Ikigai by Héctor García | Book Summary in Hindi | सुबह उठने की सच्ची वजह क्या है?
Hello friends! आपका स्वागत है मैं हूं आपका दोस्त अनिल सहारण, आज हम बात करने वाले हैं Ikigai by Hector Garcia के बारे में...
सुबह के 7 बजे थे, लेकिन आदित्य की आंखें अब भी छत को घूर रही थीं। बिस्तर पर लेटे-लेटे वो सोच रहा था — "आखिर हर सुबह उठकर मैं ये सब क्यों कर रहा हूं? ऑफिस जाना, काम करना, पैसे कमाना... फिर वही रूटीन... लेकिन क्या बस यही ज़िंदगी है?"
उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — एक अच्छी नौकरी, पैसा, गाड़ी — लेकिन फिर भी अंदर से कुछ खाली-खाली सा था। ऐसा लगता था जैसे वो जिंदा तो है, पर जी नहीं रहा।
फिर एक दिन, उसकी लाइफ में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसे जापान के एक छोटे से गांव की सच्चाई से मिलवाया — जहां लोग दुनिया के सबसे खुश और लंबे समय तक जीने वाले इंसान हैं। और इसका राज़ सिर्फ एक शब्द में छिपा है — Ikigai।
आदित्य ने ये नाम पहली बार सुना था — Ikigai।
उसके दोस्त ने बताया कि ये जापान के ओकिनावा नाम के एक छोटे से गांव का राज़ है, जहां लोग न सिर्फ 100 साल तक जीते हैं, बल्कि खुश और संतुष्ट भी रहते हैं।
आदित्य के दिमाग में बस एक सवाल घूमने लगा — आखिर क्या है ये Ikigai?
फिर उसी रात, उसने अपने बिस्तर पर बैठकर Ikigai by Hector Garcia किताब पढ़नी शुरू की।
आदित्य ने किताब का पहला पेज खोला।
सबसे ऊपर लिखा था — "Ikigai क्या है?"
और नीचे एक लाइन थी जिसने उसे अंदर तक झकझोर दिया:
"वो वजह जिसकी वजह से आप हर सुबह उठते हैं।"
ये पढ़ते ही आदित्य की आंखों के आगे बचपन की एक तस्वीर तैर गई।
वो सुबह का वक्त था, जब उसकी मां उसे प्यार से उठाती थीं। "उठ जा बेटा, स्कूल के लिए देर हो जाएगी," ये सुनकर भी वो मुस्कुराकर बिस्तर छोड़ देता था। क्योंकि उसे पता था कि स्कूल में उसका पसंदीदा आर्ट क्लास है।
वो क्लास जहां वो रंगों से खेलता था, पेंटिंग करता था, और हर बार कुछ नया बनाने का जोश उसमें उबाल मारता था।
उसके उठने की वजह थी — कुछ नया सीखना, कुछ नया बनाना।
लेकिन अब...
अब उसे सुबह उठने की वजह ढूंढनी पड़ती है। अलार्म पांच बार बजता है, फिर भी मन करता है बिस्तर में पड़ा रहे।
तो आखिर वो 'वजह' कहां खो गई?
क्या बचपन का वो Ikigai वक्त के साथ मर गया?
आदित्य ने ठान लिया — अब उसे अपनी जिंदगी की असली वजह फिर से तलाशनी होगी।
किताब के अगले पेज पर आदित्य की नजर एक डायग्राम पर पड़ी।
बीच में लिखा था — Ikigai। और उसके चारों तरफ चार सवाल घेरे हुए थे:
आपको क्या पसंद है? (Passion)
आप किस चीज़ में अच्छे हैं? (Profession)
दुनिया को किस चीज़ की जरूरत है? (Mission)
आप किससे पैसा कमा सकते हैं? (Vocation)
आदित्य ने पेन उठाया और इन सवालों के जवाब देने की कोशिश की।
पहला सवाल — "मुझे क्या पसंद है?"
उसने सोचा… काफी देर तक सोचा… लेकिन जवाब नहीं मिला।
फिर दूसरा सवाल — "मैं किस चीज़ में अच्छा हूं?"
ऑफिस के काम? प्रेजेंटेशन बनाना? डेडलाइन पूरी करना? ये सब तो करता हूं… पर क्या मैं इसमें अच्छा हूं?
