छोटी आदतों से बड़ी सफलता | Atomic Habits Hindi Audiobook

 hello friend's मैं हूं Anil Saharan, और आज हम बात करेंगे एक ऐसे टॉपिक पर, जो न सिर्फ आपके सोचने का तरीका बदल सकता है, बल्कि आपके जीवन को भी नया दिशा दे सकता है। तो, बिना देर किए, चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं कुछ ऐसा जो आपकी ज़िंदगी को और बेहतर बना सकता है।







विजय एक होनहार और मेहनती लड़का था, जो एक बड़ी आईटी कंपनी में काम करता था। उसकी नौकरी में सब कुछ सही चल रहा था—अच्छी सैलरी, आरामदायक ऑफिस, और सहकर्मियों से भी अच्छे संबंध। लेकिन फिर भी, विजय के मन में एक अजीब सी बेचैनी रहती थी। वह खुद से संतुष्ट नहीं था। उसकी दिनचर्या बेजान लगने लगी थी, और वह अपने जीवन में कोई खास उद्देश्य नहीं महसूस कर पा रहा था।


हर दिन सुबह उठकर ऑफिस जाना, दिनभर काम करना, और शाम को थक कर घर लौटना—यही उसकी दिनचर्या बन गई थी। उसे महसूस हो रहा था कि उसकी जिंदगी सिर्फ काम और आराम तक सीमित हो गई है। न कोई नया शौक, न कोई नई आदत। विजय को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस उदासी से कैसे बाहर निकले।



एक दिन, विजय ऑफिस से लौटते वक्त बाजार में टहलने निकला। यूं ही चलते-चलते उसकी नजर एक किताबों की दुकान पर पड़ी। किताबों के प्रति उसका लगाव हमेशा से था, लेकिन व्यस्तता के चलते उसने पढ़ना छोड़ दिया था। विजय ने सोचा कि शायद कोई अच्छी किताब पढ़ने से उसका मन हल्का हो सकता है।


वह दुकान में घुसा और किताबें टटोलने लगा। तभी उसकी नजर एक किताब पर पड़ी, जिसका नाम था एटॉमिक हैबिट्स। उसने किताब का नाम और कवर देखा तो उसे महसूस हुआ कि शायद यही वह किताब है, जो उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव ला सकती है।



विजय ने बिना किसी झिझक के वह किताब खरीद ली और घर लौट आया। विजय ने रात को खाना खाकर अपनी आरामदायक कुर्सी पर बैठकर किताब पढ़नी शुरू की। किताब की शुरुआत ही इतनी आकर्षक थी


"छोटे-छोटे बदलाव कैसे आपकी ज़िंदगी में बड़ा अंतर ला सकते हैं।"

यह किताब की पहली पंक्ति थी, जिसने विजय के दिमाग में हलचल मचा दी। उसमें लिखा था कि हर बड़ी सफलता छोटे-छोटे कदमों का नतीजा होती है। विजय ने पढ़ना जारी रखा, और जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, उसे महसूस हुआ कि यह किताब उसकी जिंदगी बदल सकती है।


पहले अध्याय में एक साधारण लेकिन गहरी बात कही गई थी—"आपकी आदतें ही आपकी पहचान बनाती हैं। जो आप बार-बार करते हैं, वही आपकी सफलता या असफलता तय करता है।" यह वाक्य विजय के मन में गूंजने लगा। उसने सोचा कि उसकी दिनचर्या क्यों इतनी बेजान और थकी हुई लगती है। शायद इसलिए कि उसने अपनी आदतों को कभी गंभीरता से नहीं लिया।


उस रात, विजय ने किताब का पहला अध्याय खत्म किया और तय किया कि वह अपनी जिंदगी में बदलाव लाने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाएगा। उसने एक नोटबुक निकाली और लिखा:


सुबह जल्दी उठूंगा।

हर दिन 10 मिनट एक नई आदत के लिए समर्पित करूंगा।

अपनी प्रगति को ट्रैक करूंगा।

विजय ने यह भी लिखा कि वह खुद को एक महीने का समय देगा, ताकि वह इन आदतों को अपनाकर अपनी जिंदगी में फर्क देख सके।


यह किताब विजय के लिए सिर्फ एक पढ़ने का साधन नहीं थी, बल्कि उसकी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने का एक माध्यम बन गई। अब वह इस सफर पर था, जहां हर पन्ना उसकी सोच और जीवन को बदलने का वादा कर रहा था।


 अगली सुबह, विजय ने एक साधारण बदलाव से शुरुआत की। वह अलार्म बजते ही उठ गया, जबकि पहले वह स्नूज़ बटन दबाकर और सोता रहता था।



विजय ने सोचा कि अगर वह हर दिन सिर्फ 15 मिनट पहले उठेगा, तो एक हफ्ते में उसे 1 घंटा 45 मिनट का अतिरिक्त समय मिलेगा। इन मिनटों को उसने सुबह टहलने और किताब पढ़ने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया। यह छोटा सा बदलाव उसे नई ऊर्जा से भरने लगा।

विजय ने अगले दिन ऑफिस से लौटने के बाद उत्सुकता से अध्याय 2: आपकी आदतें आपकी पहचान तय करती हैं पढ़ना शुरू किया। किताब की शुरुआत में एक गहरा संदेश लिखा था:


"आपकी आदतें आपकी पहचान का प्रतिबिंब हैं।"


यह वाक्य विजय को सोचने पर मजबूर कर गया। उसने किताब में आगे पढ़ा कि आदतें केवल आपके काम करने के तरीके को नहीं बदलतीं, बल्कि वे आपकी पहचान को भी बदल देती हैं। किताब ने यह सवाल उठाया:

"आप कौन बनना चाहते हैं?"


विजय इस सवाल पर कुछ देर तक विचार करता रहा। उसने महसूस किया कि वह एक ऐसा व्यक्ति बनना चाहता है जिसे लोग एक प्रेरित, अनुशासित, और सीखने वाला इंसान मानें। लेकिन उसकी मौजूदा आदतें उसकी इस पहचान का समर्थन नहीं कर रही थीं।


किताब में एक कहानी दी गई थी, जिसने विजय को और गहराई से सोचने पर मजबूर किया।


दो लोग धूम्रपान छोड़ने की कोशिश कर रहे थे। जब उन्हें सिगरेट ऑफर की गई, तो पहले व्यक्ति ने कहा:

"नहीं, धन्यवाद। मैं सिगरेट छोड़ने की कोशिश कर रहा हूं।"

दूसरे व्यक्ति ने कहा:

"नहीं, धन्यवाद। मैं धूम्रपान करने वाला इंसान नहीं हूं।"


कहानी के अनुसार, दूसरे व्यक्ति का जवाब ज्यादा प्रभावी था क्योंकि उसने अपनी पहचान को बदलने की दिशा में कदम बढ़ा लिया था। उसकी नई पहचान—"मैं धूम्रपान करने वाला नहीं हूं"—उसकी आदत बदलने की कुंजी थी।


विजय ने यह कहानी पढ़ने के बाद खुद से पूछा:

"मैं कौन बनना चाहता हूं?"


