन रहता था।
अब उसने फैसला किया कि वह सिर्फ उन्हीं चीज़ों की परवाह करेगा जो उसकी ज़िंदगी में वाकई मायने रखती हैं। उसने सोशल मीडिया पर बेवजह पोस्ट डालना बंद कर दिया और सिर्फ उन दोस्तों के साथ वक्त बिताने लगा जो उसकी परवाह करते थे।
पहली बार, उसे महसूस हुआ कि "हर चीज़ में सबसे बेहतर बनने की जरूरत नहीं, सिर्फ वही करो जो सच में जरूरी है।"
छोटी-छोटी बातों की चिंता छोड़ना
पहले, अगर कोई उसके बारे में गलत बोलता था, तो वह घंटों परेशान रहता था। लेकिन अब, उसने खुद से एक सवाल पूछा –
"क्या यह बात मेरी जिंदगी के अगले 5 सालों में कोई फर्क डालेगी?"
अगर जवाब "नहीं" होता, तो वह उस पर ध्यान ही नहीं देता। धीरे-धीरे, वह ज्यादा शांत और खुश रहने लगा।
अब सचिन को इस नए नजरिए का असर दिखने लगा था। उसकी लाइफ पहले जैसी नहीं रही।
उस रात, सचिन ने किताब का अगला चैप्टर खोला और पढ़ना शुरू किया—"Happiness is a Problem"।
"क्या? खुशी अपने आप नहीं आती?" – यह पढ़ते ही वह चौंक गया। उसने हमेशा यही सोचा था कि खुश रहने के लिए पॉजिटिव सोचना चाहिए, अच्छी चीजें करनी चाहिए, और बस लाइफ को एंजॉय करना चाहिए। लेकिन Mark Manson कुछ अलग कह रहे थे।
लेखक ने समझाया कि खुशी तब नहीं मिलती जब हम इसे पाने की कोशिश करते हैं, बल्कि तब मिलती है जब हम अपने संघर्षों को स्वीकार कर लेते हैं।
अब तक सचिन की सोच यह थी कि जब उसकी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है, तो वह या तो उससे बचने की कोशिश करता या फिर परेशान हो जाता। लेकिन अब उसे समझ आ रहा था कि "हर इंसान की जिंदगी में संघर्ष होता है, असली सवाल यह है कि आप किस संघर्ष को अपनाते हैं?"
ऑफिस में सचिन को हमेशा लगता था कि उसे ज्यादा पैसा और प्रमोशन मिलना चाहिए, लेकिन इसके लिए वह ज्यादा मेहनत करने से बचता था। वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करता रहता, कभी बॉस से नाराज होता तो कभी कलीग्स से। लेकिन अब उसने खुद से पूछा—
"क्या मैं सही चीज़ पर परेशान हो रहा हूँ? क्या असली खुशी प्रमोशन पाने में है, या उस प्रोसेस को अपनाने में जिससे मैं ग्रो करूं?"
अब उसने शिकायत करने के बजाय अपने काम को और बेहतर करना शुरू कर दिया। प्रमोशन पाने का संघर्ष अब उसे बोझ नहीं लग रहा था, बल्कि यह उसकी ग्रोथ का हिस्सा बन गया था।
सचिन को अब एहसास हुआ कि खुशी सिर्फ लाइफ को आसान बनाने से नहीं मिलती, बल्कि सही मुश्किलों को अपनाने से मिलती है।
पहले, अगर कोई दोस्त उसकी कॉल का जवाब नहीं देता था या कोई उसके बारे में गलत बोलता था, तो वह घंटों परेशान रहता था। अब उसने खुद से पूछा—
"क्या मैं सही संघर्ष अपना रहा हूँ? क्या इन छोटी-छोटी चीज़ों पर परेशान होना मेरी लाइफ को बेहतर बना रहा है?"
उसने फैसला किया कि अब वह सिर्फ उन्हीं चीज़ों की परवाह करेगा जो उसकी ज़िंदगी में वाकई मायने रखती हैं। बेवजह की बहसों और सोशल मीडिया पर दूसरों की राय को नज़रअंदाज़ करने लगा।
अब सचिन की सोच बदलने लगी थी। उसे समझ आ गया था कि "खुशी कोई मैजिक ट्रिक नहीं, बल्कि सही संघर्ष अपनाने का नतीजा है।" लेकिन अब एक और सवाल उसके दिमाग में घूम रहा था—
"मैं अपनी ज़िंदगी में किस संघर्ष को अपनाऊँ और किसे छोड़ दूँ?"