फिर तीसरा सवाल — "दुनिया को किस चीज़ की जरूरत है?"
इसका जवाब तो उसे पता ही नहीं था… दुनिया से उसे क्या लेना-देना?
आखिरी सवाल — "मैं किससे पैसा कमा सकता हूं?"
बस यही एक सवाल था जिसका जवाब उसके पास साफ था — नौकरी।
आदित्य का दिमाग सुन्न हो गया।
उसने देखा कि Ikigai का जो गोल सा डायग्राम था, उसमें उसके सारे जवाब इधर-उधर बिखरे हुए थे।
चारों जवाबों का मेल कहीं नहीं हो रहा था…
और वहीं उसे एहसास हुआ — यही उसकी परेशानी की जड़ थी।
वो सुबह उठकर बस काम करने जाता था, लेकिन उसमें पैशन नहीं था।
उसे सैलरी तो मिल रही थी, पर मिशन क्या है, ये पता नहीं था।
और शायद…
शायद इसी वजह से उसकी सुबहें इतनी बोझिल और बेमकसद लगती थीं।
आप देख रहे हैं हमारा चैनल और मैं हूं आपका दोस्त अनिल सहारण, जहाँ हम आपकी पसंदीदा किताबों की हिंदी समरी लाते हैं। अगर आपको यह वीडियो पसंद आ रही है, तो like करें, comment करें, और अपने दोस्तों के साथ share करें! अगर आप इस किताब को खरीदना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए Affiliate Link से खरीदें—इससे हमें भी थोड़ा support मिलेगा, और आपको एक बेहतरीन किताब!
आदित्य अब इस किताब में इतना खो गया था कि वक्त का अंदाज़ा ही नहीं रहा।
पेज पलटते ही उसने एक और दिलचस्प बात पढ़ी — लॉन्ग और हेल्दी लाइफ के सीक्रेट।
यहां जापान के ओकिनावा आइलैंड का ज़िक्र था — वो जगह जहां लोग 100 साल से भी ज्यादा जीते हैं।
आदित्य को यकीन नहीं हुआ।
"क्या सच में ऐसा मुमकिन है?" उसने खुद से सवाल किया।
उसकी आंखों के सामने अपने दादा जी की छवि उभर आई।
आदित्य ने उन्हें हमेशा बीमारियों से जूझते हुए देखा था — डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, दवाइयों का ढेर…
उम्र बढ़ने का मतलब आदित्य के लिए हमेशा बीमारी और कमजोरी ही रहा था।
लेकिन इस किताब ने उसकी सोच हिला दी।
ओकिनावा के लोग इतनी लंबी उम्र तक खुश और स्वस्थ कैसे रहते हैं?
किताब ने चार राज़ बताए:
Active रहना:
ओकिनावा के लोग कभी आलसी नहीं बनते। वो बगीचे में काम करते हैं, टहलते हैं, योग करते हैं — चलते-फिरते रहते हैं।
आदित्य को याद आया, वो ऑफिस से लौटकर कितनी बार सोफे पर पसर जाता है, फोन स्क्रॉल करते हुए घंटों बर्बाद कर देता है।
हल्का खाना:
वहाँ के लोग Hara Hachi Bu पर अमल करते हैं — यानी 80% पेट भरने के बाद खाना बंद कर देना।
आदित्य ने अपने खाने की प्लेट को देखा — ओवरफिल्ड। अक्सर वो पेट भरने के बाद भी बस स्वाद के लिए खाता रहता था।
समाज से जुड़े रहना:
ओकिनावा में लोगों के मजबूत सोशल सर्कल होते हैं। वो अपने दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों से जुड़े रहते हैं।
और आदित्य? उसके दोस्त सिर्फ वॉट्सऐप ग्रुप्स में थे — असल जिंदगी में नहीं।
ऑफिस और घर के अलावा उसकी दुनिया कितनी सिमटी हुई थी!
Positive mindset:
वहाँ के लोग खुश रहते हैं। हर मुसीबत में भी हल ढूंढते हैं।
आदित्य को अहसास हुआ कि वो तो छोटी-छोटी बातों पर नेगेटिव हो जाता है — बॉस की डांट, ट्रैफिक, फ्यूचर की चिंता…
आखिर ओकिनावा के लोगों में ऐसा क्या था जो उसके पास नहीं था?