विजय ने अपनी पहचान पर काम करने का फैसला किया। उसने एक कागज पर लिखा:


मैं एक पढ़ने वाला इंसान हूं।

मैं एक अनुशासित इंसान हूं।

मैं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाला इंसान हूं।

मैं एक ऐसा इंसान हूं, जो हमेशा सीखने के लिए उत्सुक रहता है।

इसके बाद विजय ने सोचा कि इन पहचानों को मजबूत बनाने के लिए उसे अपनी आदतों में बदलाव करना होगा।

विजय ने किताब में दिए सुझावों को अपनाने का फैसला किया। उसने अपनी नई पहचान को ध्यान में रखते हुए आदतें बनाईं:


"मैं एक पढ़ने वाला इंसान हूं।"

इसलिए, उसने तय किया कि वह रोज सुबह 15 मिनट किताब पढ़ेगा।

"मैं अनुशासित इंसान हूं।"

उसने अपने दिनभर के कामों की योजना बनाने और समय पर उन्हें पूरा करने का नियम बनाया।

"मैं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाला इंसान हूं।"

उसने हर दिन रात के खाने के बाद 10 मिनट टहलने की आदत शुरू की।

"मैं हमेशा सीखने के लिए उत्सुक रहता हूं।"

उसने तय किया कि वह हर हफ्ते एक नई चीज सीखेगा, चाहे वह ऑफिस से संबंधित कोई नई तकनीक हो या एक नई स्किल।

विजय ने अपनी नई आदतों को छोटे-छोटे कदमों से अपनाना शुरू किया।

जब वह ऑफिस का काम करता, तो खुद को याद दिलाता:

"मैं एक अनुशासित इंसान हूं। मुझे अपने काम को समय पर खत्म करना है।"

कुछ ही दिनों में विजय को महसूस हुआ कि उसकी नई आदतें उसकी पहचान का हिस्सा बनती जा रही हैं। अब जब भी वह कोई नई आदत शुरू करता, तो वह इसे अपनी पहचान से जोड़कर देखता।

विजय अब पहले से ज्यादा खुश और प्रेरित महसूस कर रहा था। उसने महसूस किया कि सिर्फ दो अध्याय पढ़ने से ही उसकी सोच और दिनचर्या में बड़ा बदलाव आ गया है। उसने अपनी डायरी में लिखा:

"अगर सिर्फ दो अध्यायों ने मेरी जिंदगी में इतना बड़ा अंतर ला दिया है, तो पूरी किताब पढ़ने के बाद क्या होगा?"




उस रात, विजय ने उत्सुकता से अध्याय 3: आदत बनाने का विज्ञान पढ़ना शुरू किया। किताब की शुरुआत एक गहन विचार से हुई:


"आदतें चार चरणों में काम करती हैं: संकेत, इच्छा, प्रतिक्रिया, और इनाम।"


किताब ने समझाया कि किसी भी आदत को समझने और बदलने के लिए इन चार चरणों को समझना बेहद जरूरी है:


इस अध्याय को पढ़ने के बाद विजय ने महसूस किया कि उसकी कई आदतें अनजाने में इन्हीं चार चरणों पर आधारित हैं। उसने सोचा:

"अगर मैं इन चरणों को समझकर अपनी आदतें बदल सकूं, तो मैं अपनी जिंदगी को और बेहतर बना सकता हूं।"


किताब ने आगे यह भी बताया कि अच्छी आदतें बनाने के लिए इन चार चरणों का सकारात्मक इस्तेमाल कैसे किया जाए। विजय ने किताब के सुझावों को ध्यान से पढ़ा:


संकेत को स्पष्ट बनाएं:

अच्छी आदतों के संकेत को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

उसने अपनी किताब और डायरी को बिस्तर के पास रख दिया ताकि सुबह उठते ही उसे पढ़ने की याद आए।


इच्छा को आकर्षक बनाएं:

खुद को प्रेरित करने के लिए अपनी इच्छाओं को सकारात्मक बनाएं।

 उसने तय किया कि पढ़ाई खत्म करने के बाद वह खुद को एक कप कॉफी का इनाम देगा।


प्रतिक्रिया को आसान बनाएं:

आदत को अपनाने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाएं।

उसने तय किया कि वह रोज सिर्फ 10 मिनट की एक्सरसाइज से शुरुआत करेगा।


इनाम को संतोषजनक बनाएं:

अच्छी आदतों को बनाए रखने के लिए खुद को तुरंत इनाम दें।

हर हफ्ते की मेहनत के बाद, वह खुद को एक पसंदीदा फिल्म देखने की इजाजत देगा।


विजय ने इस अध्याय से सीखा कि आदतें खुद-ब-खुद नहीं बनतीं। उन्हें बनाने के लिए एक व्यवस्थित तरीका अपनाना पड़ता है।

"संकेत, इच्छा, प्रतिक्रिया, और इनाम—इन चार चरणों का सही इस्तेमाल आपको हर अच्छी आदत का मालिक बना सकता है।"


विजय अब किताब के तीसरे अध्याय के बाद और भी ज्यादा प्रेरित महसूस कर रहा था। उसे लग रहा था कि उसके जीवन में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। रोजमर्रा की छोटी-छोटी चीजों को समझने और बदलने का नजरिया उसे सुकून दे रहा था।


अगली रात, जब विजय ने अध्याय 4: इसे स्पष्ट करें (Make It Obvious) पढ़ना शुरू किया, तो उसे आदतों को और गहराई से समझने का मौका मिला। इस अध्याय में लिखा था कि अगर कोई आदत अपने जीवन में लानी हो, तो उसे साफ और आसान बनाना चाहिए। विजय ने खुद को किताब के हर पन्ने से जोड़ते हुए महसूस किया।


"Habit stacking" की तकनीक ने उसका ध्यान खींचा। किताब ने समझाया कि किसी नई आदत को अपनाने के लिए उसे पहले से बनी आदत के साथ जोड़ना सबसे कारगर तरीका है। विजय ने सोचा, "अगर मैं अपने रोजमर्रा के कामों में नई आदतें जोड़ दूं, तो यह मेरे लिए आसान हो जाएगा।"


किताब ने आगे समझाया कि अगर आप किसी आदत को लंबे समय तक बनाए रखना चाहते हैं, तो उसे इतना आसान बनाएं कि उसे करना स्वाभाविक लगे। विजय ने यह विचार अपने काम में भी उतार लिया।


उसने ऑफिस में नोट्स बनाने के लिए हमेशा अपनी डायरी को मेज पर खुला रखना शुरू कर दिया।

उसने एक्सरसाइज को आसान बनाने के लिए अपने जूते रात में तैयार करके रख दिए।

उसने रोज पढ़ाई करने के लिए किताब को अपने बिस्तर के पास रख दिया।


कुछ ही दिनों में, विजय को लगा कि उसकी दिनचर्या पहले से ज्यादा प्रोडक्टिव हो गई है। अब वह न सिर्फ अपना काम बेहतर तरीके से कर पा रहा था, बल्कि अपने स्वास्थ्य और पर्सनल ग्रोथ पर भी ध्यान दे रहा था।


विजय ने अपनी डायरी में लिखा:

"छोटी-छोटी आदतें मेरी जिंदगी का हिस्सा बन रही हैं। अब मैं जो बदलाव ला रहा हूं, वह सिर्फ एक प्रयास नहीं बल्कि मेरी नई पहचान बन रहा है।"

विजय ने खुद से कहा, "अगर अब तक के बदलाव इतने प्रभावशाली हैं, तो अगले अध्याय में मुझे और भी गहरी समझ मिलेगी। अगर मैं अपनी आदतों को आकर्षक बना दूं, तो शायद उन्हें अपनाना और भी आसान हो जाएगा।"