इस सवाल का जवाब किताब के अगले अध्याय में था—
सचिन ने किताब का अगला अध्याय खोला—"You Are Not Special"।
"क्या? मैं खास नहीं हूँ?" – यह पढ़कर सचिन को थोड़ा झटका लगा।
बचपन से ही उसने यही सुना था कि वह अलग है, खास है, दुनिया में कुछ बड़ा करने के लिए पैदा हुआ है। लेकिन Mark Manson की किताब कह रही थी कि "तुम कोई खास नहीं हो, बल्कि एक आम इंसान हो।"
पहले तो सचिन को यह बात अजीब लगी, लेकिन जब उसने आगे पढ़ा, तो उसे एहसास हुआ कि यही सोच उसकी सबसे बड़ी गलती थी।
"खास" होने का अहंकार
सचिन को याद आया कि ऑफिस में जब भी वह कोई गलती करता, तो खुद को समझाने लगता—
"मुझे तो सब आता है, गलती मेरी नहीं, हालात की है!"
अगर किसी काम में उसे असफलता मिलती, तो वह कहता—
"मैं तो टैलेंटेड हूँ, बस मुझे अभी तक सही मौके नहीं मिले!"
लेकिन अब उसे समझ में आ रहा था कि असल दिक्कत उसके मौके नहीं, बल्कि उसकी मानसिकता थी।
Mark Manson ने लिखा था कि जब तक आप अपनी कमजोरियों को नहीं अपनाते, आप खुद को बेहतर नहीं बना सकते।
यह लाइन पढ़ते ही सचिन की आँखों के सामने अपने ऑफिस के पिछले दो साल घूम गए—
वह कई बार प्रमोशन से चूक गया था, लेकिन उसने कभी यह नहीं माना कि इसकी असली वजह उसकी खुद की कमी थी।
टीम के लोग उसे घमंडी समझते थे, लेकिन उसने हमेशा सोचा कि दिक्कत दूसरों की सोच में है।
उसने कभी यह स्वीकार ही नहीं किया कि उसे खुद को सुधारने की जरूरत है।
सचिन को अब यह एहसास हुआ कि उसने हमेशा खुद को "खास" मानकर अपनी गलतियों को इग्नोर किया। लेकिन अगर वह सच में अपनी लाइफ बदलना चाहता है, तो उसे अपनी कमजोरियों को अपनाना होगा।
सचिन ने किताब बंद की और खुद से सवाल किया—
"मैं अपनी कौन-कौन सी कमजोरियों को हमेशा नजरअंदाज करता रहा हूँ?"
धीरे-धीरे उसे अपने पुराने फैसलों की गलतियाँ दिखने लगीं।
अब वह अपनी गलती को स्वीकार करने और खुद को सुधारने के बारे में सोचने लगा।
लेकिन फिर एक और बड़ा सवाल सामने आया—
"क्या मैं अपनी लाइफ के हर फैसले को खुद कंट्रोल कर सकता हूँ? क्या सबकुछ मेरे हाथ में है?"
इसका जवाब किताब के अगले अध्याय में था—
सचिन ने अगला अध्याय पढ़ना शुरू किया—"The Value of Suffering"।
"हर कोई सफलता चाहता है, लेकिन असली सवाल यह है कि आप किस संघर्ष को सहने के लिए तैयार हैं?"
यह लाइन पढ़ते ही सचिन के दिमाग में पुरानी यादों की आंधी चल पड़ी।
अब तक सचिन अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए पिछले अध्यायों की सीखें अपनाने लगा था—
उसने यह मान लिया था कि वह कोई खास नहीं है और उसे खुद को लगातार सुधारना होगा।
वह छोटी-छोटी खुशियों के पीछे भागने के बजाय सही संघर्ष को अपनाने लगा था।
उसने ऑफिस में अपनी पुरानी गलतियों को सुधारने की कोशिश शुरू कर दी थी।
लेकिन एक चीज उसे अब भी परेशान कर रही थी—
"क्या मैं सच में अपने दर्द और संघर्ष को अपनाने के लिए तैयार हूँ?"
"मैं कौन सा संघर्ष चुन रहा हूँ?"