उनकी ज़िंदगी में एक गहरा मकसद था — Ikigai।
आदित्य को अब समझ आ रहा था कि जब तक उसकी ज़िंदगी का मकसद साफ नहीं होगा, तब तक वो लंबी और खुशहाल ज़िंदगी के इन सीक्रेट्स को कभी नहीं अपना पाएगा।
आदित्य अब किताब के अगले पेज पर पहुंच चुका था।
वो जितना आगे बढ़ रहा था, उतनी ही उसकी सोच गहराती जा रही थी।
अब उसने एक नया कॉन्सेप्ट पढ़ा — Flow State।
किताब कहती है:
"जब आप किसी काम में इतना डूब जाते हैं कि वक्त का पता ही नहीं चलता, उसे Flow कहते हैं।"
आदित्य के दिमाग में जैसे एक घंटी बजी।
उसे एक पुराना दिन याद आ गया —
क्लास 10th का वो दिन जब उसकी ड्राइंग टीचर ने आर्ट कॉम्पिटिशन की अनाउंसमेंट की थी।
उसने तय कर लिया था कि वो हिस्सा लेगा।
वो अपने कमरे में बैठा, सफेद कैनवास उसके सामने था और रंगों का बक्सा खुला पड़ा था।
शुरुआत में उसे कुछ समझ नहीं आया — क्या बनाए? कहां से शुरू करे?
फिर उसने ब्रश उठाया और बस शुरू कर दिया।
वो इतना डूब गया कि न भूख का एहसास हुआ, न प्यास का।
समय जैसे रुक गया हो।
जब उसने अपना ब्रश नीचे रखा, तब शाम के 6 बज चुके थे।
उसने 5 घंटे लगातार पेंटिंग की थी — बिना रुके, बिना थके।
उसे आज तक याद था कि वो कैसा महसूस कर रहा था — मानो वो और उसकी आर्ट एक हो गए हों।
लेकिन…
वो Flow वाली फीलिंग अब उसकी लाइफ से गायब हो चुकी थी।
ऑफिस के काम में वो कभी ऐसा नहीं महसूस करता था।
किताब ने साफ लिखा था —
"Ikigai खोजने का पहला कदम है, वो काम ढूंढना जिसमें आप Flow में चले जाएं।"
यानी वो काम जो आपको घड़ी देखना भुला दे।
आदित्य ने किताब के एक पेज पर टिप देखी:
👉 अपने दिन को छोटे लक्ष्यों में बांटें और एक समय पर एक काम पर फोकस करें।
उसे समझ आ गया — Flow अपने आप नहीं आता।
उसके लिए फोकस चाहिए।

अब सवाल था…
क्या वो अपने Flow State को दोबारा पा सकता है?
क्या वो अपनी लाइफ का वो मकसद ढूंढ सकता है जिसमें वो डूब जाए — बिना घड़ी की चिंता किए?
आदित्य ने अब किताब का अगला अध्याय खोला — 'छोटे लक्ष्य (Small Goals)'।
किताब में साफ लिखा था:
"लंबी प्लानिंग मत करो, हर दिन के छोटे-छोटे टारगेट सेट करो। यही छोटे लक्ष्य तुम्हें रोज़ प्रेरित रखेंगे और तुम्हें Ikigai तक ले जाएंगे।"
आदित्य ने गहरी सांस ली।
उसे ऑफिस के वो दिन याद आए, जब वो एक मोटा प्लान बनाता था —
'इस महीने ये प्रोजेक्ट खत्म करना है...',
'अगले 6 महीने में ये टारगेट पूरा करना है...'
लेकिन सच तो ये था कि हर बार वो प्लान कागज़ पर ही रह जाते।
क्योंकि जब वो सुबह लैपटॉप खोलता था, तो इतना सारा काम सामने होता कि समझ ही नहीं आता कहां से शुरू करे।
शायद इसीलिए…
हर शाम उसे ऐसा लगता कि उसने पूरा दिन काम किया, पर हासिल कुछ नहीं हुआ।
उसे अपने दोस्त विनय की याद आई।
विनय उसके साथ ही ऑफिस में काम करता था, लेकिन उसकी प्रोडक्टिविटी हमेशा सबसे ऊपर रहती थी।
एक दिन आदित्य ने उससे पूछा था —
"यार, तुम दिनभर में इतना कुछ कैसे कर लेते हो?"