अगली रात, विजय ने किताब का पांचवा अध्याय पढ़ना शुरू किया। इस अध्याय में लिखा था कि आदतों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उन्हें दिलचस्प और मजेदार बनाना बेहद जरूरी है।





किताब ने बताया कि आदतों को जोड़ने के लिए डोपामाइन की भूमिका बहुत अहम होती है। जब हमें किसी आदत के परिणामस्वरूप खुशी या संतोष का एहसास होता है, तो हमारा दिमाग उस आदत को बार-बार दोहराना चाहता है।

विजय ने सोचा, "अगर मैं हर नई आदत को कुछ ऐसा बना दूं कि वह मुझे खुश करे, तो मैं उसे आसानी से निभा सकता हूं।"


किताब में लिखा था कि हमारी आदतें हमारे आस-पास के लोगों से भी प्रभावित होती हैं। अगर हमारे साथ सकारात्मक और प्रेरणादायक लोग हों, तो हम उनकी आदतों को अपनाने की कोशिश करते हैं। विजय ने इस पर गहराई से विचार किया।

विजय ने हर काम पूरा करने के बाद खुद को एक छोटा इनाम देने का नियम बनाया।

उसने तय किया कि अगर वह 30 मिनट तक किताब पढ़ेगा, तो वह अपने पसंदीदा म्यूजिक ट्रैक सुनेगा।

ऑफिस में, किसी मुश्किल प्रोजेक्ट को पूरा करने के बाद, वह अपनी पसंदीदा चाय का आनंद लेता।


विजय ने अपने आस-पास ऐसे लोगों को रखने की कोशिश की जो उसे प्रेरणा दे सकें। उसने अपने ऑफिस के उन सहकर्मियों से अधिक समय बिताना शुरू किया जो हमेशा कुछ नया सीखने और आगे बढ़ने की कोशिश करते थे।

उसने एक ऑनलाइन ग्रुप भी जॉइन किया, जहां लोग किताबें पढ़ने और सेल्फ-इम्प्रूवमेंट पर चर्चा करते थे।


विजय ने अपने वर्कआउट को उबाऊ बनाने के बजाय, म्यूजिक के साथ जोड़ा।

उसने अपने रूटीन को नई-नई तकनीकों के साथ आजमाना शुरू किया, जैसे 'गेमिफिकेशन।'

उसने अपनी पढ़ाई के लिए रंग-बिरंगे नोट्स और मार्कर का इस्तेमाल शुरू कर दिया, जिससे उसे और मजा आने लगा।


कुछ हफ्तों के अंदर विजय ने महसूस किया कि उसकी आदतें केवल एक बोझ नहीं रहीं, बल्कि अब वे उसकी दिनचर्या का मजेदार हिस्सा बन गई हैं। उसने अपनी डायरी में लिखा:

"आदतें केवल मेहनत का काम नहीं हैं। अगर उन्हें दिलचस्प और प्रेरक बना दिया जाए, तो वे जीवन को रोशन कर सकती हैं। अब मैं हर छोटी सफलता के साथ खुद को और मजबूत महसूस करता हूं।"


ऑफिस के काम में, जैसे-जैसे नई जिम्मेदारियां बढ़ीं, विजय को एक बार फिर तनाव और थकान महसूस होने लगी। काम का प्रेशर इतना बढ़ गया कि वह अपनी नई आदतों को नियमित रूप से निभा नहीं पा रहा था।


सुबह जल्दी उठने की आदत टूटने लगी थी।

ऑफिस में डेडलाइन्स को पूरा करने का दबाव था।

नई आदतों को अपनी दिनचर्या में बनाए रखना मुश्किल हो रहा था।

एक दिन विजय ने खुद से कहा, "शायद मैं अपनी आदतों को बहुत जटिल बना रहा हूं। मुझे इन्हें और आसान बनाना होगा, ताकि मैं काम के साथ तालमेल बैठा सकूं।"


विजय ने किताब का छठा अध्याय पढ़ना शुरू किया। इसमें लिखा था:

"आदतों को जितना आसान और सरल बनाएंगे, उतना ही उन्हें अपनाना आसान होगा।"



किताब ने बताया कि किसी भी नई आदत को शुरू करने के लिए सिर्फ 2 मिनट लगाना पर्याप्त है। यह नियम आदतों को भारी और कठिन महसूस होने से बचाता है।



अच्छी आदतों को अपनाने के लिए जितनी कम रुकावटें होंगी, वे उतनी जल्दी जीवन का हिस्सा बनेंगी।

वहीं, बुरी आदतों के लिए रुकावटें बढ़ाएं।

अध्याय पढ़ने के बाद विजय ने सोचा कि वह अपनी आदतों और काम को सरल बनाने के लिए क्या कर सकता है।


विजय को पढ़ाई और खुद को अपडेट रखने के लिए रोज़ाना 1 घंटा पढ़ना मुश्किल लग रहा था। उसने इसे 2 मिनट पढ़ने से शुरू किया।

उसने सोचा, "अगर मैं 2 मिनट शुरू कर लूं, तो हो सकता है मैं इसे और आगे बढ़ा सकूं।"

धीरे-धीरे वह 2 मिनट को बढ़ाकर 30 मिनट तक पढ़ने लगा।



उसने अपने ऑफिस डेस्क को ऐसा व्यवस्थित किया कि हर ज़रूरी चीज़, जैसे नोट्स और लैपटॉप, आसानी से उपलब्ध हों।

विजय ने अपने फोन पर अनावश्यक नोटिफिकेशन बंद कर दिए, ताकि वह अपने काम पर फोकस कर सके।



बड़ी रिपोर्ट लिखने के बजाय उसने काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा।

हर हिस्से को पूरा करने के बाद वह खुद को एक छोटा ब्रेक देता।



विजय को आदत थी कि वह ऑफिस में खाली समय में सोशल मीडिया स्क्रॉल करता था।

उसने अपने फोन को ऐसे स्थान पर रखा, जहां उसे बार-बार उठाना मुश्किल हो।


कुछ दिनों में विजय ने महसूस किया कि उसकी आदतें अब बोझिल नहीं रहीं। ऑफिस में काम का तनाव भी कम हो गया था। वह छोटी-छोटी आदतों के साथ अपनी दिनचर्या में बड़ा बदलाव महसूस कर रहा था।


विजय ने अपनी डायरी में लिखा:

"जब मैंने अपनी आदतों को आसान बना दिया, तो उनका पालन करना भी आसान हो गया। अब मैं बिना किसी दबाव के हर दिन कुछ न कुछ प्रोडक्टिव कर पाता हूं।"


 उसे यह भी महसूस हुआ कि कुछ आदतें लंबे समय तक टिकती नहीं हैं। जैसे ही वह अपने कार्यों में लीन हो जाता, उसकी नई आदतें पीछे छूटने लगती थीं। उसे एक ऐसा तरीका चाहिए था, जिससे वह अपनी आदतों को लंबे समय तक बनाए रख सके और प्रेरित रह सके।


ऑफिस में एक प्रोजेक्ट डेडलाइन की वजह से विजय को काफी दबाव महसूस हो रहा था। उसने महसूस किया कि ऐसे समय में वह अपनी आदतों को छोड़ देता है।

उसने सोचा, "मुझे अपनी मेहनत के लिए खुद को सराहना और इनाम देने की आदत डालनी होगी, ताकि मैं प्रेरित रह सकूं।"