Mark Manson ने इस अध्याय में लिखा था कि "हर किसी को दर्द झेलना पड़ता है, लेकिन असली फर्क यह है कि आप कौन सा दर्द चुनते हैं?"
सचिन को यह लाइन अपनी जिंदगी के हर मोड़ से जुड़ी हुई लगी।
एक बार उसका ऑफिस का दोस्त राहुल कह रहा था—
"यार, मैं खुद का बिजनेस शुरू करना चाहता हूँ, लेकिन रिस्क लेने में डर लगता है।"
तब सचिन ने कहा था—
"हां भाई, सही कह रहे हो, बिजनेस में तो बहुत टेंशन है।"
लेकिन आज किताब पढ़ते हुए उसे एहसास हुआ कि "टेंशन तो नौकरी में भी है!"
फर्क सिर्फ इतना है कि राहुल बिजनेस के संघर्ष को अपनाने से डर रहा था, और वह खुद नौकरी के संघर्ष को झेल रहा था।
मतलब, हमेशा कोई न कोई संघर्ष तो रहेगा ही—फर्क सिर्फ इस बात का है कि आप कौन सा संघर्ष चुनते हैं!
सचिन अब तक बहुत कुछ सीख चुका था।
लेकिन एक सवाल अब भी उसके मन में घूम रहा था—
"अगर संघर्ष को चुनना जरूरी है, तो क्या इसका मतलब यह है कि हमें हमेशा दर्द में ही रहना चाहिए? क्या खुशी और संतुष्टि जैसी कोई चीज होती ही नहीं?"
इसी सवाल का जवाब किताब के अगले अध्याय में था—
सचिन ने अगले अध्याय की पहली लाइन पढ़ी—
"आपकी जिंदगी में जो भी हो रहा है, वह आपके द्वारा किए गए चुनावों का ही परिणाम है।"
यह पढ़ते ही सचिन के दिमाग में पुरानी यादें बवंडर की तरह घूमने लगीं।
"मेरी लाइफ ऐसी क्यों बनी?"
सचिन ने सोचा—
"क्या मेरी जिंदगी सच में मेरी ही वजह से ऐसी बनी है?"
उसे याद आया—
जब कॉलेज में ग्रेड्स खराब आए, तो उसने पढ़ाई के बजाय सिस्टम को दोष दिया।
जब पहली नौकरी में प्रमोशन नहीं मिला, तो उसने मैनेजर पर गुस्सा किया, लेकिन खुद की कमियों पर ध्यान नहीं दिया।
जब रिश्ते टूटे, तो उसने दूसरों को गलत ठहराया, लेकिन कभी खुद को नहीं देखा।
अब उसे एहसास हुआ—
"मैं हमेशा अपनी असफलताओं का जिम्मेदार दूसरों को ठहराता रहा, लेकिन असल में यह सब मेरे ही चुनावों का नतीजा था!"
"अब क्या कर सकता हूँ?"
Mark Manson ने किताब में लिखा था—
"हमेशा यह मत सोचो कि आपके साथ क्या गलत हुआ, बल्कि यह सोचो कि अब आप क्या सही कर सकते हो।"
सचिन ने पहली बार अपनी जिंदगी की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया।
वह अपने फैसले दूसरों की वजह से नहीं, बल्कि खुद की जिम्मेदारी पर लेगा।
वह अपनी पुरानी गलतियों को कोसने के बजाय, उनसे सीखकर आगे बढ़ेगा।
वह अपने संघर्षों को अपनाएगा और सही चीजों के लिए मेहनत करेगा।
लेकिन क्या यह इतना आसान था?
सचिन ने बदलाव की शुरुआत कर दी थी, लेकिन क्या वह सच में खुद को पूरी तरह बदल पाएगा?
किताब का अगला अध्याय इसी सवाल का जवाब देने वाला था—
सचिन ने अगले अध्याय की हेडिंग पढ़ी
You're Wrong About Everything
"आप हमेशा गलत हो सकते हैं, इसे स्वीकार करें।"
यह लाइन पढ़ते ही वह ठिठक गया।
"मतलब, मैं गलत हूँ?"
वह अपने दिमाग में हमेशा खुद को सही साबित करने की कोशिश करता था।
हर बहस में, हर फैसले में, हर गलती में... उसकी पहली कोशिश खुद को सही साबित करने की होती थी।
लेकिन अब किताब कह रही थी कि यही सबसे बड़ी गलती थी।
"मैंने हमेशा खुद को सही माना..."