विनय ने मुस्कुराकर अपना सीक्रेट बताया था —
"मैं रोज़ का प्लान आज ही लिख लेता हूं। कल सुबह सिर्फ वही काम करता हूं जो मैंने तय किया है — एक बार में बस एक काम।"
विनय ने आदित्य को अपना नोटपैड दिखाया —
उस पर 5 सिंपल टास्क लिखे थे:
9:00 AM - क्लाइंट को ईमेल भेजना
10:00 AM - प्रोजेक्ट रिपोर्ट फाइनल करना
12:00 PM - टीम मीटिंग
2:00 PM - अगले हफ्ते की स्ट्रैटेजी प्लान करना
4:00 PM - नए आइडिया पर रिसर्च करना
सिर्फ पांच टास्क।
कोई लंबा-चौड़ा प्लान नहीं।
आदित्य को तब लगा था कि ये बहुत बेसिक सी चीज़ है…
लेकिन आज Ikigai पढ़ते हुए, उसने समझा कि यही सीक्रेट है।
बड़े सपने देखना जरूरी है,
लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए हर दिन छोटे-छोटे गोल्स सेट करना उससे भी ज्यादा जरूरी है।
किताब ने उसे सिखाया था —
👉 हर सुबह तय करो कि आज बस 3 से 5 जरूरी काम पूरे करने हैं।
👉 एक बार में सिर्फ एक काम करो, तभी Flow में आ पाओगे।
👉 छोटे लक्ष्य आपको हर दिन थोड़ी-थोड़ी जीत का एहसास कराते हैं — और यही आपको आगे बढ़ाते हैं।
अब सवाल था —
क्या आदित्य अपनी जिंदगी में छोटे लक्ष्यों को अपनाकर फिर से अपने Ikigai की तरफ बढ़ पाएगा?
क्या वो कल सुबह उठकर विनय की तरह अपना दिन प्लान करेगा — और एक बार में सिर्फ एक चीज़ पर फोकस करेगा?
अगले पेज पर लिखी हेडिंग ने आदित्य को अंदर तक हिला दिया —
"तनाव कम करने की आदतें।"
उसकी आंखें वहीं ठहर गईं।
जैसे किसी ने उसकी सबसे बड़ी तकलीफ को एक लाइन में लिख दिया हो।
तनाव...
वो ही तो उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका था।
पिछले हफ्ते की बात थी।
ऑफिस में आदित्य अपनी सीट पर बैठा था, लैपटॉप पर मेल का अंबार,
बॉस की डेडलाइन सिर पर,
और कानों में टीम की बातें —
"ये रिपोर्ट कब भेजोगे?"
"क्लाइंट कॉल 2 बजे है, तैयारी कर ली?"
"कल प्रेजेंटेशन भी है, भूलना मत!"
आदित्य के दिमाग में सबकुछ गड़बड़ हो रहा था —
वो एक काम पूरा करने से पहले दूसरा शुरू कर देता,
फिर तीसरे की टेंशन में फंस जाता।
उस दिन लंच तक वो इतना स्ट्रेस में था कि उसके सिर में तेज़ दर्द होने लगा।
और फिर...
वो वही ऑफिस की कैंटीन के एक कोने में बैठकर फोन स्क्रॉल करने लगा — एक पल की राहत की तलाश में।
लेकिन राहत नहीं मिली।
बस टेंशन और बढ़ गई।
और अब, किताब ने उसे जवाब दिया था —
"Ikigai पाने के लिए एक शांत और स्पष्ट दिमाग जरूरी है।"
किताब में आगे लिखा था:
👉 हर दिन कुछ मिनट ध्यान (Meditation) करो।
👉 सांस लेने की एक्सरसाइज (Breathing Exercises) से मन को काबू में लाओ।
👉 तनाव से भागो मत, उसे समझो और काबू करो।
आदित्य को अचानक अपने पुराने दोस्त राघव की याद आई।
राघव वही इंसान था, जो कभी भी मुश्किल हालात में शांत और फोकस्ड रहता।
चाहे मीटिंग कितनी भी टाइट हो या डेडलाइन कितनी भी करीब —
वो हमेशा शांत मुस्कान के साथ काम करता।
एक दिन आदित्य ने झुंझलाकर राघव से पूछा था —
"तुझे टेंशन नहीं होती क्या? तू इतना शांत कैसे रह लेता है?"