अगले अध्याय में विजय ने पढ़ा:


हर नई आदत को पूरा करने के तुरंत बाद खुद को छोटा इनाम दें।

इनाम से दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है, जिससे आदत को दोहराने की प्रेरणा मिलती है।


बड़ी आदतों के छोटे-छोटे चरण बनाएं और हर चरण के पूरा होने पर जश्न मनाएं।


बुरी आदतों को संतोषजनक बनने से रोकें।

खुद को ऐसा माहौल दें, जहां बुरी आदतें असुविधाजनक लगें।


विजय ने सीखे गए सबक को अपनी जीवनशैली में अपनाना शुरू किया।



सुबह 20 मिनट की कसरत करने के बाद, विजय ने अपने लिए 5 मिनट का म्यूजिक सुनने का समय निर्धारित किया।

हर बार जब वह कोई किताब पढ़कर खत्म करता, तो खुद को एक कप कॉफी का इनाम देता।



ऑफिस के काम में उसने बड़े प्रोजेक्ट को छोटे टास्क में बांटा। हर टास्क पूरा होने पर वह ब्रेक लेता और अपनी उपलब्धि पर खुद को सराहता।

उसने अपने प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक "हैबिट ट्रैकर" बनाया। हर दिन जब वह अपनी आदत पूरी करता, तो ट्रैकर पर टिक मार्क लगाकर खुद को संतोष देता।


विजय को रात को देर तक फोन चलाने की आदत थी। उसने इसे तोड़ने के लिए फोन को दूसरे कमरे में रखना शुरू किया।

उसने सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने की आदत को रोकने के लिए अपनी ऐप्स का उपयोग समय सीमित कर दिया।

कुछ हफ्तों में विजय ने महसूस किया कि वह अब ज्यादा अनुशासित और खुश रहने लगा है। ऑफिस का काम समय पर पूरा होने लगा और वह खुद को ज्यादा ऊर्जावान महसूस करता था।


 अब उसे एक नई चुनौती का सामना करना था। उसकी कुछ बुरी आदतें अब भी बनी हुई थीं। जैसे ही विजय अपने काम में डूबता, उसकी बुरी आदतें वापस आ जातीं। वह जानता था कि अगर उसे पूरी तरह से सुधारना है, तो उसे अपनी बुरी आदतों की पहचान करनी होगी और उन्हें खत्म करना होगा।


जब भी विजय के पास अधिक काम होता, वह देर रात तक फोन पर गेम्स खेलता और सोशल मीडिया पर बर्बाद करता।

कभी-कभी वह ऑफिस में लंच के दौरान जरूरत से ज्यादा चाय पीता, जिससे उसकी कार्य क्षमता प्रभावित होती थी।

विजय को यह समझ में आ गया था कि उसकी ये बुरी आदतें उसकी उत्पादकता और खुशहाल जीवन में रुकावट डाल रही थीं।


विजय ने किताब का अगला अध्याय पढ़ना शुरू किया, जिसमें लिखा था:


बुरी आदतों के संकेतों को हटा दें:


बुरी आदतों के संकेतों को दूर करने से आदत को अपनाना और भी मुश्किल हो जाता है।

बुरी आदतों को ट्रिगर करने वाले तत्वों से बचें।


सबसे पहले अपनी बुरी आदतों की पहचान करें और उन कारणों से बचें, जो इन आदतों को ट्रिगर करते हैं।

"लॉजिक और प्लानिंग" के द्वारा उन आदतों को न्यूनतम करें जो आदतों के संकेत बनते हैं।


विजय ने इस अध्याय को ध्यान से पढ़ने के बाद, अपनी बुरी आदतों को खत्म करने के लिए कदम उठाने शुरू किए।


विजय ने अपने फोन में उन ऐप्स को हटा दिया, जो उसे बार-बार सोशल मीडिया पर खींच लाती थीं।

रात के समय, उसने अपने फोन को चार्जिंग के लिए दूसरे कमरे में रखा और किसी अन्य कार्य पर ध्यान देने लगा।

"अगर सोशल मीडिया के संकेत मुझे न दिखें, तो मैं उसे नहीं खोलूंगा।" यह विजय का नया नियम बन गया।


विजय ने चाय की ज्यादा आदत को छोड़ने के लिए कोशिश की। उसने अपने ऑफिस डेस्क पर चाय के कप को हटा दिया और सिर्फ एक कप रखा।

अब वह केवल अपनी जरूरी चाय ही पीता, और जब जरूरत होती, तो पानी पीता। यह उसे अपनी ऊर्जा को बेहतर तरीके से उपयोग करने में मदद करता।


विजय ने काम के दौरान अपने डेस्क को व्यवस्थित रखा, ताकि किसी भी प्रकार का विचलन न हो।

हर काम के लिए एक निश्चित समय निर्धारित किया, और उससे भटकने का कारण बने हर संकेत को हटा दिया।


कुछ दिनों के अंदर विजय ने महसूस किया कि अब बुरी आदतें उसे परेशान नहीं करतीं। वह बिना किसी रुकावट के अपनी आदतों को बनाए रखने में सफल हो रहा था। उसकी उत्पादकता बढ़ गई और वह खुद को और अधिक संतुष्ट महसूस करने लगा।

विजय ने किताब के पिछले अध्यायों से अपनी आदतों में बदलाव लाने के कई तरीके सीखें थे। बुरी आदतों से निपटने की प्रक्रिया के दौरान उसे महसूस हुआ कि अब तक उसने सिर्फ आदतों को अदृश्य और कठिन बनाया था, लेकिन एक और महत्वपूर्ण कदम था, जो उसे अपने जीवन में लागू करना था। विजय ने सोचा, "अब मुझे अपनी बुरी आदतों को अप्रिय और नकारात्मक बनाना होगा, ताकि वे खुद ही खत्म हो जाएं।"


विजय ने किताब में पढ़ा:


आदतों के परिणाम जितने नकारात्मक और अप्रिय होंगे, उतना ही मुश्किल होगा उन आदतों को दोहराना।

अपने बुरी आदतों के साथ नकारात्मक चीजों को जोड़ना, आदतों को छोडऩे में मदद करता है।


किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढें, जो आपके आदतों को ट्रैक करे और जब आप गलत रास्ते पर जाएं तो आपको सही दिशा दिखाए।

यह व्यक्ति आपको जिम्मेदार ठहराने का काम करेगा और आपको अपनी आदतों के प्रति जागरूक बनाएगा।


विजय ने इस अध्याय को पढ़ने के बाद सोचा कि उसे अपनी बुरी आदतों को गंभीरता से लेना होगा। अब तक वह अपनी आदतों को सुधारने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब तक कोई स्थिरता नहीं थी।


विजय ने अपनी बुरी आदत को नकारात्मक परिणामों से जोड़ा। जैसे, जब वह देर रात तक फोन पर गेम्स खेलता, तो उसने तय किया कि अगले दिन उसे बिना आलस्य के अपने काम को पूरा करना होगा और अगर वह ऐसा नहीं करता, तो उसे अगले दिन अपनी पसंदीदा चीजों को त्यागना पड़ेगा।

उसने ये भी तय किया कि अगर वह सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करता है, तो वह खुद से एक दिन का ब्रेक लेगा, ताकि उसे ये अनुभव हो सके कि समय की बर्बादी ने उसे कुछ खो दिया।