सचिन को अपनी जिंदगी के कई पल याद आने लगे—
ऑफिस में, जब उसकी टीम ने एक नया आइडिया दिया था, तो उसने उसे नकार दिया था क्योंकि उसे लगा कि सिर्फ उसकी सोच ही सही है।
रिश्तों में, जब किसी ने उसकी आलोचना की, तो उसने उसे स्वीकार करने के बजाय दूसरे को ही दोषी ठहरा दिया।
पिछले असफलताओं में, उसने हमेशा परिस्थितियों को दोष दिया, लेकिन खुद को नहीं देखा।
लेकिन अब समझ आ रहा था—
"अगर मैं यह मान लूँ कि मैं गलत हो सकता हूँ, तो मैं सीख भी सकता हूँ।"
"गलतियों को अपनाने से असली ग्रोथ होती है!"
Mark Manson ने किताब में लिखा था—
"हर कोई अपनी जिंदगी में किसी न किसी चीज में गलत होता है।"
"समय के साथ हम उन गलतियों को सुधारते हैं, और यही असली सफलता की शुरुआत होती है।"
अब सचिन ने सोचना शुरू किया—
"अगर मैं अपनी गलतियों को एक्सेप्ट कर लूँ, तो शायद मैं और बेहतर इंसान बन सकता हूँ!"
ऑफिस में – सचिन ने टीम की बातें ध्यान से सुननी शुरू कर दीं। अब वह यह मानने लगा कि शायद उसकी सोच हर बार सही नहीं होती। इससे उसकी टीम भी उससे खुलकर बात करने लगी।
रिश्तों में – उसने अपने दोस्तों और परिवार से माफी माँगनी शुरू की जब उसे अहसास हुआ कि वह कई बार अनजाने में उन्हें दुख पहुँचा चुका था।
सीखने की आदत – सचिन ने नई चीजें सीखने के लिए अपना नजरिया बदला। अब वह हर फीडबैक को नकारने के बजाय उसे एक सुधार का मौका समझने लगा।
लेकिन क्या यह काफी था?
अब सचिन को समझ आ गया था कि गलतियाँ इंसान को कमजोर नहीं बनातीं, बल्कि सुधारने का मौका देती हैं।
लेकिन एक और बड़ा सवाल था—
"क्या मैं अब हर चीज़ पर हाँ कह दूँ?"
"क्या हर किसी की बात मान लेना सही होगा?"
किताब का अगला अध्याय इसी सवाल का जवाब देने वाला था—
सचिन ने पन्ना पलटा और पढ़ना शुरू किया…
The Importance of Saying No
"ना कहना सीखें, हर चीज को महत्व न दें"
यह पढ़ते ही सचिन का मन एक पल के लिए रुक गया। उसकी पुरानी आदतें उसके दिमाग में घूमने लगीं—
ऑफिस में, जब टीम उसे किसी नए प्रोजेक्ट के लिए कहती, तो वह हमेशा हाँ कह देता। वह कभी मना नहीं करता।
दोस्तों और परिवार में, जब कोई भी उसे मदद के लिए बुलाता, वह तुरंत दौड़कर चला जाता।
कभी-कभी, उसे खुद के काम से वक्त चुराना पड़ता, लेकिन फिर भी वह दूसरों की मदद करता जाता।
"क्या सच में मुझे हर बात पर हाँ कहना चाहिए?"
सचिन ने सोचना शुरू किया। उसने अपने भीतर एक सच्चाई महसूस की कि वह "ना" कहना नहीं जानता था। वह अपने हर काम में दूसरों को खुश करने की कोशिश करता था, लेकिन इस कोशिश ने उसे अपनी ज़िंदगी से बहुत कुछ खोने के लिए मजबूर किया था।
"क्यों न इस बार खुद को प्राथमिकता दूँ?"
सचिन ने अब ठान लिया कि हर बात पर हाँ कहना जरूरी नहीं है, और अब वह कुछ चीज़ों में "ना" कहने का अभ्यास करेगा।
"क्यों "ना" कहना जरूरी है?"