राघव ने मुस्कुराते हुए कहा था —
"मैं हर सुबह 10 मिनट बस अपनी सांसों पर ध्यान देता हूं। कोई फैंसी मेडिटेशन नहीं, बस अपनी सांसों को गिनता हूं। इससे दिमाग में शोर कम हो जाता है।"
तब आदित्य को ये सब बकवास लगा था।
"सांसें गिनने से काम कैसे ठीक होगा यार?" — उसने सोचा था।
लेकिन आज…
इस किताब ने उसे एहसास कराया कि राघव का सीक्रेट उसके Ikigai का हिस्सा था।
👉 जब मन शांत होता है, तभी इंसान अपने असली मकसद पर फोकस कर पाता है।
👉 तनाव से घबराने के बजाय, उसे कंट्रोल करने की आदत आपको आपके Ikigai की तरफ ले जाती है।
अब आदित्य के सामने सवाल था —
क्या वो राघव की तरह हर सुबह 10 मिनट अपनी सांसों पर ध्यान देगा?
क्या वो अपने स्ट्रेस को हैंडल करना सीखेगा — या हमेशा की तरह उसे इग्नोर करता रहेगा?
कहानी यहां एक मोड़ पर है —
ऑडियंस खुद को आदित्य की जगह रखेगी।
क्योंकि ये सिर्फ आदित्य की कहानी नहीं है — ये हम सबकी है।
आदित्य ने किताब का अगला पेज पलटा।
बोल्ड अक्षरों में लिखा था —
"रिटायरमेंट नाम की चीज़ नहीं होती।"
वो चौंक गया।
"मतलब? ये क्या बेतुकी बात है?" — उसके मन में सवाल उठा।
वो वहीं रुक गया, जैसे किसी ने उसके मन की गहराई में एक पत्थर फेंक दिया हो।
कुछ दिन पहले, उसके पिता ने शाम को चाय पीते हुए कहा था —
"बस बेटा, अब रिटायरमेंट नज़दीक है... उम्र हो गई... अब आराम करना है।"
आदित्य ने उस वक्त सिर हिला दिया था, लेकिन अंदर ही अंदर सोच रहा था —
"तो क्या पापा अब बस खाली बैठेंगे? ये कैसी ज़िंदगी है?"
और अब, इस किताब ने उसे जापान के ओकिनावा गांव की सच्चाई से रूबरू कराया।
वहां के लोग 80-90 साल की उम्र तक भी कोई न कोई काम करते रहते हैं।
कोई बागवानी करता है,
कोई कला में डूबा रहता है,
तो कोई अपना ज्ञान अगली पीढ़ी को सिखाता है।
उनके लिए काम सिर्फ पैसे कमाने का ज़रिया नहीं है —
काम उनकी ज़िंदगी का मकसद है।
और तभी आदित्य को याद आया — राघव।
हाँ, वही राघव, जो उसके ऑफिस में था।
जिसने पिछले साल अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
आदित्य को लगा था कि अब राघव शायद आराम कर रहा होगा, जिंदगी का मजा ले रहा होगा।
लेकिन कुछ हफ्ते पहले, उसने राघव को एक कैफे में देखा —
वो एक छोटे ग्रुप को गिटार सिखा रहा था!
आदित्य ने हैरानी से पूछा था —
"तूने नौकरी छोड़ दी, फिर भी काम कर रहा है?"
राघव ने मुस्कुराकर कहा था —
"काम छोड़ा है, मकसद नहीं। गिटार सिखाना मेरा पैशन है। इससे पैसा भी आता है और खुशी भी।"
अब किताब की बात और राघव की कहानी आदित्य के दिमाग में गूंज रही थी।
👉 Ikigai आपको रिटायर होने का बहाना नहीं देता।
👉 ये कहता है कि जब तक आप किसी काम के जरिए समाज में योगदान दे रहे हैं, तब तक आपकी जिंदगी का मकसद कायम रहता है।
अब आदित्य सोच रहा था —
"क्या मैंने कभी अपना ऐसा काम सोचा है, जिसे मैं उम्रभर कर सकूं? जिसे मैं पैसों से ज्यादा खुशी के लिए करूं?"