विजय ने अपने दोस्त, राहुल को अपना "Accountability Partner" बना लिया।

जब भी वह अपनी बुरी आदतों की ओर बढ़ता, राहुल उसे ईमेल या कॉल करके उसे याद दिलाता और यह सुनिश्चित करता कि वह अपनी आदतों पर नियंत्रण रखे।

राहुल ने विजय को समझाया कि अपने आदतों के प्रति जिम्मेदार ठहराना, उन्हें सही दिशा में बदलने में बहुत मदद कर सकता है।


कुछ हफ्तों के बाद विजय को ये महसूस हुआ कि नकारात्मक परिणामों और "Accountability Partner" ने उसके जीवन में एक नया मोड़ दिया था। उसकी बुरी आदतें धीरे-धीरे खत्म होने लगीं, क्योंकि अब वह जानता था कि अगर उसने गलत किया तो उसके सामने परिणाम आएंगे।


जब विजय ने सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताया, तो राहुल ने उसे याद दिलाया कि उसने कितना समय खो दिया है। इसके बाद विजय ने खुद से यह वादा किया कि वह अपनी सोशल मीडिया आदत को नियंत्रित करेगा।

उसने तय किया कि अगर वह रात में 10 बजे से पहले फोन बंद नहीं करता, तो अगले दिन उसे सुबह का काम दो घंटे ज्यादा करना पड़ेगा।


विजय ने काम के दौरान खुद को समझाया कि अगर वह काम में आलस्य करता है, तो उसे अगले दिन दो घंटे ज्यादा काम करना पड़ेगा।

इस नकारात्मक परिणाम ने उसे अपने काम में और अधिक ध्यान केंद्रित करने में मदद की।


अब उसे अपनी आदतों को पूरी तरह से मजबूत बनाने और बुरी आदतों को छोड़ने के लिए और भी ठोस कदम उठाने थे। किताब के अध्याय 10 में उसे एक और नया तरीका दिखाया गया था, जो उसकी आदतों में स्थायी बदलाव लाने में मदद कर सकता था।


किताब में लिखा था:


जब आदतों को मुश्किल बना दिया जाता है, तो उन्हें अपनाना आसान नहीं होता। बुरी आदतें तभी अपना असर दिखाती हैं जब हम उन्हें आसानी से कर पाते हैं। इसलिए, बुरी आदतों के रास्ते में जितनी ज्यादा बाधाएं होंगी, उतना ही उन्हें छोड़ पाना आसान होगा।


एक Commitment Device एक तरीका है, जिसमें आप खुद को अपनी आदतों के प्रति जिम्मेदार ठहराते हैं। इसका मतलब है कि आप अपनी आदतों को ट्रैक करने के लिए ऐसी चीज़ें करते हैं, जो आपको अपनी गलतियों से रोकती हैं।

फोन पर टाइम लिमिट सेट करना, किसी को अपनी गलत आदतों के बारे में बताना, या खुद से कोई वादा करना कि अगर आपने कोई बुरी आदत की, तो आपको कोई नकरात्मक परिणाम भुगतना होगा।


विजय ने इस अध्याय को पढ़ने के बाद, अपने जीवन में बुरी आदतों को खत्म करने के लिए कुछ और सख्त कदम उठाए:


विजय ने अपने फोन पर एक समय सीमा सेट कर दी। उसने तय किया कि वह दिन में सिर्फ 30 मिनट ही सोशल मीडिया पर समय बिताएगा।

इसके लिए उसने एक ऐप डाउनलोड किया, जो उसे यह ट्रैक करने में मदद करता था कि वह कितना समय सोशल मीडिया पर बिता रहा है। हर बार जब वह सीमा पार करता, तो ऐप उसे एक नकारात्मक नोटिफिकेशन भेजता।

इस "Commitment Device" ने विजय को सोशल मीडिया से बचने में मदद की, और उसने अपनी आदतों पर अधिक नियंत्रण पाया।


विजय को यह महसूस हुआ कि अगर वह काम के बीच में बार-बार ब्रेक लेता है, तो वह अपनी उत्पादकता को खत्म कर देता है। इसलिए उसने अपने कंप्यूटर पर एक फोकस टाइमर सेट किया, ताकि वह लगातार 45 मिनट तक काम कर सके, और फिर 10 मिनट का ब्रेक ले सके।

इस नियम ने उसकी काम करने की गति को दोगुना कर दिया, और वह अब अपनी प्राथमिकताओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पा रहा था।


विजय के ऑफिस में उसकी एक सहकर्मी, सुमन, थी जो हमेशा उसे अपने काम में सुधार के लिए प्रेरित करती थी। एक दिन विजय ने सुमन से अपनी आदतों के बारे में बात की।

सुमन ने विजय से कहा, "जब तक आप खुद से वादा नहीं करते कि आप अपनी आदतों को सुधारेंगे, तब तक कोई और आपके लिए बदलाव नहीं ला सकता। आपको अपनी आदतों को चुनौती देना होगा और खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा।"

विजय को सुमन की बातों से बहुत प्रेरणा मिली। उसने सोचा कि अब वह अपनी आदतों को चुनौती देने के लिए और भी मजबूत तरीके अपनाएगा।


कुछ ही हफ्तों में विजय ने महसूस किया कि बुरी आदतों को मुश्किल बनाना वास्तव में उसे अपने लक्ष्यों के करीब ला रहा था। वह अब अपनी आदतों को ज्यादा नियंत्रित कर पा रहा था, क्योंकि उसने बुरी आदतों के लिए बाधाएं और रुकावटें डाल दी थीं।


विजय ने देखा कि फोन पर समय सीमा लगाने से वह सोशल मीडिया पर बिताए गए समय को सीमित कर पा रहा था। अब वह ज्यादा समय अपने काम में लगा पा रहा था और अपने व्यक्तिगत जीवन को भी बेहतर तरीके से संभाल पा रहा था।


समय सीमा पर काम करने से उसकी उत्पादकता भी बढ़ गई थी। अब वह बिना किसी रुकावट के अपने काम को समय पर पूरा कर पा रहा था और कार्यस्थल पर उसकी छवि भी बेहतर हो गई थी।

विजय अब किताब के अध्‍याय 11 में पहुंच चुका था, और इस नए अध्याय ने उसे बुरी आदतों को और भी बेहतर तरीके से खत्म करने के लिए एक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया था। वह अब महसूस कर रहा था कि अपनी बुरी आदतों को असंतोषजनक और अप्रिय बनाने से वह उन्हें छोड़ने में और अधिक सफल हो सकता था।


इस अध्याय में विजय ने पढ़ा:


बुरी आदतों को छोड़ने के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि वे आपके जीवन के लक्ष्यों में किस तरह की रुकावट डाल रही हैं।

अगर आप बुरी आदतों के परिणामों को सीधे अपने सपनों और लक्ष्यों से जोड़ सकते हैं, तो वह आदतें आपके लिए असंतोषजनक हो जाएंगी।



विजय ने यह सीखा कि जब वह अपनी बुरी आदतों पर नजर रखता है और अपनी गलतियों का हिसाब रखता है, तो उसे यह एहसास होता है कि वह कितनी बार अपनी आदतों से भटकता है।

इसके लिए वह अपने दिमाग को एक तरह से ट्रैक करने की आदत डाल सकता है, जैसे कि हर दिन अपनी गलतियों को नोट करना और समझना कि कहां सुधार की आवश्यकता है।