Mark Manson ने किताब में लिखा—
"हमारा ध्यान हमारे समय और ऊर्जा का सबसे मूल्यवान स्रोत है। अगर हम इसे हर चीज़ में बांट देंगे, तो हम किसी चीज़ में भी पूरा ध्यान नहीं दे पाएंगे।"
यह सचिन के लिए एक बड़ा आहाता था। अब उसे समझ में आ गया कि अगर वह अपनी ज़िंदगी को सही दिशा में ले जाना चाहता है, तो उसे अपनी प्राथमिकताओं को पहचानना होगा और उन चीजों को नकारना होगा जो उसे अपने लक्ष्य से दूर ले जाती हैं।
ऑफिस में – सचिन ने अब नए प्रोजेक्ट्स पर सोच-समझ कर "ना" कहना शुरू किया। उसे यह समझ में आ गया कि अगर वह खुद के काम पर ध्यान नहीं देगा, तो वह अपने करियर में कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा।
पारिवारिक और व्यक्तिगत रिश्तों में – उसने अब वह काम नहीं किया जो दूसरों ने उससे उम्मीद की थी, जब वह जानता था कि वह खुद के लिए ज्यादा जरूरी चीजें छोड़ रहा है। वह समझने लगा कि "अपने लिए समय निकालना" भी उतना ही जरूरी है जितना दूसरों की मदद करना।
स्वास्थ्य और मानसिक शांति में – उसने अब "ना" कहना सीख लिया था जब कोई उसे ऐसा कुछ करने के लिए कहता, जो उसकी मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं था।
क्या सचिन अब सब कुछ सही कर रहा था?
जब सचिन ने सोचा कि अब उसने सब कुछ ठीक किया, तो एक सवाल उसके मन में उठता है—
"क्या मुझे अब हर बार "ना" ही कहना चाहिए?"
क्या यह उसकी पुरानी आदतों से ज्यादा बेहतर था, या वह किसी चीज़ में ज्यादा कठोर हो रहा था?
किताब का अगला अध्याय इसी सवाल का जवाब देने वाला था—
"The Feedback Loop from Hell – गलतियाँ सुधारने का तरीका"
सचिन ने किताब में जो पढ़ा था, उसे अपने जीवन में लागू करने के बाद एक नई चुनौती का सामना करना शुरू किया। अब वह सोचने लगा था—
"क्या मैं सही दिशा में जा रहा हूँ?"
उसने अपनी आदतों में जो बदलाव किए थे, क्या वे सच में उसे आगे बढ़ने में मदद कर रहे थे? क्या वह सही चीजों पर ध्यान दे रहा था?
"क्या मुझे अपना रास्ता सही लग रहा है?"
सचिन को अब एहसास हुआ कि केवल किताबें पढ़ने और खुद पर काम करने से नहीं चलेगा, उसे अपने फैसलों पर दूसरों से फीडबैक भी चाहिए। उसने अपनी टीम और परिवार से खुलकर बातचीत की।
सचिन ने अपने कुछ करीबी साथियों से पूछा, "क्या मैं अब पहले से बेहतर काम कर रहा हूँ?" क्या मेरी टीम को अब मुझे फॉलो करना आसान लगता है? क्या मेरी काम करने की स्टाइल अब सहयोगी बन पाई है?
उसने अपने घरवालों से भी पूछा, "क्या अब मुझे परिवार के साथ समय बिताने में ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ?" क्या वह बदलाव जिनका मैंने अभ्यास किया है, वह अब हमारे रिश्तों को बेहतर बना रहे हैं?
रुही, उसकी पुरानी दोस्त, ने उसे बहुत अहम बात बताई। उसने कहा—
"सचिन, तुम्हें सिर्फ खुद पर ध्यान देना जरूरी नहीं है, बल्कि अपने आस-पास के लोगों की प्रतिक्रियाओं को भी समझना जरूरी है।"
"अगर तुम उनसे सलाह और फीडबैक लो, तो तुम और बेहतर हो सकते हो।"
यहाँ सचिन को एक और महत्वपूर्ण बात समझ में आई— "खुद पर काम करना सिर्फ शुरुआत है।" अगर वह दूसरों से फीडबैक नहीं लेता, तो वह अपने सुधार की प्रक्रिया को अधूरा छोड़ रहा था।
सचिन ने अगला अध्याय खोला और पढ़ते हुए उसकी सोच में एक और गहरी समझ पैदा हुई। किताब में लिखा था:
Failure is the Way Forward
"सफलता तब मिलती है जब आप असफलता से डरना छोड़ देते हैं और उसे सीखने का जरिया मानते हैं।"
सचिन की आँखों में चमक आ गई। अब तक वह जितने भी बदलाव कर रहा था, उनके पीछे एक गहरी सोच और समझ का विकास हो चुका था।
पहले जहाँ सचिन असफलताओं से डरता था, अब वह उन्हें सीखने और सुधारने का एक मौका मानने लगा था।
ऑफिस में छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स में जब कुछ गलत हो जाता, तो पहले वह खुद को बहुत ज्यादा जिम्मेदार ठहराता। लेकिन अब, जब भी कुछ गलत होता, वह इसे सीखने के एक अनुभव के रूप में देखता।
परिवार में अगर किसी बात पर अनबन हो जाती, तो पहले वह बस गुस्से में प्रतिक्रिया करता था। अब वह सोचता था, "यह गलती क्यों हुई? क्या मैं कुछ अलग कर सकता था?"