आदित्य ने किताब का अगला पेज पलटा।
इस बार हेडिंग थी —
"अपने आस-पास सकारात्मक माहौल बनाएं।"
वो पल भर के लिए रुक गया।
ये लाइन सीधी-सादी लग रही थी, लेकिन उसके मन में खलबली मचा गई।
रविवार की दोपहर थी।
आदित्य अपने कमरे में बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था। वीकेंड था, फिर भी ऑफिस के पेंडिंग मेल्स और रिपोर्ट्स खत्म करने में लगा हुआ था।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
"भैया, चलो न बाहर, मम्मी ने पकोड़े बनाए हैं!" — उसकी छोटी बहन खुशी ने मुस्कुराते हुए कहा।
आदित्य ने बिना सिर उठाए जवाब दिया —
"अभी नहीं, बहुत काम है।"
खुशी चुपचाप दरवाजा बंद कर चली गई।
कुछ देर बाद, दोस्त राघव का मैसेज आया —
"भाई, आज शाम को मिलें? नए कैफे में गिटार सेशन है!"
आदित्य ने टाइप किया —
"नहीं यार, बहुत बिज़ी हूं। फिर कभी।"
राघव ने कोई जवाब नहीं दिया।
और अब, किताब की ये लाइन उसे आईना दिखा रही थी।
"अपने आस-पास ऐसे लोग रखें, जो आपको प्रेरित करें और खुश रखें।"
उसने सोचा — आस-पास तो मेरे अपने लोग हैं... लेकिन मैं ही उनसे दूर भाग रहा हूं।
जापान के ओकिनावा गांव में लोग सिर्फ इसलिए खुश नहीं हैं कि उनकी उम्र लंबी है —
बल्कि इसलिए कि उन्होंने अपने रिश्तों को जिंदा रखा है।
वो सुबह-सुबह दोस्तों के साथ गार्डन में टहलते हैं।
शाम को परिवार के साथ खाना खाते हैं।
हर छोटे मौके पर पास-पड़ोस के लोग मिलकर सेलिब्रेट करते हैं।
रिश्ते उनके Ikigai का हिस्सा हैं।
और आदित्य...?
वो अपनों से दूर रहकर, अकेले काम में डूबकर, किस Ikigai की तलाश कर रहा था?
उसे एहसास हुआ कि अगर उसकी ज़िंदगी से खुश लोग निकल गए, तो मकसद भी फीका पड़ जाएगा।
अब एक सवाल उसकी रगों में दौड़ रहा था —
"क्या मैं अपने Ikigai को अकेले खोज सकता हूं?"
या फिर उसे अपनों के साथ मिलकर, रिश्तों को सहेजते हुए आगे बढ़ना होगा?
आदित्य की आंखों में अब भी वही सवाल तैर रहे थे —
किताब का अगला पेज पलटते ही हेडिंग थी —
"प्रकृति के करीब रहो।"
वो दोबारा रुक गया।
आखिर इस बात का उसके Ikigai से क्या लेना-देना है?
आदित्य को बचपन का वो दिन याद आया —
गर्मियों की छुट्टियां थीं। दादी के गांव में आम के पेड़ के नीचे चारपाई पर बैठे सब छिलके उतारकर आम खा रहे थे।
हवा में मिट्टी की खुशबू थी, और आसमान बादलों से घिरा था।
आदित्य और उसके कज़िन्स नंगे पांव खेतों में दौड़ रहे थे।
न मोबाइल था, न लैपटॉप — सिर्फ मिट्टी, पेड़ और खुला आसमान।
शाम को सभी बड़े-बुजुर्ग साथ बैठकर बातें कर रहे थे, और बच्चे लुका-छिपी खेल रहे थे।
वो दिन कितना सुकून भरा था — बिना किसी स्ट्रेस और भागदौड़ के।
वापस आज की जिंदगी में —
अब आदित्य अपने कमरे में बंद, लैपटॉप की स्क्रीन में घुसा रहता है।
ऑफिस के काम के बोझ तले दबा हुआ।
खिड़की के बाहर वो बगीचा है, जहां महीनों से उसने कदम नहीं रखा।
बालकनी में रखे गमले सूख चुके हैं।
वो भूल ही गया था कि प्रकृति से जुड़ना सिर्फ पिकनिक पर जाना नहीं होता —
बल्कि ये तो रोज़मर्रा का हिस्सा होना चाहिए।
ओकिनावा के लोग इसीलिए खुश और सेहतमंद हैं क्योंकि वो हर सुबह टहलते हैं,
सूरज की पहली किरण चेहरे पर महसूस करते हैं,
और मिट्टी से जुड़कर अपनी जड़ों को सहेजते हैं।
आदित्य को एहसास हुआ कि...