विजय ने यह सब पढ़ने के बाद अपनी बुरी आदतों से निपटने के लिए कुछ और सख्त उपाय अपनाए:


विजय ने अपने काम में फोकस करने के लिए तय किया कि जब वह देर रात तक काम में गड़बड़ी करता है, तो उसे अपने मुख्य प्रोजेक्ट्स में किसी तरह की गिरावट का सामना करना पड़ेगा।

उसने सोचा, "अगर मैं देर रात तक काम में आलस्य करता हूं, तो यह मेरी प्रोडक्टिविटी को घटाएगा और मुझे अपने महत्वपूर्ण लक्ष्यों को पूरा करने में कठिनाई होगी।"

विजय ने यह भी तय किया कि अगर वह समय पर काम नहीं करता, तो उसे अगले दिन अतिरिक्त समय लगाकर अपने प्रोजेक्ट को ठीक करना होगा।


विजय ने अपनी गलतियों को नोट करने की आदत बनाई।

उसने एक नोटबुक में अपनी हर दिन की गलतियों को लिखा और सोचा कि उसे क्या सुधारने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, अगर उसने सोशल मीडिया पर बहुत समय बर्बाद किया, तो उसने इसे अपनी गलती के रूप में लिखा और सोचा कि यह उसकी प्रोडक्टिविटी में कैसे बाधा डाल सकता है।

इस तरह वह अपनी आदतों पर नजर रखता और हर दिन अपनी गलतियों से कुछ नया सीखता।


कुछ दिनों में विजय ने देखा कि बुरी आदतों को असंतोषजनक बनाने से उसे सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिली।



विजय ने देखा कि जब उसने अपनी बुरी आदतों को अपने लक्ष्यों से जोड़ा, तो वे उसे असंतोषजनक और अप्रिय महसूस होने लगीं। अब वह सोचता था कि अगर वह अपनी आदतों को नियंत्रित नहीं करता, तो उसका व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन खराब हो सकता है।

जैसे, अगर वह देर रात तक फोन में गुम रहता, तो उसका अगले दिन काम में ध्यान नहीं लग पाता और उसे अपनी रिपोर्ट्स पर काम करने में देर हो जाती।

यह एहसास उसके लिए असंतोषजनक था, और उसने अपनी आदतों में सुधार लाने के लिए कदम उठाए।


विजय ने देखा कि अपनी गलतियों को नोट करने से उसे अपनी आदतों का आकलन करने में मदद मिली। वह अब ज्यादा सतर्क और जिम्मेदार था।

उदाहरण के लिए, अगर वह दिन में ज्यादा देर तक ब्रेक लेता, तो उसने इसे अपनी गलती माना और अगले दिन उसने तय किया कि उसे काम के बीच छोटा लेकिन पर्याप्त ब्रेक ही लेना होगा।

विजय ने महसूस किया कि यह छोटी-छोटी बातें उसे बड़े बदलाव की दिशा में ले जा रही थीं।

अब विजय ने अपने कार्यस्थल पर भी इन आदतों को लागू किया।




विजय ने देखा कि जब वह अपनी आदतों पर नियंत्रण करता है, तो वह ऑफिस के काम में भी ज्यादा फोकस और उत्पादकता से काम करता है।

उसने अब एक नया तरीका अपनाया कि वह काम की शुरुआत में ही सबसे कठिन टास्क को पूरा करता, ताकि उसके पास पूरे दिन की ऊर्जा बची रहे।

विजय ने यह महसूस किया कि जब वह खुद से जिम्मेदार था, तो उसकी कार्य क्षमता और भी बढ़ गई थी।



विजय ने समय की प्रबंधन तकनीकों का पालन करते हुए अपने कार्य में सुधार किया। वह अब समय का सही तरीके से इस्तेमाल करने में सक्षम था और लगातार अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा था।

अब उसका काम और जीवन दोनों संतुलित और संगठित थे, और विजय को लग रहा था कि उसने अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण आदत को सुधार लिया है—संगठित रहना और जिम्मेदारी निभाना।

विजय अब किताब के अध्‍याय 12 में पहुंच चुका था, और यह अध्याय उसे अपने जीवन में सफलता को लंबे समय तक बनाए रखने के बारे में और भी गहरे तरीके से सोचने पर मजबूर कर रहा था।


इस अध्याय में विजय ने कुछ महत्वपूर्ण बातें पढ़ीं, जो उसकी ज़िंदगी में स्थायित्व और संतुलन लाने में मदद कर सकती थीं।


विजय ने सीखा कि सफलता कभी किसी एक बड़े घटना या परिणाम से नहीं आती, बल्कि यह लगातार, छोटे-छोटे सुधारों का परिणाम होती है।

इसका मतलब यह था कि विजय को अपनी आदतों और कार्यों को नियमित रूप से सुधारते रहना था, न कि कभी-कभी ही ध्यान देना। यह एक लाइफटाइम का काम था, और वह यह समझ चुका था कि यह किसी "चमत्कारी परिवर्तन" की बजाय धीरे-धीरे आने वाली सफलता थी।


विजय ने यह समझा कि आदतों को अपनी स्थिर पहचान बना लेना बहुत महत्वपूर्ण था। जब आदतें सिर्फ एक कार्य नहीं, बल्कि आपकी पहचान बन जाती हैं, तो उन्हें बदलना बहुत मुश्किल हो जाता है।

उदाहरण के लिए, अब विजय खुद को एक प्रोडक्टिव व्यक्ति के रूप में देखता था। उसकी आदतें अब उसकी पहचान का हिस्सा बन चुकी थीं। वह अपने कार्यों को किसी और की उम्मीदों के बजाय, अपनी आत्मसंतुष्टि और विश्वास के लिए करता था।


विजय ने यह भी सीखा कि एक आदत को अपनाने के बाद उसे निरंतर बनाए रखना जरूरी था। अगर आप लगातार सुधार नहीं करते, तो आदतें फिर से कमजोर हो सकती हैं।

इसके लिए विजय ने एक योजना बनाई, जिसमें वह हर हफ्ते अपनी आदतों का मूल्यांकन करता था। वह देखता था कि कौन सी आदतें उसकी मदद कर रही थीं और कौन सी नहीं, और फिर उस पर काम करता था।


विजय ने यह भी सीखा कि सफलता का आनंद लेना महत्वपूर्ण था, लेकिन यह भी जरूरी था कि वह संतुलन बनाए रखे। अगर आप अपनी सफलता में पूरी तरह से खो जाते हैं, तो आप अपनी गति को खो सकते हैं।

इसलिए विजय ने अपने जीवन में एक संतुलन बनाए रखा। जब वह अपने लक्ष्यों की दिशा में सफल होता, तो वह इसका जश्न मनाता, लेकिन फिर जल्दी ही अगले कदम की ओर बढ़ता।


विजय ने अब यह महसूस किया कि सफलता को बनाए रखना केवल एक मंज़िल तक पहुंचने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक यात्रा है।


विजय ने अब अपने जीवन को एक निरंतर सुधार की प्रक्रिया के रूप में देखा। उसने यह सुनिश्चित किया कि वह हर दिन छोटे-छोटे बदलाव करता है, और इसका असर उसकी लंबी अवधि की सफलता पर पड़ता है।

अब वह सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी टीम और अपने ऑफिस के लिए भी लगातार सुधार करने की कोशिश करता। उसकी आदतें अब उसे अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन दोनों में बेहतर बना रही थीं।


विजय ने अपने कार्यों का साप्ताहिक मूल्यांकन शुरू किया। वह खुद से सवाल करता, "क्या मेरी आदतें मुझे मेरे लक्ष्यों के और करीब ला रही हैं?"