रोजमर्रा की ज़िंदगी में भी वह अब हर गलत फैसले को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानता था और यह महसूस करता था कि गलतियाँ उसे एक मजबूत इंसान बना रही हैं।
"सचिन ने इस किताब से अपनी ज़िंदगी को फिर से देखा"
हर अध्याय, हर लाइन जैसे सचिन के जीवन को नए नजरिये से दिखा रही थी। उसने अब इस किताब को अपने जीवन का एक मार्गदर्शन माना था। यह किताब उसे हर दिन खुद को सुधारने और हर असफलता से सीखने की प्रेरणा दे रही थी।
सचिन के मन में एक सवाल था—"क्या यह किताब मेरी पूरी ज़िंदगी को बदलने के लिए काफी है?"
लेकिन उसे अब इस सवाल का सही जवाब मिल चुका था। "सिर्फ किताब नहीं, बल्कि इस किताब को अपने जीवन में उतारना ही असली परिवर्तन है।"
सचिन का आत्मविश्वास अब बहुत बढ़ चुका था। उसकी ज़िंदगी में जो बदलाव आ रहे थे, वो उसकी सोच, कार्य और दृष्टिकोण का परिणाम थे। वह अब किसी भी चुनौती से नहीं डरता था, बल्कि उसे समझने और उसे सुधारने का एक अवसर मानता था।
वह अब अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा में ले जाने की सोच रहा था, जिसमें असफलता और सफलताएँ दोनों शामिल हों।
इस किताब ने सचिन को यह सिखाया कि सच्ची सफलता सिर्फ बिना रुके मेहनत करने में नहीं है, बल्कि खुद की गलतियों से सीखने में है।
वह असफलता को अब एक बुराई नहीं मानता था, बल्कि उसे एक रंगीन और फायदेमंद रास्ता समझता था जो उसे उसके मंजिल के करीब ले जाता था।
अब वह अपने जीवन के छोटे-छोटे फैसलों को भी बड़ी समझ और जिम्मेदारी से लेता था।
सचिन की ज़िंदगी अब कैसे बदल चुकी थी?
सचिन को अब महसूस हो रहा था कि वह सिर्फ अपने पेशेवर जीवन में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी एक बेहतर इंसान बन रहा है। वह अब खुश था क्योंकि वह जानता था कि हर दिन एक नया मौका है सुधारने और खुद को बेहतर बनाने का।
हर बार जब वह फेलियर के रास्ते पर चलता, वह सीखने और बढ़ने की राह पर भी चलता था। और यही सचिन की असली यात्रा थी, जिसमें कोई अंत नहीं था, बस एक लगातार सीखने और सुधारने की प्रक्रिया।
सचिन ने आखिरी अध्याय खोला और पढ़ते हुए उसकी आँखे कुछ देर के लिए ठहर गईं। किताब में लिखा था:
And Then You Die
अंत में, हम सबको मरना है, तो डरना क्यों?