Ikigai का रास्ता अकेले नहीं खोजा जा सकता।
ये सफर अपनों के साथ मिलकर, रिश्तों को संवारते हुए और प्रकृति से जुड़कर ही पूरा होता है।
उसने ठान लिया — अब सिर्फ काम नहीं करेगा,
बल्कि हर सुबह उठकर बालकनी में बैठेगा, गमलों को पानी देगा,
और कभी-कभी उन दोस्तों के साथ पार्क में टहलने जाएगा,
जिन्हें वो बार-बार बिज़ी होने का बहाना देकर टाल देता था।
क्योंकि —
सुकून सिर्फ मंज़िल पर नहीं, रास्ते में भी होता है।
आदित्य ने किताब का आखिरी अध्याय पढ़ा —
"कभी मत रुकिए: Ikigai सिर्फ एक मंजिल नहीं, बल्कि एक सफर है।"
उसकी आंखें वहीं टिक गईं।
तो क्या ये एक ऐसा रहस्य है जिसे एक बार खोजकर तिजोरी में बंद नहीं किया जा सकता?
Ikigai एक लगातार चलने वाली खोज है?
उसे अपने ऑफिस का पहला दिन याद आया।
जब उसने पहली बार वो लैपटॉप खोला था और उसे अपने काम से प्यार था।
हर छोटी सफलता उसे खुशी देती थी।
वो रात भर बैठकर नए आइडियाज़ पर काम करता था,
क्योंकि उसे उस समय यही लगता था —
"यही है मेरा Ikigai!"
लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता,
वही काम बोझ लगने लगा।
वही लैपटॉप, वही प्रोजेक्ट्स — एक रूटीन बन गया।
उसका Ikigai कहीं खो सा गया था।
आज की हकीकत —
किताब की लाइन दोबारा पढ़ते ही उसे एहसास हुआ —
Ikigai स्थिर नहीं है।
ये समय के साथ बदलता रहता है।
जैसे हम बड़े होते हैं,
जैसे हमारी सोच बदलती है,
हमारे सपने और प्राथमिकताएं बदलती हैं —
वैसे ही हमारा Ikigai भी नया रूप लेता है।
सिर्फ एक कामयाबी पर रुक जाना Ikigai नहीं है।
हर बार खुद को नया बनाते रहना ही असली Ikigai है।
आदित्य ने अपनी डायरी निकाली —
जिसे उसने महीनों पहले आखिरी बार खोला था।
उसने उसमें लिखा:
"मेरा Ikigai आज तक सिर्फ एक अच्छी नौकरी करना था।
लेकिन अब —
मेरा Ikigai है सीखते रहना, रिश्तों को सहेजना और जिंदगी को हर पल खुलकर जीना।"
अब आदित्य को लगने लगा था कि Ikigai सिर्फ सुबह उठने की वजह नहीं है —
वो हर दिन खुद को नया बनाने का जुनून है।
तो दोस्तों, यही था 'Ikigai' का सबसे अहम सबक — एक ऐसा कारण जो आपको हर सुबह जगाए, आपकी जिंदगी को मायने दे। आदित्य ने अपनी राह पाई, लेकिन सवाल ये है — आपका Ikigai क्या है? क्या आपने कभी सोचा है कि वो कौन-सा काम है जिसे करने से आपको खुशी मिलती है, जिससे दुनिया को फायदा होता है और जिससे आपकी जेब भी भरती है?
अब बारी आपकी है। अपनी लाइफ का Ikigai ढूंढिए और एक नई शुरुआत कीजिए। अगर आपको ये वीडियो पसंद आई तो लाइक, कमेंट और शेयर करना मत भूलिए — क्योंकि हो सकता है, ये वीडियो किसी और की जिंदगी बदल दे।
ऐसी और भी किताबों की समरी के लिए Anil Saharan चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए, और हां, Ikigai किताब का लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन में है — वहां से खरीदकर इस सफर को गहराई से समझ सकते हैं।
फिर मिलेंगे एक और लाइफ चेंजिंग बुक के साथ।
तब तक के लिए, अपना Ikigai ढूंढते रहिए
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