अगर वह पाता कि कोई आदत अब उसे अपने लक्ष्यों से दूर कर रही है, तो वह तुरंत उसे बदल देता।


विजय ने यह महसूस किया कि सफलता को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए संतुलन आवश्यक था। वह अब अपने काम, परिवार, और व्यक्तिगत जीवन के बीच एक अच्छा संतुलन बनाए रखता था।

विजय अब जानता था कि संतुलन बनाए रखने से ही वह अपनी सफलता को स्थिर और स्थायी बना सकता है।


विजय अब अपनी टीम के साथ मिलकर भी लगातार सुधार पर काम करता था। वह अपने सहकर्मियों को भी प्रेरित करता और उन्हें यह समझाता कि सफलता केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि टीम वर्क और साझा लक्ष्यों का परिणाम होती है।

अब विजय को अपने कार्यस्थल पर अधिक प्रोडक्टिविटी और एकजुटता नजर आने लगी थी।


विजय ने अपने कार्यस्थल और पर्सनल लाइफ को संतुलित किया। वह अब काम के समय पर पूरी तरह से फोकस करता था, और जब वह घर लौटता, तो अपने परिवार के साथ समय बिताता था।

उसने यह महसूस किया कि इस संतुलन ने उसकी मानसिक स्थिति को बेहतर किया और वह खुद को ज्यादा तरोताजा महसूस करने लगा।

विजय अब किताब के अध्‍याय 13 में पहुंच चुका था, और इस अध्याय में उसने एक नया सिद्धांत पढ़ा जिसे "स्वाभाविक रूप से प्रगति करें" कहा जाता था। यह सिद्धांत विजय के लिए एक नई दिशा और समझ लेकर आया। उसने इसे अपने जीवन में लागू करने के बारे में सोचा और महसूस किया कि यह उसकी सफलता को और अधिक स्थायी बना सकता है।


इस अध्याय में विजय ने सीखा कि आदतों में सुधार करने का सबसे प्रभावी तरीका धीरे-धीरे और स्वाभाविक रूप से प्रगति करना होता है।


विजय ने यह समझा कि हमें आदतों में सुधार के लिए बड़ी छलांगें नहीं लगानी चाहिए। छोटे और स्थिर कदमों के साथ प्रगति करना ज्यादा प्रभावी होता है।

इस तरीके से विजय को यह एहसास हुआ कि सफलता केवल एक ही बड़ी छलांग से नहीं, बल्कि लगातार और छोटे सुधारों से हासिल की जाती है।

अब वह अपने कार्यों और आदतों में छोटे-छोटे बदलाव करता था, और धीरे-धीरे इन बदलावों ने उसकी जीवनशैली को बेहतर बना दिया था।


विजय ने Goldilocks Rule का अध्ययन किया, जिसे जानने के बाद उसे अपनी आदतों और कार्यों में सुधार करने के तरीके पर एक नया दृष्टिकोण मिला।

Goldilocks Rule का मतलब था कि चुनौतियों को न तो बहुत आसान, न ही बहुत कठिन रखा जाए।

विजय ने इसे अपनी कार्यक्षमता पर लागू किया। वह अब अपने कार्यों को ऐसा चुनौतीपूर्ण बनाता था जो उसे सोचने पर मजबूर करे, लेकिन उतना भी कठिन न हो कि वह असफल हो जाए।

उदाहरण के तौर पर, जब विजय ने अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए कार्यों को टाइम-बाउंड किया, तो उसने अपने कार्यों के समय सीमा को ऐसे तय किया कि वे न तो बहुत कम थे, जिससे वह समय से पहले समाप्त कर देता, न बहुत लंबे, जिससे वह थक कर खुद को असफल महसूस करता।


विजय ने अब यह महसूस किया कि बदलाव को प्राकृतिक रूप से लाना ज्यादा आसान और स्थायी होता है। जब आप अपने जीवन में आदतें बदलाव के रूप में नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से अपनाते हैं, तो वे जल्दी से आपकी पहचान का हिस्सा बन जाती हैं।

विजय अब अपने कार्यों को और अधिक स्वाभाविक तरीके से करता था। उदाहरण के लिए, वह पहले सुबह उठकर 15 मिनट ध्यान करता था, अब उसने इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 30 मिनट कर लिया। यह बदलाव किसी भी तरह से जबरदस्ती नहीं था, बल्कि यह स्वाभाविक रूप से उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था।

विजय ने अपनी आदतों को सुधारने के लिए काम में और व्यक्तिगत जीवन में चुनौतियों का संतुलन बनाना शुरू किया। वह अब खुद को न तो बहुत ज्यादा थकाता था, न ही बहुत कम काम करता था।

जब भी वह अपने कार्यों को देखता, तो वह खुद से सवाल करता था, "क्या यह चुनौती मेरे लिए सही है?"

यदि वह महसूस करता कि यह चुनौती बहुत आसान है, तो वह इसे बढ़ाता था। अगर यह बहुत कठिन होती, तो वह उसे थोड़ा आसान बना देता था।

विजय ने महसूस किया कि सुधार जब स्वाभाविक रूप से होता है, तो उसका असर ज्यादा होता है। वह अब अपने कार्यों और आदतों में धीरे-धीरे सुधार करता था, और परिणामस्वरूप उसका जीवन और भी बेहतर हो गया था।

विजय ने अब यह ठान लिया था कि सफलता को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उसे अपने हर कदम को स्वाभाविक रूप से और संतुलित तरीके से उठाना होगा।

जब विजय ने देखा कि उसकी आदतें धीरे-धीरे और स्वाभाविक रूप से बदल रही हैं, तो उसे खुद में संतोष महसूस हुआ। उसने यह महसूस किया कि अब वह अपनी सफलता की यात्रा पर लगातार बढ़ रहा था, लेकिन बिना खुद को थकाए।

वह जानता था कि बड़ी सफलता की ओर बढ़ते हुए छोटे-छोटे सुधार उसकी पहचान का हिस्सा बन गए थे, और यही स्थायित्व और सफलता की कुंजी थी।


विजय अब किताब के अध्‍याय 14 में पहुंच चुका था, और इस अध्याय ने उसे सफलता और असफलता के बारे में एक नया दृष्टिकोण दिया। यह अध्याय विजय के लिए बेहद प्रेरणादायक साबित हुआ क्योंकि इसने उसे यह सिखाया कि असफलता जीवन का हिस्सा है, और उसे इससे निराश नहीं होना चाहिए।


इस अध्याय में विजय ने सीखा कि असफलता एक प्राकृतिक और अपरिहार्य हिस्सा है, लेकिन उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। बल्कि, असफलता को एक सीख के रूप में देखना चाहिए और उसे तुरंत अपनी आदतों में वापस लाना चाहिए।


विजय ने यह सीखा कि असफलता को स्वीकार करना और उससे सीखना सफलता की ओर बढ़ने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। असफलता को अपने ऊपर हावी होने से रोकना चाहिए।

जब किसी आदत में कोई विघ्न आए, तो उसे छोड़ने के बजाय उसे फिर से अपनाने के लिए खुद को प्रेरित करना चाहिए।