"जब आपको एहसास होता है कि आपकी जिंदगी सीमित है, तब आप फालतू चीजों की चिंता करना छोड़ देते हैं और सही चीजों पर फोकस करते हैं।"
सचिन ने गहरी सांस ली। उसे अब यह अहसास हो चुका था कि जीवन वास्तव में बहुत ही सीमित है।
किताब को पढ़ते-पढ़ते सचिन को एहसास हुआ कि ज़िंदगी में जो कुछ भी हो रहा था, वह सिर्फ एक यात्रा है, और इसका अंत कभी भी हो सकता है। यह एहसास उसे बहुत कुछ सिखा गया था।
काम की चिंता अब उसे उतनी परेशान नहीं करती थी। पहले वह छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स में फंस कर तनाव लेता था, लेकिन अब वह जानता था कि इन छोटी-छोटी समस्याओं को बड़ा बना कर खुद को दुखी करना मूर्खता है।
परिवार और रिश्तों की अहमियत अब सचिन के लिए कहीं ज्यादा बढ़ चुकी थी। वह जानता था कि वक्त बहुत कीमती है, और वह इसे सही लोगों के साथ, सही चीजों पर खर्च करना चाहता था।
सचिन ने अब हर दिन को पूरा जीने की कला सीख ली थी। पहले जहां वह हमेशा भविष्य की चिंता करता रहता था, अब वह हर दिन को जीने की कोशिश करता था। उसके पास अब अपनी खुशी का एक तरीका था।
"सचिन की ज़िंदगी में बदलाव के असली रंग"
किताब को पढ़ने के बाद, सचिन की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। अब वह समझ चुका था कि असली खुशियाँ उसी में हैं जो हम वर्तमान में जीते हैं, न कि भविष्य की चिंता करने में।
पेशेवर जीवन में अब वह पहले से कहीं अधिक शांत, आत्मविश्वासी और केंद्रित था।
परिवार के साथ वक्त बिताना उसे अब ज्यादा महत्वपूर्ण लगने लगा था। वह जानता था कि एक दिन सबकुछ खत्म हो जाएगा, और तब उसे उन लम्हों की कोई कमी महसूस नहीं होगी।
रिश्तों को लेकर भी उसकी सोच बदल चुकी थी। उसने अब ज्यादा समझ और इमोशन के साथ अपने रिश्तों में समय देना शुरू किया था।
सचिन को यह महसूस हो रहा था कि अब वह असली ज़िंदगी जी रहा था, न कि सिर्फ उसके भविष्य के लिए जी रहा था।
सचिन ने किताब बंद की और गहरी सोच में डूब गया। उसे अब यह एहसास था कि "हम सभी को मरना है, तो डरने की क्या बात है?"
जब आप इस तथ्य को समझ जाते हैं, तो जिंदगी को जीने का तरीका बिल्कुल बदल जाता है। आप फालतू चीजों की चिंता छोड़ देते हैं और सिर्फ उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो आपके लिए वाकई मायने रखती हैं। सचिन ने अब इस किताब को सिर्फ एक मार्गदर्शक नहीं, बल्कि एक ऐसा दोस्त माना था जो उसे हर दिन बेहतर बनाने में मदद करता था।
अब सचिन को यह समझ में आ चुका था कि सिर्फ सही चीजों पर ध्यान देना, असफलताओं से सीखना और खुद को सुधारते रहना ही जीवन का असली उद्देश्य है। इस किताब ने उसे एक नया दृष्टिकोण दिया था, और उसकी ज़िंदगी में जो भी बदलाव आ रहे थे, वो उसे महसूस हो रहे थे।
सचिन अब जानता था कि जो हम सोचते हैं और करते हैं, वही हमारी वास्तविकता बनता है। और जब आपने सही चीजों पर फोकस किया, गलतियों से सीखा, और जीवन को पूरी तरह से जिया, तो जीवन अपने आप बदल जाता है।
असफलताएँ अब उसे डराती नहीं थीं, बल्कि वह उन्हें सीखने और सुधारने का मौका मानता था।
वह अब ज्यादा खुश था, क्योंकि उसने समझ लिया था कि खुशी पाने के लिए किसी बड़े इवेंट की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे छोटे-छोटे लम्हों में महसूस किया जा सकता है।
वह अब हर दिन को एक नई शुरुआत मानता था और यह महसूस करता था कि वो अब अपने जीवन के सचमुच के मालिक बन चुका है।
"अब वह हर दिन को पूरी तरह जीने के लिए तैयार था।"
दोस्तों, आज आपने सुनी "The Subtle Art of Not Giving a Fck" किताब की हिंदी में summary। मुझे उम्मीद है कि आपको ये किताब और इसके सीखने वाले पलों ने पसंद आए होंगे।
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मैं आपका दोस्त अनिल सहारण
धन्यवाद और आपका दिन शुभ हो! 😊
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