इस अध्याय ने विजय को यह समझाया कि सफल लोग वही हैं जो असफलता के बावजूद चलते रहते हैं। वे कभी भी हार मानने वाले नहीं होते, बल्कि वे अपनी असफलताओं से सीखकर और भी मजबूत होते जाते हैं।

विजय ने इसे अपने कार्य जीवन में लागू किया। जब उसे किसी प्रोजेक्ट में असफलता मिली, तो उसने खुद से कहा, "यह असफलता एक सीख है, और मैं इसे अपनी अगली सफलता के लिए एक कदम और बढ़ने के रूप में देखता हूँ।"


विजय ने इस सिद्धांत को अपनाया कि यदि कोई आदत टूट जाए, तो उसे जल्द से जल्द वापस लाना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि आप हमेशा सही रहें, लेकिन वापस उठना और फिर से अपने रास्ते पर आना जरूरी है।

विजय ने यह तय किया कि अगर वह किसी दिन अपनी आदतों को न फॉलो कर पाए, तो वह इसे असफलता नहीं मानता, बल्कि अगले ही दिन उसे सुधारने के लिए काम करता।

जैसे अगर वह किसी दिन अपने अध्ययन का समय चूके, तो वह अगले दिन उसी समय से फिर से शुरुआत करता और खुद को नकारात्मक विचारों में नहीं डुबोता।


जब विजय ने महसूस किया कि असफलता कोई बड़ी बात नहीं है और उसे ठीक करने के लिए उसे उठकर फिर से प्रयास करना है, तो उसके आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई।

वह अब हर असफलता को एक अवसर के रूप में देखता था, जहां वह अपने अगले कदम को और भी बेहतर तरीके से उठा सकता था।


विजय ने यह सीख लिया कि सफलता के लिए निरंतरता सबसे महत्वपूर्ण है। अगर कोई आदत टूट जाए, तो उसे फिर से जल्दी से फिर से शुरू करना चाहिए।

उसकी आदतों में अब टूटने का डर नहीं था। वह अब जानता था कि अगर वह किसी आदत में सफल नहीं हो सका, तो वह फिर से उसे अपना सकता था, और यह केवल एक छोटी सी रुकावट थी, न कि असफलता।

विजय ने असफलताओं को प्रेरणा के रूप में अपनाया। जब कभी भी वह किसी कार्य में असफल होता, तो वह इसे अपने अगले प्रयास को और भी बेहतर बनाने का एक कदम मानता था।

वह असफलता को एक सीख के रूप में देखता था, जो उसे अपने अगले प्रयास में और भी मेहनत करने के लिए प्रेरित करती थी।

विजय अब अपनी टीम के साथ भी असफलताओं को खुले तौर पर साझा करता था। वह अपनी टीम को बताता कि असफलता कोई बुरी चीज नहीं है, बल्कि यह एक सीखने का अवसर है।

उसकी टीम ने इसे सकारात्मक रूप से लिया और असफलताओं के बाद निराश होने की बजाय हर छोटे कदम को सफलता की ओर बढ़ने के रूप में देखा।



विजय ने अपनी टीम को यह समझाया कि अगर किसी दिन कोई आदत या योजना विफल हो जाती है, तो उसे जल्द से जल्द वापस अपनाना चाहिए।

अब ऑफिस में किसी भी योजना या प्रोजेक्ट में कोई असफलता आती, तो उसे जल्दी से सुधारने के लिए एक नई योजना बनाई जाती थी, जिससे आगे के प्रयासों में सफलता प्राप्त हो।


विजय अब किताब के अंतिम अध्याय में था, और यह अध्याय उसके लिए जीवन का एक अहम मोड़ साबित हो रहा था। इसने उसे समझाया कि असल में आदतें ही हमारे भविष्य को तय करती हैं, और छोटे-छोटे कदमों से ही हम बड़ी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। विजय ने यह समझा कि उसे सिर्फ अपनी आदतों में सुधार लाने की जरूरत नहीं थी, बल्कि इन्हीं आदतों से अपनी सपनों की मंजिल को हासिल करने की राह पर कदम बढ़ाने थे।



आखिरी अध्याय विजय के लिए एक जादू की तरह था। इसमें बताया गया था कि आदतें हमारे जीवन की सबसे बड़ी शक्ति हैं। हमें अपनी आदतों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार होने की जरूरत है, क्योंकि यही आदतें हमें हमारे उद्देश्य और सपनों तक पहुँचाती हैं।



विजय ने सीखा कि हमारी पहचान हमारी आदतों से बनती है। जो हम रोज़ करते हैं, वही हम बनते हैं। अगर हमें कुछ बड़ा करना है, तो हमें अपनी आदतों में छोटे, सकारात्मक बदलाव करने होंगे।

विजय ने अपनी आदतों को बदलने का एक लंबा रास्ता तय किया, लेकिन उसने अब यह महसूस किया कि यही वह रास्ता है, जो उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करेगा।


विजय को यह भी समझ आया कि बड़ी मंजिलें छोटे कदमों से ही पाई जाती हैं। यह कोई जादू नहीं है, बल्कि रोज़ के छोटे-छोटे कदमों से हम बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

उसे यह एहसास हुआ कि जीवन में किसी भी बदलाव के लिए एक कदम ही पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है। और जैसे ही हम वह पहला कदम उठा लेते हैं, बाकी का रास्ता खुद ब खुद साफ हो जाता है।

विजय ने अब अपने जीवन में छोटे बदलाव करना शुरू किया। वह जानता था कि एक छोटा कदम भी बड़ा असर डाल सकता है, खासकर जब उसे निरंतरता से लिया जाए।


विजय अब अपनी आदतों से पूरी तरह से परिचित हो चुका था। उसकी आदतों ने ही उसकी ज़िंदगी में बदलाव लाया था और उसे सफलता की दिशा में बढ़ाया था। अब वह जानता था कि:


हर सफलता के पीछे एक आदत होती है।


अगर हमें जीवन में सफल होना है, तो सबसे पहले हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। विजय ने यह सीखा कि उसकी सफलता का राज़ उसकी आदतों में था।

छोटे बदलाव ही बड़ा फर्क डालते हैं।


उसने यह महसूस किया कि छोटे बदलावों से ही हम बड़ी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। अगर हम रोज़ थोड़ा-थोड़ा सुधार करें, तो बड़े बदलाव जरूर आएंगे।

सिर्फ आदतें ही हमें लगातार सफलता दिलाती हैं।




विजय अब अपने जीवन को निरंतर सुधारने की दिशा में काम कर रहा था। उसने यह सीखा कि आदतें हमारे सबसे बड़े सहयोगी होती हैं, जो हमें हमारे सपनों तक पहुँचाती हैं।


विजय अब पूरी तरह से बदल चुका था। वह अपनी आदतों के जरिए अपने जीवन में एक नई दिशा लेकर आया था। उसने अपनी व्यक्तिगत और पेशेवर ज़िंदगी में सुधार किया और अब वह अपने सपनों को साकार करने के लिए पूरी तरह से तैयार था।


इस किताब ने उसे यह सिखाया कि आदतें ही जीवन को बदलने की असली कुंजी हैं, और विजय अब जानता था कि उसके सपने एक दिन साकार होंगे, क्योंकि उसकी आदतें अब उसे सही दिशा में ले जा रही थीं।


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